जानिए क्यों किया जाता है नामकरण संस्कार

हिन्दू धर्म में सोलह Sanskar का विधान है। इनमें से एक Namakaran संस्कार है, जिसे शिशु के जन्म के 10वें दिन मनाया जाता है। यह सोलह संस्कारों में 5वां संस्कार है। इस संस्कार का भी अन्य Sanskar की तरह विशेष महत्व है। इस Sanskar में शिशु को कुंडली के अनुसार नाम दिया जाता है। इसके लिए कई रीति-रिवाज किए जाते हैं। उसके बाद ही शिशु का Namakaran किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि Namakaran संस्कार से शिशु दीर्घायु होता है। साथ ही वह अपने जीवन में यश, कृति, सुख, समृद्धि और सफलता पाता है। आइए, Namakaran संस्कार के बारे में जानते हैं-
नामकरण संस्कार

सभी धर्मों में Namakaran संस्कार का विधान है। हालांकि, सनातन धर्म में इसका विशेष महत्व है। ऐसा कहा जाता है कि Namakaran से शिशु के संस्कार का पता चलता है। इस संस्कार से शिशु में कर्म की प्रवृति जागृत होती है। इसके लिए शिशु के 10वें दिन पूजा संस्कार किया जाता है। अगर किसी कारणवश यह संस्कार 10वें दिन नहीं किया जाता है, तो इसे 3 महीने बाद या अगले साल करने का प्रावधान है।

धार्मिक मान्यता है कि शिशु के जन्म के बाद सूतक काल प्रारंभ होता जाता है, जो 10वें दिन खत्म होता है। हालांकि, जाति के आधार पर सूतक निर्धारित होता है, लेकिन आमतौर पर 10वें दिन Namakaran संस्कार किया जाता है। इस दिन पूजा-पाठ के बाद बच्चे को शहद का स्वाद चटाया जाता है।

इसके बाद सबसे पहले भगवान भास्कर को फिर धरती माता को प्रणाम कराया जाता है। तदोउपरांत, देवी-देवताओं सहित कुल देवी-देवताओं का आशीर्वाद दिलाया जाता है। इस समय शिशु के दीर्घायु और जीवन में उच्चतम स्थान प्राप्त करने की प्रार्थना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि कुंडली के अनुसार राशि देखकर शिशु को नाम दिया जाता है, जिसमें एक नाम सार्वजनिक और एक निजी नाम दिया जाता है। निजी नाम केवल माता-पिता को पता होता है।

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