लोकपाल के वरिष्ठतम सदस्य दिलीप बाबसाहेब भोसले ने आज अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया है। डीबी भोसले ने इस्तीफे की वजह का खुलासा ना करते हुए, इसे निजी बताया है। जस्टिस डीबी भोसले इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश हैं। न्यायमूर्ति भोसले को 27 मार्च, 2019 को लोकपाल के अध्यक्ष न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष ने पद की शपथ दिलाई थी।
वहीं वह मार्च 2019 में सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश पिनाकी चंद्र घोष ने भारत के पहले लोकपाल और भ्रष्टाचार विरोधी निगरानी दल के रूप में शपथ ली थी। हालांकि, लोकपाल जांच कैसे करे जब शिकायत का प्रारूप ही अभी तय नहीं हो पाया है।
ऐसे में भ्रष्टाचार से लड़ाई के लिए जो सर्वोच्च संस्था लोकपाल बनाई गई है वह अभी तक भ्रष्टाचार की शिकायतों की विधिवत जांच शुरू नहीं कर पाई है, क्योंकि अभी तक लोकपाल में शिकायत देने का प्रारूप ही तय नहीं है।
लोकपाल को पद ग्रहण करने का 9 महीने का समय बीत चुका है लेकिन लोकपाल के समक्ष शिकायत करने का प्रारूप अधिसूचित नहीं किया है। जिसके तहत लोकपाल भ्रष्टाचार के किसी मामले का संज्ञान लेकर विधिवत जांच शुरू कर पाए।
प्रारूप तय न होने के कारण लोकपाल आजतक भ्रष्टाचार के किसी मामले की जांच शुरू नहीं कर पाया है। हालांकि सरकार और लोकपाल दोनों ही तरफ से जल्दी ही प्रारूप अधिसूचित होने का विश्वास जताया जा रहा है।
भ्रष्टाचार से लड़ाई की सर्वोच्च संस्था लोकपाल स्थापित करने का कानून 2013 में पास हुआ था। कानून पास होने के पांच साल बाद 2018 में लोकपाल की नियुक्ति हुई। 23 मार्च 2019 को लोकपाल जस्टिस पीसी घोष ने पद की शपथ ली और 27 मार्च को लोकपाल के अन्य सदस्यों ने शपथ ग्रहण कर अपना पद धारण किया।
लोकपाल और सदस्यों को शपथ लेकर पद ग्रहण किये नौ महीने का समय बीत चुका है। इस बीच लोकपाल ने उसके पास आई लगभग 1200 शिकायतें निपटाई हैं लेकिन इन शिकायतों में ज्यादातर सर्विस मैटर, जमीन विवाद या पुलिस अत्याचार आदि के जुड़े मामले थे, जिनमें जांच करने का लोकपाल को क्षेत्राधिकार ही नहीं है। ख़बरों की माने तो कुछ शिकायतें भ्रष्टाचार से संबंधित भी आयी थीं लेकिन उस पर भी न विचार और न ही जांच की जा सकी. ऐसा इसलिए क्योंकि अभी तक शिकायत दाखिल करने का प्रारूप तय नहीं किया गया है।