बिहार का रण: महागठबंधन का सीएम चेहरा बनते दिख रहे तेजस्‍वी, नाम पर नरम पड़े घटक दल

महागठबंधन (Mahagathbandhan) में नेतृत्व का विवाद जल्द ही सुलझता दिख रहा है। उम्मीद है कि बैठक की औपचारिकता के जरिए तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) को मुख्‍यमंत्री चेहरा (CM Face) बनाकर उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ने पर सहमति बनती दिख रही है। राष्‍ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) कह रहे हैं कि बैठक में जिसके नाम पर सहमति होगी, वे स्वीकार कर लेंगे। हालाँकि तेजस्‍वी के नाम पर जीतनराम मांझी अभी सहमत नहीं, लेकिन उन्‍हें कोई तरजीह नहीं दे रहा है। विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के अध्यक्ष मुकेश सहनी (Mukesh Sahni) अब तेजस्वी यादव को महागठबंधन का नेता बता रहे हैं तो कांग्रेस (Congress) का भी कहना है कि नेता राष्‍ट्रीय जनता दल (RJD) का ही नेता होना चाहिए।

महागठबंधन में नेतृत्‍व के मुद्दे पर उपेंद्र कुशवाहा अबतक चुप थे। वे कहते हैं कि महागठबंधन की बैठक में वे अपनी राय रखेंगे। अगर उनकी राय खारिज हो गई तो उस हालत में भी सहयोगी दलों (Alliance Parties) के फैसले को स्वीकार कर लेंगे।

एक अन्य घटक VIP के अध्यक्ष मुकेश सहनी कुछ दिनों तक मांझी के संपर्क में रहने के बाद अब RJD के साथ आ गए हैं। उन्होंने तेजस्वी यादव को महागठबंधन का नेता बताना शुरू कर दिया है। जहां तक कांग्रेस का सवाल है, वह पंचायत करने के मूड में थी, लेकिन उसके रूख में भी बदलाव आया है। कांग्रेस के एक हिस्से का तर्क था कि बेशक RJD बड़ा दल है और उसका नेता होना भी चाहिए, लेकिन नेतृत्व की जवाबदेही किसी बुजुर्ग और परिपक्व चेहरे को दिया जाए। तेजस्वी नौजवान हैं। उनका भविष्य है। उन्हें पांच साल इंतजार करना चाहिए। पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रेमचंद्र मिश्रा कहते हैं- सबसे बड़े दल के नाते RJD महागठबंधन का स्वाभाविक नेता है, लेकिन यह आपस में मिल बैठकर तय हो। कोरोना संकट खत्म हो तो नेतृत्व का मसला भी हल हो जाएगा।

मालूम हो कि महागठबंधन के दलों में नेतृत्व के सवाल पर लंबे समय से तकरार जारी है। पूर्व CM जीतनराम मांझी (Jitan Ram Manjhi) इसी सवाल पर बिदके हुए हैं। उन्होंने कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के सामने भी अपनी बात रखी, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। उन्होंने अल्टीमेटम के तौर पर कई तारीखें तय कीं। महागठबंधन के किसी दल ने उन्हे कोई तवज्जो नहीं दी। लिहाजा, अब वे खुद किनारे हो गए हैं। इधर से कोई उन्हें मनाने नहीं जा रहा है। RJD तो आधिकारिक तौर पर अब मांझी का नाम भी नहीं ले रहा है। मांझी और उनकी पार्टी की वह हैसियत नहीं है कि घटक दल उन्हें खुश रखने के लिए RJD से संबंध खराब कर लें।

तेजस्वी पर राष्‍ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) का हमला जितना तेज हो रहा है, महागठबंधन के दलों के बीच नेता के तौर पर उनकी स्वीकार्यता उतनी ही बढ़ रही है। NDA के घटक दल भारतीय जनता पार्टी (BJP) और जपता दल यूनाइटेड (JDU) के प्रायः सभी नेता विपक्ष के नाम पर तेजस्वी यादव पर ही हमला कर रहे हैं। 15 साल बनाम 15 साल का नारा जो RJD सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) के राजकाज को बताने के लिए गढ़ा गया है, वह अंततः तेजस्वी यादव पर ही केंद्रित है। NDA यही चाह रहा है कि RJD के साथ उसकी सीधी लड़ाई हो। उसकी रणनीति लड़ाई को आमने-सामने रखने की है। ऐसे में महागठबंधन के घटक दलों में यह समझ विकसित हो रही है कि चुनाव मैदान में तीसरे कोण (Third Front) की गुंजाइश नहीं है। यह समझ उन्हें तेजस्वी के नेतृत्व में गोलबंद होने के लिए प्रेरित करता है।

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