नई दिल्ली- राजस्थान में सियासी गहमागहमी लगातार जारी है। मुख्यमंत्री Ashok Gehlot राज्यपाल कलराज मिश्र से विधानसभा सत्र बुलाने की मांग पर अड़े हैं। लेकिन राज्यपाल उनकी बात मानने को तैयार नहीं दिख रहे। लिहाजा राज्य में कांग्रेस और बीजेपी के बीच तनातनी बढ़ती जा रही है। 27 जुलाई को कांग्रेस सभी राज्यों के राजभवनों का घेराव करने वाली है। राजधानी जयपुर में भी राजभवन का घेराव होगा। उधर राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा कि संवैधानिक मर्यादा से ऊपर कोई नहीं होता है। उन्होंने साफ-साफ कहा कि किसी भी प्रकार की दबाव की राजनीति नहीं होनी चाहिए। तो आइए एक नजर डालते हैं कि आखिर कानून क्या कहता है?
संविधान की अनुच्छेद 163 और 174 में विधानसभा बुलाने को लेकर उल्लेख किया गया है। 163 ए में कहा गया है कि राज्यपाल कौंसिल ऑफ मिनिस्टर्स की सलाह पर काम करेंगे, जबकि आर्टिकल 163 बी राज्यपाल को विवेकीय शक्तियां देता है। इस अनुच्छेद के अनुसार मंत्रिपरिषद राज्यपाल को बात मानवाने के लिए दबाव नहीं डाल सकते हैं।
अनुच्छेद 174 में कहा गया है कि राज्यपाल को जब भी ठीक लगे वो समय-समय पर सदन की बैठक बुलाएंगे, लेकिन एक सत्र के आखिरी दिन और अगले सत्र के पहले दिन के बीच 6 महीने से ज्यादा का अंतर ना हो। राज्यपाल 174 के तहत अपनी ताकतों का इस्तेमाल कर सकते हैं। वो अशोक गहलोत सरकार की सलाह को टाल सकते हैं या फिर देरी कर सकते हैं, लेकिन ऐसा तभी किया जा सकता है जब सरकार को बहुमत पर संदेह हो।
अब इस मामले में हर किसी की निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी रहेंगी। इस हफ्ते इस मुद्दे पर फैसला आ सकता है। वैसे जुलाई 2016 में नबाम रेबिया के फैसले में कुछ ऐसे ही हालात बने थे। सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 174 के प्रावधान पर अहम फैसला सुनाया था। इसके अनुसार राज्यपाल सदन की कार्यवाही को रोक सकते हैं, सलाह दे सकते हैं और सदन को भंग भी कर सकते हैं। लेकिन ऐसा सिर्फ मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही किया जा सकता है। राज्यपाल खुद से ऐसा कोई फैसला नहीं ले सकते हैं।
राजस्थान हाईकोर्ट ने सचिन पायलट समेत 19 बागी विधायकों को विधानसभा अध्यक्ष द्वारा भेजे गए अयोग्यता के नोटिसों पर यथास्थिति बरकरार रखने का शुक्रवार को आदेश दिया।