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रूस-यूक्रेन मुद्दा: भारत के लिए महंगा न पड़ जाए यूक्रेन पर स्टैंड, UNSC में स्थायी सीट की संभावना खत्म

Russia Ukraine War: रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Russian President Vladimir Putin) इन दिनों आकस्मिक झटकों को झेल रहे हैं. यूक्रेन पर हमले के बीच न्यूक्लियर अटैक की अटकलें तेज हैं. पुतिन हमेशा से अप्रत्याशित चाल चलने के लिए जाने जाते हैं. उनकी छवि को देखते हुए कोई भी परमाणु हमले की उनकी धमकी को जरा भी लापरवाही से नहीं ले रहा है. पश्चिमी देशों ने रूस पर कई तरह की पाबंदियां लगा दी हैं. उम्मीद है कि पुतिन यूक्रेन के खिलाफ चल रहे युद्ध में और विनाशकारी रुख अख़्तियार कर सकते हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत बैंकिंग पेमेंट सिस्टम स्विफ्ट (SWIFT) से बाहर होने की वजह से रूसी व्यापार पर हानिकारक प्रभाव पड़ेगा.

पश्चिमी देशों की पाबंदी के बाद रूसी करेंसी रूबल फिल्म इन्सेप्शन (Inception) में दिखाए गए गगनचुंबी इमारतों की तरह ढह रहा है. रूसी संपत्ति के मूल्य ऐतिहासिक कमी नज़र आ रही है. अपनी भावना व्यक्त किए बिना, रूस के रईस वर्तमान स्थिति से जितनी जल्दी हो सके बाहर आना चाहेंगे. रोमन अब्रामोविच (Roman Abramovich) प्रीमियर इंग्लिश फुटबॉल क्लब चेल्सी (Chelsea) को अपने कंट्रोल में लेना चाहेंगे, लेकिन ऐसा होने की संभावना नहीं है.

रूस की अर्थव्यवस्था के लिए डिमोनेटाइजेशन का क्षण
कुछ ही समय में लोग कैश की किल्लत महसूस करने लगेंगे. पैसे निकालने के लिए अपनी बारी का इंतजार करते लोग कतार में लगे ही रहेंगे और अचानक कैश खत्म हो जाएगा. कई व्यवसाय निराशाजनक रूप से बर्बाद जाएंगे. यह रूस की अर्थव्यवस्था के लिए डिमोनेटाइजेशन का क्षण है. वह भी ऐसे समय में जब युद्ध के रूप में मानव निर्मित आपदा सामने है. हालांकि रूस इसे सामरिक सैन्य अभियान कहता है. बर्लिन की दीवार ढहने से हुए कुछ गहरे व्यक्तिगत घावों को महसूस करने वाला और सोवियत संघ (USSR) के गौरवशाली दिनों की कुछ रहस्यमय कल्पनाओं में खोए एक व्यक्ति ने दुनिया के सामने बड़ा संकट खड़ा कर दिया है. यह सब ऐसे वक्त में हो रहा है जब दुनिया अभी तक महामारी से पूरी तरह उबर नहीं पाई है.

मानसिक उन्माद किसी के लिए घातक हो सकता है. नाटो के माध्यम से अमेरिका खुले तौर पर रूस पर दवाब बना रहा है. यूक्रेन में अनावश्यक तबाही मचाने के लिए पुतिन के पास कोई बहाना नहीं है. उन्होंने प्राइम-टाइम कवरेज की लड़ाई में कोविड-19 को एक हद तक परास्त कर दिया है, जो पिछले दो साल से हमारे डिनर-टाइम गपशप का एकमात्र मुद्दा था. लेकिन अब भारत सहित कई देश इस संकट से बुरी तरह से प्रभावित हैं.

सुरक्षा परिषद में मतदान से दूरी की भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है
सच तो यह है कि यूक्रेन ने भारत को फिसलन भरी ढलान पर खड़ा कर दिया है. इससे भी बदतर भारत के दोनों पैर केले के छिलके पर हैं. राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की (Volodymyr Zelensky) की कीव सरकार पर रूस द्वारा छेड़े गए युद्ध के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में मतदान से दूर रहकर भारत ने अपना पारंपरिक रुख अपनाया है. ऐसा लगता है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने नियम-आधारित विश्व व्यवस्था के समर्थन की अभिव्यक्ति पर व्यावहारिक वास्तविक राजनीति को चुना है. लेकिन इसके लिए भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है. हालांकि यह भारत की सुरक्षा को प्रभावित करने वाले मामलों पर पश्चिमी देशों और यूएनएससी की कार्रवाइयों के खिलाफ एक ऐतिहासिक नाराजगी’ की उपज हो सकती है. जो भी हो कुछ अपवादों को छोड़कर, अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में नैतिक महत्वाकांक्षा अधिक प्रचलित है, लेकिन ये असाधारण समय हैं. यह भारत के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में परमानेंट मेंबर की सीट के लिए समर्थन जुटाने का समय था. भारत अपनी कूटनीतिक चाल बदलकर स्थायी सदस्य बनने की योग्यता हासिल कर सकता था. लेकिन हमने अपने तीखे रवैये के सार्वजनिक प्रदर्शन के साथ उन संभावनाओं को ख़त्म कर दिया.

यह गुटनिरपेक्षता नहीं थी
यह गुटनिरपेक्षता नहीं, कायरता थी. कभी-कभी यह आवृत्ति की स्थिति से बाहर निकलने में मदद करता है. भारत ने जादू के मंत्र से किसी को मूर्ख नहीं बनाया है. यहां ध्यान देने योग्य था तो विरोधाभास. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में मतदान से परहेज करने वाले दो देशों में भारत के साथ यूएई और हां चीन भी था. भारत उम्मीद करता है कि रूस हमारी सीमाओं पर किसी भी चीनी विस्तारवाद को रोकने के लिए उसके साथ खड़ा होगा. यह जोखिम भरा जुआ है, क्योंकि अब तक रूस इन बातों से बेपरवाह रहा है. बीजेपी सरकार का समर्थन करने वाले रूढ़िवादी विश्लेषक इसे मोदी का मास्टरस्ट्रोक बता रहे हैं. बौद्धिक रूप से बेईमान थिंक-टैंक इसे एक अच्छा संतुलन बता रहे हैं. वे हास्यास्पद तरीके से इसे मोदी सिद्धांत के रूप में लेबल कर रहे हैं. ये तो मज़ाक है. वे एक घातक गलती कर सकते हैं. भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता कर सकते हैं. यदि कल चीन भारत के खिलाफ दो मोर्चों पर युद्ध में अपने सहयोगी पाकिस्तान के साथ साझेदारी करता है, तो यह उम्मीद करना मूर्खता होगी कि मास्को शांतिवादी की भूमिका निभाएगा.

आइए हम उसी वास्तविक राजनीति की बात करें जो भारत ने संयुक्त राष्ट्र में लागू की थी: रूस को और क्या चाहिए? भारत या चीन? जवाब बिना दिमाग वाला है. इसलिए यूक्रेन के साथ रूस द्वारा छेड़े गए युद्ध के खिलाफ भारत का रवैया ठीक नहीं है. यूक्रेन पर हमारा रुख निश्चित तौर पर यह संकेत करता है कि सीमा पार से अवैध घुसपैठ के मुद्दे पर भारत सहिष्णुता है. यह ठीक उसी तरह की अभिव्यक्ति है जिसकी बदौलत चीन हमारी सीमा सहित भूटान आदि में अपना पैर पसार रहा है. भारत की सीमाएं पहले से ही अपने उन्मादी एशियाई पड़ोसी के निरंतर दबाव में हैं. भारत के वर्तमान रुख से इसमें खतरनाक वृद्धि दिख सकती है. ताइवान पर कब्जा करने के लिए चीन पहले से ही अपनी सैन्यवादी प्रवृत्ति बढ़ा चुका है. यह रूस से बदले की भावना की अपेक्षा करेगा. जहां तक संयुक्त राज्य अमेरिका का संबंध है, भारत के विशाल उपभोक्ता बाजार उसकी प्रमुख राजनीतिक रणनीति को तय करते हैं. क्वाड्रीलैटरल सिक्योरिटी डायलॉग या क्वाड (Quad) में अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत शामिल है. भारत के अलावा उन सभी ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं. भारत के रुख से शायद क्वाड मुहिम को गहरा धक्का लगेगा. अमेरिका की प्राथमिकताओं में यूरोप, नाटो में सुधार, रूस और ईरान आदि जुड़ने की संभावना है.

भारत क्या कर सकता था
संक्षेप में कहें तो भारत को अपना बचाव स्वयं करना होगा. भारत ने यूक्रेन में मानवाधिकारों के उल्लंघन के मसले पर अपने पूर्वाग्रहों को विश्व पटल पर उजागर कर दिया है. यूक्रेनियन अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए एकजुट हैं. करीब 6,00,000 पीड़ित शरणार्थियों को नई दिल्ली द्वारा अनदेखा किया जा रहा है. अब सवाल उठता है कि भारत क्या कर सकता था? भारत को रूस के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव का समर्थन करना चाहिए था और साथ ही मॉस्को के साथ अपने रिश्ते का उपयोग करना चाहिए. ध्यान रहे हम रूस से अपने रक्षा आयात का 60% से अधिक खरीदते हैं. युद्धविराम के लिए बातचीत कर हम इस संकट की घड़ी में सक्रिय भूमिका निभा सकते थे. सुरक्षित तौर पर प्रेस विज्ञप्ति जारी करने के वजाय हमें तेजी से कूटनीतिक प्रयास करने की आवश्यकता थी. लेकिन ऐसा करने के लिए पुतिन और राष्ट्रपति जो बाइडेन से बात करने की जरूरत थी.

सच कहा जाए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ऐतिहासिक अवसर और जिम्मेदारी को त्याग दिया. भारत एक वार्ताकार होने की जिम्मेदारी उठा सकता था. इसमें भारत की विजय छिपी थी. मगर अब हार-हार का सामना करना पड़ रहा है. भारतीय छात्रों द्वारा पोस्ट की गई वीडियो रिपोर्ट से नाराज़ यूक्रेन उनके साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार कर रहा है. हालांकि कई हज़ार छात्रों ने पहले ही यूक्रेन छोड़ दिया है. इस बीच 21 साल के एक भारतीय छात्र नवीन शेखरप्पा का निधन हो गया है. विदेश नीति निर्माण में रणनीतिक स्वायत्तता का प्रदर्शन एक मानदंड है. लेकिन फिलहाल बहुध्रुवीय दुनिया द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की सबसे खराब आपात स्थिति का सामना कर रही है. यह कभी-कभी अपनी स्थिति मजबूत करने का मौका देती है. कभी न कभी आपको लिए एक लाइन खींचनी होगी. भारत ने न सिर्फ दुनिया को विफल किया है. यह स्वयं भी विफल हो गया है.

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