पृथ्वी से 60 लाख किमी की दूरी से गुजरेगा लघुग्रह, धरती पर प्रलय अभी नहीं

एक विशाल लघुग्रह के धरती के पास से गुजरने का डर लोगों को सता रहा है। लघुग्रह 29 अप्रैल यानी बुधवार को धरती के करीब से गुजरेगा । लेकिन निश्चिंत रहें, डरने की कोई बात नहीं है। लघुग्रह पृथ्वी से 60 लाख किमी की दूरी से गुजरेगा। ऐसे में पृथ्वी पर प्रलय और सुनामी की कोई आशंका नहीं है। खासकर सोशल मीडिया की अफवाहों पर बिल्कुल ध्यान न दें। यह जानकारी आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान एरीज नैनीताल के खगोल वैज्ञानिक डॉ. शशिभूषण पांडे ने दी है। इस समय सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफॉर्म पर लघुघ्रह के पृथ्वी के टकराने और प्रलय आने जैसी बेतुकी खबरें चल रही हैं। जिससे इसको लेकर लोगों में दहशत का माहौल है। वैज्ञानिकों ने लघुग्रह के पृथ्वी के टकराने की आशंका को पूरी तरह से खारिज किया है।

धरती के करीब आ रहा लघुग्रह का आकार करीब 4 किमी माना जा रहा है। वैज्ञानिकों ने इसका नाम 52768 व 1998 OR-2 दिया है। इसकी कक्षा चपटी है। इसकी खोज 1998 में हो गई थी। तभी से इस पर वैज्ञानिक लगातार अध्ययन कर रहे हैं। सूर्य की परिक्रमा करने में इसे 1344 दिन का समय लग जाता है। यह जितना विशाल है, यदि धरती से टकरा गया तो इसमें जरा भी संदेह नहीं कि महाविनाश ला सकता है, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला है। जब यह पृथ्वी के करीब से गुजरेगा तो धरती व इसके बीच की दूरी 63 लाख किमी की होगी।

यूं तो धरती से लघुग्रह की दूरी 63 लाख किमी बहुत अधिक नहीं मानी जाती है फिर इसके धरती से टकराने की आशंका दूर दूर तक नहीं है। लिहाजा इन दिनों इंटरनेट व सोशल मीडिया में चल रही अफवाहें निराधार और बेतुकी हैं। भविष्य में यह ग्रह इससे भी बहुत करीब से होकर गुजरेगा। वैज्ञानिकों ने इसकी गणना भी कर ली है। यह लघुग्रह जब 2197 में धरती के करीब पहुंचेगा तब इसकी दूरी धरती से 18 लाख किमी होगी। तब भी इसके धरती से टकराने की संभावना नहीं बनती।

लघुग्रह हमारे सौर मंडल के सदस्य हैं, जो मंगल व बृहस्पति की कक्षा के बीच लाखों करोड़ों की संख्या में विचरण करते हैं। इसे एस्ट्रॉइड बेल्ट कहते हैं। कभी कभार बृहस्पति के गुरुत्वाकर्षण के कारण ये अपनी कक्षा से छिटक कर बाहर आ जाते हैं और इनमें कुछ धरती के नजदीक भी पहुंच जाते है। पृथ्वी के नजदीक पहुंचने वाले इन पिंडों नियर अर्थ आब्जेक्ट कहा जाता है। जिनके धरती से टकराने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है। जिस कारण पृथ्वी के नजदीक आने वाले वाले इन पिंडों पर वैज्ञानिकों की पैनी नजर रहती है।

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