FATF ने किया बड़ा फैसला, 2020 तक ग्रे लिस्ट में ही रहेगा पाकिस्तान

पाकिस्तान ने लाख कोशिशें की…लेकिन कोई फायदा नहीं हुई। पाक ने खुद को ब्लैक लिस्ट में शामिल होने से बचाने की लिए खूब हाथ पैर मारे पर अफसोस नतीजा कुछ नहीं निकला और आखिरकार फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) ने पाकिस्तान (Pakistan)को 2020 तक ग्रेलिस्ट में रखने का फैसला कर लिया है। FATF की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए आतंकी फंडिंग (Terror Financing) और मनी लॉन्ड्रिंग (Money Laundering) रोकने में नाकाम रहने को लेकर फरवरी 2020 तक पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट (Grey List) में ही रखने का फैसला किया है।
एफएटीएफ एक अंतर-सरकारी निकाय है जो 1989 में मनी लॉन्ड्रिंग, आतंकी फंडिंग को रोकने समेत अन्य संबंधित खतरों का मुकाबला करने के लिए स्थापित किया गया है। पाकिस्तानी न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार मंगलवार को पेरिस में हुई बैठक में एफएटीएफ ने उन उपायों की समीक्षा की जो पाकिस्तान ने मनी लॉन्ड्रिंग और आतंक के वित्तपोषण को नियंत्रित करने के लिए उठाए हैं। पेरिस स्थित टास्क फोर्स ने पाकिस्तान से आतंकी फंडिंग को पूरी तरह से रोकने के लिए अतिरिक्त उपाय करने का निर्देश दिया है।

फरवरी 2020 में अंतिम पैसला

बता दें कि फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) अब फरवरी 2020 में पाकिस्तान की स्थिति पर अंतिम फैसला लेगा। रिपोर्ट के मुताबिक एफएटीएफ ने टास्क फोर्स की सिफारिशों को लागू करने के लिए पाकिस्तान को चार महीने की राहत देने का फैसला किया है। इस बात की औपचारिक घोषणा शुक्रवार को एफएटीएफ के सत्र के आखिरी दिन की जाएगी।

पाक वित्त मंत्रालय ने रिपोर्ट को किया खारिज

वही, पाकिस्तान के वित्त मंत्रालय के प्रवक्ता उमर हमीद खान ने पाकिस्तान के ग्रे लिस्ट में बने रहने की रिपोर्ट को खारिज कर दिया है। उन्होंने कहा है कि यह सच नहीं है और 18 अक्टूबर से पहले कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। इससे पहले पेरिस में एफएटीएफ की बैठक में पाकिस्तान के आर्थिक मामलों के मंत्री हम्माद अजहर ने आतंकी फंडिंग की जांच को लेकर 27 में से 20 मानकों में पाकिस्तान के द्वारा किए गए कार्यों की तारीफ की थी।

पाकिस्तान के समर्थन में चीन, तुर्की और मलेशिया

पाकिस्तानी मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक चीन, तुर्की और मलेशिया ने एफएटीएफ की बैठक में पाकिस्तान द्वारा उठाए गए कदमों की सराहना की। बता दें कि किसी भी देश को ब्लैकलिस्ट नहीं करने के लिए कम से कम तीन देशों के समर्थन की आवश्यकता होती है।

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