71वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पूरे देश को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद संबोधित किया। अपने संबोधन में सबसे पहले राष्ट्रपति ने सभी को गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं दीं, और कहा कि 71वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर, मैं देश और विदेश में बसे, भारत के सभी लोगों को, हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं, साथ ही कहा कि हमारे संविधान ने हम सब को एक स्वाधीन लोकतंत्र के नागरिक के रूप में कुछ अधिकार प्रदान किए हैं, लेकिन संविधान के अंतर्गत ही, हम सब ने ये ज़िम्मेदारी भी ली है कि हम न्याय, स्वतंत्रता और समानता और भाईचारे के मूलभूत लोकतान्त्रिक आदर्शों के प्रति सदैव प्रतिबद्ध रहें। इसके अलावा राष्ट्रपति ने आगे कहा कि ”जन-कल्याण के लिए, सरकार ने कई अभियान चलाए हैं। ये बात विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि नागरिकों ने, स्वेच्छा से उन अभियानों को, लोकप्रिय जन-आंदोलनों का रूप दिया है। जनता की भागीदारी के कारण ‘स्वच्छ भारत अभियान’ ने बहुत ही कम समय में प्रभावशाली सफलता हासिल की है। भागीदारी की यही भावना अन्य क्षेत्रों में किए जा रहे प्रयासों में भी दिखाई देती है फिर चाहे वो रसोई गैस की सब्सिडी को छोड़ना हो, या फिर डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देना।”
साथ ही राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आगे कहा कि देश के हर क्षेत्र में विकास को बढ़ावा देना ही हमारी प्राथमिकता है। फिर चाहे वो जम्मू-कश्मीर हो, लेह-लद्दाख हो, पूर्वोत्तर क्षेत्रों के राज्य हों या हिंद महासागर में स्थित हमारे द्वीप-समूह हों। देश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था पर बोलते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि देश के विकास के लिए एक सुदृढ़ आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था का होना भी जरूरी है।
इसके अलावा शिक्षा के क्षेत्र में भारत को मिली उपलब्धियों पर ध्यान केंद्रित किया और कहा कि ”भारत में सदैव ज्ञान को शक्ति, प्रसिद्धि या धन से अधिक मूल्यवान माना जाता है। शैक्षिक संस्थाओं को भारतीय परंपरा में ज्ञान अर्जित करने का स्थान अर्थात विद्या का मंदिर माना जाता है।”
अपने संबोधन में राष्ट्रपति कोविंद ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अहिंसावादी विचारों पर युवाओं को चलने की सलाह दी और कहा कि ‘‘युवाओं को, गांधीजी के अहिंसा के मंत्र को सदैव याद रखना चाहिए, जो कि मानवता को उनका अमूल्य उपहार है।’’