क्या इस देश ने भ्रष्टाचार को स्वीकार कर लिया है?

भारत के महान वैज्ञानिक और पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा था कि ” किसी देश को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने में.. सबसे महत्वपूर्ण भूमिका, माता-पिता और शिक्षक निभा सकते हैं” . लेकिन हमारे देश में अक्सर करप्शन परिवारों को तोड़ता नहीं, बल्कि जोड़ता है. परिवार का एक व्यक्ति भ्रष्टाचार करता है, तो बाकी लोग उसे रोकने की बजाय उसका साथ देते हैं। आधी कांग्रेस इस वक्त ज़मानत पर है। और आज हमारे पास भ्रष्टाचार की Bail गाड़ी है। इस Bail गाड़ी पर कांग्रेस के कई नेता सवार हैं। 

पी चिदंबरम का मामला भी पारिवारिक भ्रष्टाचार का मामला है। चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम.. INX मीडिया घोटाले में ज़मानत पर हैं। तो चिदंबरम की पत्नी नलिनी चिदंबरम पर भी सारदा चिटफंड घोटाले में रिश्वत लेने के आरोप लग चुके हैं। उधर उनकी बहू और बेटे पर Tax चोरी का मामला भी चल रहा है। 

कार्ति चिदंबरम लोकसभा के सांसद हैं, उनके पिता पी चिदंबरम राज्यसभा के सांसद हैं। उनकी पत्नी मद्रास हाइकोर्ट में वरिष्ठ वकील हैं। सांसद और वकील होने के नाते, इन लोगों पर भ्रष्टाचार से लड़ने की जिम्मेदारी थी। लेकिन इन्होंने भ्रष्टाचार को अपने DNA में शामिल कर लिया।

पिछले 72 वर्षों में धीरे धीरे देश के लोगों ने भ्रष्टाचार से जुड़ा एक कड़वा सच स्वीकार कर लिया था। ये कड़वा सच ये था कि हमारे देश में भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों का कुछ नहीं हो सकता। हमारे समाज ने इससे लड़ने की बजाय, इसे स्वीकार करना शुरू कर दिया था। धीरे-धीरे..खाओ और खाने दो कि पद्धति हमारे समाज का अंग बन गई। करप्शन को एक ज़रूरी Vitamin जैसा बना दिया गया। ये सफलता के लिए एक ज़रूरी Suplement बन गया। करप्शन में सबको फायदा नज़र आने लगा, और ये Success यानी कामयाबी के एक फॉर्मूले की तरह समाज में स्थापित हो गया।

पिछले वर्ष हुए एक सर्वे में 27 प्रतिशत भारतीयों ने माना था कि उन्हें सरकारी काम कराने के लिए रिश्वत देनी पड़ती है। Global Fraud Survey 2018 के मुताबिक भारत की 40 प्रतिशत कंपनियों ने माना था कि व्यापार के दौरान उन्हें रिश्वत का सहारा लेना पड़ता है। एक और रिसर्च के मुताबिक वर्ष 2017 में भारतीयों ने 6 हज़ार 350 करोड़ रुपये की रिश्वत दी थी, हालांकि वर्ष 2005 में देश के लोगों ने अपनी कमाई से 20 हज़ार 500 करोड़ रुपये की रिश्वत अदा की थी। यानी भ्रष्टाचार में थोड़ी कमी ज़रूर आई है। Global Corruption Index 2018 के मुताबिक 180 देशों में…भारत 78 वें नंबर पर है। इस Ranking में जिस देश का स्थान जितना नीचे होता है…उसे उतना ही कम भ्रष्ट माना जाता है।

यानी भ्रष्टाचार को हमारे समाज के अभिन्न अंग का दर्जा हासिल हो चुका है। लेकिन ये अभिन्न अंग नहीं बल्कि एक ट्यूमर है जो हमारे देश को खोखला कर रहा है। इसलिए अब करप्शन के इस ज़हर को समाप्त करने के लिए Antidote की ज़रूरत है।

भारत एक कृषि प्रधान देश है, क्योंकि भारत की करीब 50 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है. लेकिन आज का सच ये है कि भारत एक भ्रष्टाचार प्रधान देश है। और अब समय आ गया है कि हमें इसे स्वीकार कर लेना चाहिए। क्योंकि इस भ्रष्टाचार में ऊपर से लेकर नीचे तक, सब मिले हुए हैं।

भारत में बर्थ सर्टिफिकेट से लेकर, Death सर्टिफिकेट तक बनवाने के लिए रिश्वत देनी पड़ती है। स्कूलों में Donations, अस्पतालों में गलत Billing, सरकारी दफ्तरों में रिश्वतखोरी..ये सब भ्रष्टाचार के उदाहरण हैं . भ्रष्टाचार को हमारी फिल्मों में खलनायक का दर्जा दिया गया है। 70 और 80 के दशक में फिल्मों का नायक भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ता था। वो भ्रष्ट नेताओं और अधिकारियों को सबक सिखाता था। तब नायक की छवि Angry Young Man वाली हुआ करती थी। 

मुंशी प्रेमचंद की एक मशहूर कहानी है.. जिसका नाम है नमक का दारोगा। इस कहानी का एक पात्र है पंडित अलोपीदीन.. जिसका मानना है कि न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं, इन्हें वो जैसे चाहती है नचाती हैं।

इसी कहानी के एक और पात्र.. मुंशी वंशीधर के पिता कहते हैं कि मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चांद है, जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है, ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है, जिससे सदैव प्यास बुझती है। वेतन मनुष्य देता है, इसी से उसकी वृद्धि नहीं होती। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसी से उसकी बरकत होती है।

ये कथन आज भी हमारे समाज के एक बड़े हिस्से की सच्चाई है . जिसे बदलना बहुत ज़रूरी है। भ्रष्टाचार का विरोध भी देशभक्ति की श्रेणी में आता है, आप इसे प्रगतिशील राष्ट्रवाद यानी Progressive Nationalism भी कह सकते हैं। लेकिन ये राष्ट्रवाद उन लोगों से बर्दाश्त नहीं होता.. जिनकी जिंदगी भ्रष्टाचार के पेड़ के नीचे गुज़रती है। भ्रष्टाचार के इस पेड़ के कट जाने का सबसे ज्यादा दुख उन पत्रकारों को हो रहा है, जो लुटियंस दिल्ली के लाडले हैं। अंग्रेज़ी बोलने वाले कई सेलिब्रिटिज़, और डिजाइनर पत्रकार कल रात से ही परेशान हैं। शायद इन लोगों को अभी कई रातों तक नींद नहीं आएगी। क्योंकि जिन नेताओं को इन लोगों ने अपना मसीहा समझा, उनके अच्छे दिन अब लद चुके हैं।

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