क्या है चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ और क्या होगीं पावर

देश में एक बार फिर से चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) की चर्चा जोर शोर से चल निकली है। ऐसा इसलिए है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस स्वतंत्रता दिवस समारोह के अपने भाषण में इस पद को सृजित करने का ऐलान किया है। भारत में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बनाने की कवायद 20 साल पुरानी है। कुछ समस्याओं और सेन्य अफसरों के बीच मतभेदों के चलते आज तक चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ अमल में नहीं आ सका।

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ का मतलब है, एक ऐसा अधिकारी जो तीनों सेनाओं के मध्य तालमेल बिठा सके साथ ही सेनाओं और सरकार के बीच सेतु का काम करे। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की जिम्मेदारी होगी कि वह तीनों सेना अध्यक्षों से बात करके प्रधानमंत्री को सलाह दे। सैन्य अभ्यास, रक्षा खरीद, बाहरी देशों के साथ रक्षा सहयोग समेत तमाम मामलों में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ नीति निर्णायक होगा। वह राष्टपति के नीचे रहकर सेन्य शक्ति का इस्तेमाल देश हित में करेगा।#Chiefofarmystaff 
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की सबसे पहले मांग कारगिल युद्ध (1999) के दौरान उठी थी। कारगिल युद्ध में भारतीय सेनाओं ने पाकिस्तान को धूल चटा दी। लेकिन 65 दिनों तक चले इस युद्ध में भारत को भी काफी नुकसान उठाना पड़ा, सैकड़ों जवानों को जान की कुर्बानी देनी पड़ी। तत्कालीन उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी की अध्यक्षता में मंत्रियों के एक समूह ने युद्ध की समीक्षा में पाया कि अगर तीनों सेनाओं बीच बेहतर तालमेल होता तो भारत की क्षति को कम किया जा सकता था। मंत्रियों के समूह ने सरकार को चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बनाने का सुझाव दिया। लेकिन तब वायु सेना ने इसका विरोध कियाए जिसके बाद वाजपेयी सरकार ने पिफलहाल इस प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। 
बाद में बीच का रास्ता निकालते हुए चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी का गठन किया गया था। लेकिन इस कमेटी प्रमुख के पास ज्यादा शक्तियां नहीं हैं। चीफ ऑफ स्टाॅफ कमेटी केवल तीनों सेनाओं के बीच तालमेल का कार्य करता है। वर्तमान समय में वायु सेना प्रमुख बीएस धनोआ इस कमेटी के अध्यक्ष हैं।

इंदिरा गांधी सैम मानेकशां को बनाना चाहती थीं सीडीएस

युद्ध के समय भारतीय सेनाओं के बीच तालमेल की कमी 1999 के पहले के युद्धों में भी जाहिर हो चुकी थी। बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के समय 1971 में भी थल सेना और वायु सेना के बीच समन्वय की कमी खली थी। खबरों के मुताबिक इस कमी को पूरा करने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थल सेना अध्यक्ष सैम मानेकशा को फील्ड मार्शल की रैंक देकर उन्हे सीडीएस बनाना चाहती थी लेकिन तब भी सैन्य प्रमुखों के बीच उभरे मतभेदों के चलते सीडीएस का पद अमल में नहीं आ सका था। बाद में इंदिरा गांधी ने असाधारण वीरता के लिए सैम मानेकशां को फील्ड मार्शल की उपाधि से विभूषित किया था। जनवरी 1973 में मानेकशा को फील्ड मार्शल बनाया गया था। इसके लिए मानेकशां का कार्यकाल भी छह महीने के लिए बढ़ाया गया था।

कई देशों के पास है सीडीएस

सेनाओं के बीच तालमेल की महत्ता इसी से समझी जा सकती है कि अमेरिका, चीन, यूनाइटेड किंगडम, जापान जैसे दुनिया के ताकतवर देशों में चीफ ऑफ डिफेंस जैसी व्यवस्था है। नॉटो देशों की सेनाओं में ये पद हैं। बताया जा रहा है कि विस्तृत भूमिए लंबी सीमाओं, तटरेखाओं और राष्ट्रीय सुरक्षा की चुनौतियों को सीमित संसाधनों से निपटने के लिए भारत के पास एकीकृत रक्षा प्रणाली के लिए चीफ ऑफ डिफेंस पद की बहुत जरूरत थी

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