ऐसा शायद ही कोई मौका हो जब देश में माहौल खराब करने के मामले में PFI का नाम सामने न आए। चाहे बाबरी मस्जिद गिराए जाने के समय की बात हो या इस साल CAA और NRC को लेकर माहौल खराब करने का मामला हो, PFI इन चीजों के लिए जिम्मेदार ठहराई जाती रही है।
अब हाथरस कांड के बाद एक बार फिर से PFI का नाम सामने आ रहा है। कहा जा रहा है कि PFI ऐसे मौके पर मोटी रकम खर्च करके प्रदेश का माहौल खराब करने की तैयारी में था मगर खुफिया एजेंसियों की सतर्कता की वजह से वो अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाए।
क्या है पीएफआई? क्या हैं इसके दावे
पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया या PFI एक चरमपंथी इस्लामिक संगठन है। संगठन अपने को पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के हक में आवाज उठाने वाला बताता है। बताया जाता है कि संगठन की स्थापना 2006 में नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट के उत्तराधिकारी के रूप में हुई। संगठन की जड़े केरल के कालीकट में गहरी हैं। फिलहाल इसका मुख्यालय दिल्ली के शाहीन बाग में बताया जा रहा है। शाहीन बाग वो ही इलाका जहां पर CAA और NRC के विरोध में पूरे देश में सबसे लंबा आंदोलन चला था।
एक मुस्लिम संगठन होने के कारण इस संगठन की ज्यादातर गतिविधियां मुस्लिमों के इर्द गिर्द ही घूमती हैं। कई ऐसे मौके ऐसे भी आए हैं जब इस संगठन से जुड़े लोग मुस्लिम आरक्षण के लिए सड़कों पर आए हैं। संगठन 2006 में उस समय सुर्ख़ियों में आया था जब दिल्ली के रामलीला मैदान में इनकी तरफ से नेशनल पॉलिटिकल कांफ्रेंस का आयोजन किया गया था। तब लोगों की एक बड़ी संख्या ने इस कांफ्रेंस में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी।
फिलहाल कहा जा रहा है कि इस संगठन की जड़े देश के 24 राज्यों में फैली हुई है। कहीं पर इसके सदस्य अधिक सक्रिय हैं तो कहीं पर कम। मगर मुस्लिम बहुल इलाकों में इनकी जड़े काफी गहरी है इससे इनकार नहीं किया जा रहा है। संगठन खुद को न्याय, स्वतंत्रता और सुरक्षा का पैरोकार बताता है और मुस्लिमों के अलावा देश भर के दलितों, आदिवासियों पर होने वाले अत्याचार के लिए समय समय पर मोर्चा खोलता है।
एनडीएफ के अलावा कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी , तमिलनाडु के मनिथा नीति पासराई , गोवा के सिटिजन्स फोरम, राजस्थान के कम्युनिटी सोशल एंड एजुकेशनल सोसाइटी, आंध्र प्रदेश के एसोसिएशन ऑफ सोशल जस्टिस समेत अन्य संगठनों के साथ मिलकर PFI ने कई राज्यों में अपनी पैठ बना ली है। इस संगठन की कई शाखाएं भी हैं। जिसमें महिलाओं के लिए- नेशनल वीमेंस फ्रंट और विद्यार्थियों के लिए कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया। गठन के बाद से ही इस संगठन पर कई समाज विरोधी व देश विरोधी गतिविधियों के आरोप लगते रहे हैं।
पीएफआई का विवादों से पुराना नाता
PFI का विवादों से पुराना नाता हैं। इसे स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेट ऑफ इंडिया यानी सिमी की बी विंग कहा जाता है। साल 1977 में संगठित की गई सिमी को 2006 में प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसके बाद माना जाता है कि मुसलमानों, आदिवासियों और दलितों का अधिकार दिलाने के नाम पर इस संगठन का निर्माण किया गया।
ऐसा इसलिए माना जाता है कि PFI की कार्यप्रणाली सिमी जैसी ही थी। साल 2012 में भी इस संगठन को बैन करने की मांग उठ चुकी है। उसके बाद इस साल यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या ने भी संगठन को बैन करने की मांग की थी। इसके लिए गृह मंत्रालय को पत्र भी लिखा गया है मगर अब तक परमीशन नहीं मिली है।
मालूम हो कि केरल सरकार ने इस संगठन का बचाव करते हुए केरल हाईकोर्ट को दलील दी थी कि यह सिमी से अलग हुए सदस्यों का संगठन है, जो कुछ मुद्दों पर सरकार का विरोध करता है। सरकार के दावों को कोर्ट ने खारिज करते हुए प्रतिबंध को बरकरार रखा था। इतना ही नहीं पूर्व में इस संगठन के पास से केरल पुलिस द्वारा हथियार, बम, CD और कई ऐसे दस्तावेज बरामद किए गए थे जिसमें यह संगठन अलकायदा और तालिबान का समर्थन करती नजर आयी थी।
यूपी में पीएफआई को बैन करना आवश्यक
इस संगठन के कार्यकर्ताओं का नाम लव जिहाद से लेकर दंगा भड़काने, शांति को प्रभावित करने तक के मामले में काफी पहले भी आ चुका है। माना जाता है कि संगठन एक आतंकवादी संगठन है जिसके तार कई अलग-अलग संगठनों से जुड़े हैं।
केंद्रीय एजेंसियों के साथ उत्तर प्रदेश पुलिस की ओर से साझा किए गए ताजा खुफिया इनपुट और गृह मंत्रालय के मुताबिक, यूपी में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध के दौरान शामली, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बिजनौर, बाराबंकी, गोंडा, बहराइच, वाराणसी, आजमगढ़ और सीतापुर क्षेत्रों में PFI सक्रिय रहा है। दंगे भड़काने में भी इनकी भूमिका रही है। माहौल को खराब करने के लिए संगठन हर तरह की मदद करने में आगे रहता है।