अगर इस जहां में मजदूर न होता, न होता हवामहल और ना ही ताजमहल होता

एक मई का दिन इतिहास में मजदूर दिवस के तौर पर दर्ज है। दुनिया में मजदूर दिवस मनाने का चलन करीब 132 साल पुराना है। मजदूरों ने काम के घंटे तय करने की मांग को लेकर 1877 में आंदोलन शुरू किया अमेरिका के मजदूर संघों ने मिलकर निश्चकय किया कि वे 8 घंटे से ज्याअदा काम नहीं करेंगे। जिसके लिए संगठनों ने हड़ताल किया।, इस दौरान यह दुनिया के विभिन्न देशों में फैलने लगा। 1 मई 1886 को पूरे अमेरिका के लाखों मज़दूरों ने एक साथ हड़ताल शुरू की। इसमें 11,000 फ़ैक्टरियों के कम से कम तीन लाख अस्सी हज़ार मज़दूर शामिल हुए इस हड़ताल के दौरान शिकागो की हेमार्केट में बम ब्लास्ट हुआ। जिससे निपटने के लिए पुलिस ने मजदूरों पर गोली चला दी जिसमें कई मजदूरों की मौत हो गई और 100 से ज्याेदा लोग घायल हो गए। इसके बाद 1889 में अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में ऐलान किया गया कि हेमार्केट नरसंहार में मारे गये निर्दोष लोगों की याद में 1 मई को अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाएगा और इस दिन सभी कामगारों और श्रमिकों का अवकाश रहेगा।

भारत में मजदूर दिवस कामकाजी लोगों के सम्मान में मनाया जाता है। भारत में लेबर किसान पार्टी ऑफ हिंदुस्तान ने 1 मई 1923 को मद्रास में इसकी शुरुआत की थी। हालांकि उस समय इसे मद्रास दिवस के रूप में मनाया जाता था।

मई 1986 से मजदूर दिवस की शुरुआत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हुई। उस समय अमेरिका के ‘शिकांगो’ में मजदूरों ने लम्बा आंदोलन किया था, क्योंकि यह वह दौर था जब मिलों में मजदूर 12-16 घंटे काम किया करते थे। मजदूर हमारे समाज का वह तबका है जिस पर समस्त आर्थिक उन्नति टिकी होती है । मजदूर अपना श्रम बेचता है । बदले में वह न्यूनतम मजदूरी प्राप्त करता है । उसका जीवन-यापन दैनिक मजदूरी के आधार पर होता है ।

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