Sindoor Khela

जानिए क्या है सिंदूर खेला और दुर्गा बलिदान का महत्व

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, शारदीय नवरात्रि के समय में ही Durga Puja का उत्सव भी मनाया जाता है। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि से Durga Puja का शुभारंभ होता है और दशमी के दिन समापन होता है। शारदीय नवरात्रि की षष्ठी से Durga Puja का आगाज होता है। Durga Puja पांच दिन षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी और दशमी तक मनाया जाता है। Durga Puja खासतौर पर बिहार, पश्चिम बंगाल, ओड़िशा, त्रिपुरा, पूर्वी उत्तर प्रदेश समेत देश के अन्य भागों में मनाया जाता है। नवरात्रि के समय में Maa Durga के ही नवस्वरुपों की पूजा की जाती है। उसी में षष्ठी तिथि से Durga Puja के प्रारंभ से Maa Durga के साथ माता लक्ष्मी, माता सरस्वती, भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय की पूजा की जाती है। Durga Puja के प्रथम दिन मां की मूर्ति स्थापित की जाती है, प्राण प्रतिष्ठा होती है और 5वें दिन उनका विसर्जन किया जाता है।


दुर्गा पूजा 2020 की तिथियां

21 अक्टूबर: पहला दिन: मां दुर्गा को आमंत्रण एवं अधिवास, पंचमी तिथि

22 अक्टूबर: दूसरा दिन: नवपत्रिका पूजा, षष्ठी तिथि।

23 अक्टूबर: तीसरा दिन: सप्तमी तिथि।

24 अक्टूबर: चौथा दिन: दुर्गा अष्टमी, कन्या पूजा, सन्धि पूजा तथा महानवमी।

25 अक्टूबर: पांचवा दिन: बंगाल महानवमी, दुर्गा बलिदान, नवमी हवन, विजयदशमी या दशहरा।

26 अक्टूबर: छठा दिन: दुर्गा विसर्जन, बंगाल विजयदशमी, सिन्दूर उत्सव।

सिंदूर खेला या सिंदूर उत्सव
जिस दिन Maa Durga को विदा किया जाता है यानी जिस दिन प्रतिमा विसर्जन के लिए ले जाया जाता है, उस दिन बंगाल में सिंदूर खेला या सिंदूर उत्सव होता है। यह विदाई का उत्सव होता है। इस दिन सुहागन महिलाएं पान के पत्ते से Maa Durga को सिंदूर अर्पित करती हैं। उसके बाद एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं और उत्सव मनाती हैं। एक दूसरे के सुहाग की लंबी आयु की शुभकामनाएं भी देती हैं। ऐसी भी मान्यता है कि Maa Durga 9 दिन तक मायके में रहने के बाद ससुराल जा रही हैं, इस अवसर पर सिंदूर उत्सव मनाया जाता है।


दुर्गा बलिदान

दुर्गा बलिदान का तात्पर्य दुर्गा पूजा के समय दी जाने वाली पशु बलि से है। यह हमेशा नवरात्रि की नवमी तिथि को दी जाती है। बलिदान के लिए अपराह्न का समय अच्छा माना गया है। हालांकि अब लोग पशु बलि की जगह सब्जियों के साथ सांकेतिक बलि देते हैं।

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