आरजेडी के साथ बिहार के वामदलों की बुधवार को हुई मीटिंग में सहमति बनी कि RJD, कांग्रेस, सभी वाम पार्टियां व अन्य लोकतंत्रिक दल साथ मिलकर सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। हालांकि, सीटों की संख्या को लेकर सवाल बरकरार है। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि बिहार में वाम दलों का महागठबंधन में शामिल होना विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बड़ा फैसला है। राष्ट्रीय जनता दल, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ होने का मतलब सिर्फ सांगठनिक ताकत और जनाधार में ही इजाफा के तौर नहीं देखा जाना चाहिए। इसके एक और राजनीतिक मायने भी हैं। दरअसल, इस डील के साथ ही यह तय हो गया है कि प्रदेश के दो युवा नेता तेजस्वी यादव और कन्हैया कुमार एक मंच पर आ जाएंगे।
दरअसल, हाल के दिनो में जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष Kanhaiya Kumar की तुलना लालू प्रसाद यादव की राजनीतिक विरासत संभाल रहे पूर्व डिप्टी CM तेजस्वी यादव से की जाती रही है। तथ्य यह भी है कि विपक्ष के दोनों नेता युवा हैं। लगभग हमउम्र भी हैं और दोनों की अपनी सियासी क्षमता है। Kanhaiya Kumar ओजस्वी वक्ता हैं तो तेजस्वी का बिहार में बड़ा राजनीतिक जनाधार है।
बीते जनवरी-फरवरी में जब कन्हैया कुमार CAA-NRC के विरोध में ‘जन गण मन यात्रा’ निकाल रहे थे तो उनके मुखर अंदाज की चारों तरफ चर्चा होने लगी। यही वजह रही कि उन्होंने मुस्लिम समुदाय में सहानुभूति पाई और अपनी अच्छी पैठ भी बना ली। इसी दौरान कहा जाने लगा कि वह तेजस्वी को टक्कर दे रहे हैं। जाहिर है सियासी कयासबाजी के बीच तेजस्वी ने भी 23 फरवरी से बिहार की यात्रा शुरू कर दी और CAA, NRC के साथ बेरोजगारी को भी अपने एजेंडे में शामिल कर लिया।
हालांकि, इस दौरान एक कॉमन बात जो नजर आई वह ये कि कन्हैया और तेजस्वी एक-दूसरे पर निशाना नहीं साधते थे। कन्हैया के निशाने पर केन्द्र की मोदी सरकार होती थी तो तेजस्वी के निशाने पर बिहार की NDA सरकार और नीतीश कुमार-सुशील मोदी रहे। ऐसा माना जा रहा है कि इस बार भी ऐसी ही तस्वीर देखने को मिलेगी जब ये दोनों एक मंच पर एक साथ नजर आएंगे।
राजनीतिक जानकार यह भी मानते हैं कि अगर Kanhaiya Kumar अकेले बिहार में मेहनत करते रहते तो हो सकता है कि वह आने वाले समय में विकल्प भी बन सकते थे। दूसरी तरफ, तेजस्वी यादव को तैयार विकल्प के तौर पर देखा जाता है। बिहार में नीतीश कुमार के विकल्प के रूप में तेजस्वी चेहरा हो सकते है। कन्हैया अच्छा बोलते हैं, पर वैकल्पिक चेहरा नहीं हो सकते।
इसके साथ ही यह भी तथ्य है कि Kanhaiya Kumar की जातिवादी राजनीति में भी फिट नहीं बैठते हैं। ऐसे में वामदलों के गिरते जनाधार के बीच Kanhaiya Kumar का Tejaswi yadav के साथ आने से एक बात तो तय हो जाएगा कि वोटों के बिखराव पर रोक लगेगी जो आने वाले समय में महागठबंधन के लिए फायदेमंद साबित होंगे। इसके साथ यह भी कि अगर ये दोनों ही एक मंच पर आते हैं तो दोनों के एजेंडे भी साफ होंगे। एक के निशाने पर PM मोदी तो दूसरे के निशाने पर सीएम नीतीश कुमार होंगे।