Supreme Court

Chief Justice: उदय उमेश ललित बने देश के 49वें चीफ जस्टिस, कई अहम मामलों पर दे चुके हैं फैसला

Chief Justice Uday Umesh Lalit: जस्टिस उदय उमेश ललित (Uday Umesh Lalit) ने आज भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) के रूप में शपथ ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu) ने उन्हें पद की शपथ दिलाई। इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankar) के अलावा कई केंद्रीय मंत्री और सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के जज मौजूद रहे। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के चीफ जस्टिस के पद पर आसीन होने वाले 49वें व्यक्ति जस्टिस ललित का का कार्यकाल 8 नवंबर तक होगा।

नए चीफ जस्टिस यू यू ललित (Uday Umesh Lalit) ने संविधान पीठ के सामने सालों से लंबित मामलों के निपटारे को अपनी प्राथमिकताओं में से एक बताया है। यही वजह है कि 29 अगस्त से संविधान पीठ बैठने जा रही है, जो एक-एक कर 25 अहम मामलों की सुनवाई करेगी।

वकील से सीधे सुप्रीम कोर्ट जज बने हैं नए CJI
सौम्य स्वभाव के लिए पहचाने जाने वाले ललित ऐसे दूसरे चीफ जस्टिस होंगे जो सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का जज बनने से पहले किसी हाईकोर्ट के जज नहीं थे, बल्कि सीधे वकील से इस पद पर पहुंचे हैं। उनसे पहले 1971 में देश के 13वें मुख्य न्यायाधीश एस एम सीकरी ने यह उपलब्धि हासिल की थी।

देश के बड़े वकीलों में गिने जाते थे
9 नवंबर 1957 में जन्म लेने वाले उदय उमेश ललित (Uday Umesh Lalit) 13 अगस्त 2014 को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) जज नियुक्त हुए थे। उससे पहले वह देश के सबसे बड़े वकीलों में गिने जाते थे। उन्हें सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने 2जी घोटाला मामले में विशेष पब्लिक प्रॉसिक्यूटर नियुक्त किया था.उनके पिता यू. आर. ललित बॉम्बे हाई कोर्ट में अतिरिक्त जज रह चुके हैं। यू. आर. ललित भी देश के सबसे बड़े वकीलों में गिने जाते हैं। जस्टिस ललित के दादा रंगनाथ ललित भी महाराष्ट्र के सोलापुर ज़िले के नामी वकीलों में से एक थे।

3 तलाक की व्यवस्था रद्द की
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में अपने अब तक के कार्यकाल में जस्टिस ललित कई बड़े फैसलों के हिस्सा रहे हैं। 22 अगस्त 2017 को तलाक-ए-बिद्दत यानी एक साथ 3 तलाक बोलने की व्यवस्था को असंवैधानिक करार देने वाली 5 जजों की बेंच के वह सदस्य थे। इस मामले में जस्टिस रोहिंटन नरीमन के साथ लिखे साझा फैसले में उन्होंने कहा था कि इस्लाम में भी एक साथ 3 तलाक को गलत माना गया है। पुरुषों को हासिल एक साथ 3 तलाक बोलने का हक महिलाओं को गैर बराबरी की स्थिति में लाता है। ये महिलाओं के मौलिक अधिकार के खिलाफ है।

राजद्रोह कानून पर नोटिस जारी किया
30 अप्रैल 2021 को जस्टिस ललित की अध्यक्षता वाली बेंच ने राजद्रोह के मामले में लगने वाली आईपीसी की धारा 124A की वैधता पर केंद्र को नोटिस जारी किया था। इस मामले में कोर्ट ने मणिपुर के पत्रकार किशोरचन्द्र वांगखेमचा और छत्तीसगढ़ के पत्रकार कन्हैयालाल शुक्ला की याचिका सुनने पर सहमति दी थी।

विजय माल्या को दी सज़ा
हाल ही में जस्टिस ललित ने अवमानना के मामले भगोड़े कारोबारी विजय माल्या को 4 महीने की सज़ा दी थी। कोर्ट ने माल्या पर 2 हज़ार रुपए का जुर्माना भी लगाया था। यह भी कहा कि जुर्माना न चुकाने पर 2 महीने की अतिरिक्त जेल काटनी होगी। बच्चों को यौन शोषण से बचाने पर भी जस्टिस ललित ने अहम आदेश दिया था। उनकी अध्यक्षता वाली बेंच ने माना कि सेक्सुअल मंशा से शरीर के सेक्सुअल हिस्से का स्पर्श पॉक्सो एक्ट का मामला हैय यह नहीं कहा जा सकता कि कपड़े के ऊपर से बच्चे का स्पर्श यौन शोषण नहीं है।

आम्रपाली के फ्लैट खरीदारों को राहत
जस्टिस ललित (Uday Umesh Lalit) उस बेंच में भी रहे जिसने 2019 में आम्रपाली के करीब 42,000 फ्लैट खरीदारों को बड़ी राहत दी थी। तब कोर्ट ने आदेश दिया था कि आम्रपाली के अधूरे प्रोजेक्ट को अब नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन यानी NBCC पूरा करेगा। कोर्ट ने निवेशकों के साथ धोखाधड़ी करने वाले आम्रपाली ग्रुप की सभी बिल्डिंग कंपनियों का RERA रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया। साथ ही, निवेशकों के पैसे के गबन और मनी लॉन्ड्रिंग की जांच का भी आदेश दिया था।

SC/ST एक्ट पर फैसला
अनुसूचित जाति/जनजाति उत्पीड़न एक्ट के तहत तुरंत गिरफ्तारी न करने का आदेश भी जस्टिस ललित की सदस्यता वाली बेंच ने दिया था। कोर्ट ने इस एक्ट के तहत आने वाली शिकायतों पर शुरुआती जांच के बाद ही मामला दर्ज करने का भी आदेश दिया था। हालांकि, बाद में केंद्र सरकार ने कानून में बदलाव कर तुरंत गिरफ्तारी के प्रावधान को दोबारा बहाल कर दिया था।

अयोध्या केस से खुद को किया था अलग
10 जनवरी 2019 को जस्टिस यू यू ललित (Uday Umesh Lalit) ने खुद को अयोध्या मामले की सुनवाई कर रही 5 जजों की बेंच से खुद को अलग किया था। उन्होंने इस बात को आधार बनाया था कि करीब 2 दशक पहले वह अयोध्या विवाद से जुड़े एक आपराधिक मामले में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के लिए वकील के रूप में पेश हो चुके हैं।

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