आसान नहीं है तालिबान का अफगानिस्तान पर कब्ज़ा, बीच में आएंगे नॉर्दर्न अलायंस के लड़ाके

हाल ही में चल रहे तालिबान और अफगानिस्तान के विवाद में एक नया मौड़ आया है अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों के निकलने के बाद ताबिलान लगातार नए-नए इलाकों पर कब्जा करते हुए आगे बढ़ रहा है। तालिबानी आतंकवादियों ने अफगानिस्तान के मध्य में बसे शहर गजनी को घेर लिया है। आतंकियों ने नागरिकों के घरों के अपना ठिकाना बना लिया है और वहीं से अफगान सैनिकों पर ताबड़तोड़ गोलियां चला रहे हैं।

अमेरिका-तालिबान संघर्ष का सांकेतिक अंत

आपको बता दें कि अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ युद्ध का नेतृत्व करने वाले अमेरिकी जनरल ऑस्टिन मिलर ने सोमवार को कमांड छोड़ दिया और इसके साथ ही अमेरिका-तालिबान संघर्ष का सांकेतिक अंत हो गया। हालांकि, तालिबान की राह इतनी भी आसान नहीं है। 1990 के दशक में तालिबान से लोहा लेने वाले लड़ाकों का संगठन नॉर्दर्न अलायंस फिर से खड़ा होने वाला है। 1996 से 2001 तक तालिबान से दो-दो हाथ करने वाले इस संगठन को भारत, रूस और ईरान का समर्थन प्राप्त था। अब जब तालिबान ने फिर से अपना सर उठा लिया तो अलायंस के नेताओं ने भी रणनीति पर बातचीत शुरू की है।हेरात प्रांत के कद्दावर नेता इस्माइल खान अब 70 वर्ष के हो चुके हैं, फिर भी उनमें तालिबान से लोहा लेने की जबर्दस्त ललक दिख रही है।

उधर, नॉर्दर्न अलायंस के उपाध्यक्ष रह चुके मार्शल अब्दुल राशिद दोस्तम ने भी फिर से कमर कसने को तैयार हैं। हमारे सहयोगी अखबार द इकनॉमिक टाइम्स (ET) को पता चला है कि दर्जनों लड़ाकों ने उनके नेतृत्व में तालिबान के दांत खट्टे करने की कसम खाई है। इनके अलावा, अलायंस के एक और सहयोगी अत्ता मोहम्मद नूर ने भी तालिबान के खात्मे का संकल्प दुहराया है। ध्यान रहे कि इसी नॉर्दर्न अलायंस ने 1996 से 2001 के बीच तालिबान का तब सामना किया था जब वो काफी उभार पर था, फिर भी वह पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा नहीं कर सका था क्योंकि अलायंस के लड़ाके उसकी राह में दीवार बनकर अड़े थे।

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