जनसंख्या नियंत्रण कानून : आबादी से छेड़छाड़ करना होगा घातक, वजूद पर मंडराने लगेगा खतरा

भारत दुनिया का दूसरा ऐसा देश है, जहां पर सबसे ज्यादा जनसंख्या रहती है. भारत के पास दुनिया की सिर्फ 2.30% जमीन है, लेकिन यहां पर दुनिया के 17% आबादी गुजर-बसर करती है. ऐसे में कुछ लोगों का मानना है कि बढ़ती आबादी की वजह से संसाधन घटते जा रहे हैं. लिहाजा, कुछ लोग देश में जनसंख्या नियंत्रण कानून की पुरजोर वकालत करते हैं. इन लोगों का तर्क है कि देश में जो भी विकास कार्य किए जा रहे हैं, बढ़ती आबादी की वजह से वह कम पड़ जाती है. ऐसे में देश के विकास के लिए जनसंख्या को नियंत्रित करना बहुत ही जरूरी हैं. वहीं, एक वर्ग ऐसा भी है, जो बढ़ती हुई जनसंख्या को बोझ मानने के बजाए वरदान मानते हैं. इन लोगों का तर्क है कि हमारे पास जो मानव संसाधन है उसे कुशल संसाधन में बदलने की जरूरत है. न कि उन्हें नष्ट करने की जरूरत है. लिहाजा, उनका तर्क है कि जनसंख्या नियंत्रण से पहले आबादी के आर्थिक पहलू पर भी विचार करने की जरूरत है.

धर्म से नहीं, जीवन स्तर और शिक्षा से हैं ज्यादा बच्चों का संबंध
दरअसल, देश में एक वर्ग जनसंख्या वृद्धि को धर्म के चश्मे से देखता है. हालांकि, जनसंख्या का संबंध धर्म से नहीं, जीवन स्तर से माना जाता है. जिस समाज का जीवन स्तर जितना ऊंचा होता है. वहां लोगों में बच्चा पैदा करने की प्रवृति उतनी ही कम होती है. इसके साथ ही एक बार व्यक्ति समाज में जब एक ऊंचे जीवन स्तर पर पहुंच जाता है तो उसे बरकरार रखने के लिए सारे जतन करता है. ऐसे में वह कम बच्चे पैदा करते हैं, ताकि अपने खर्च को सीमित कर अपना जीवन स्तर ऊंचा रख सके. इसकी पुष्टि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS) के ताजा आंकड़ों से भी होती है. पिछले हफ्ते जारी आंकड़ों के मुताबिक भारत में प्रजनन दर गिरकर 2 पर आ गई है. प्रजनन दर यानी एक महिला के पूरे जीवन में होने वाले बच्चों की औसत संख्या से है.

मुस्लिमों के प्रजनन दर में आई सबसे तेज गिरावट
यही नहीं, एनएफएचएस के ताजा आंकड़े दिखाते हैं कि भारत में सभी समुदायों में प्रजनन दर गिर गई है. आमतौर पर जनसंख्या वृद्धि की दर को लेकर एक धारणा है कि मुस्लिमों की प्रजनन दर अधिक होती है. लेकिन राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के सर्वे से पता चलता है कि देश में मुस्लिम वर्ग के प्रजनन दर में सबसे तेज गिरावट दर्ज की गई है. सर्वे के मुताबिक मुस्लिम वर्ग में प्रजनन दर जहां 1992-93 में 4.4 थी. वहीं, 2015-16 में यह घटकर 2.6 रह गई. इसके अलावा ताजा 2019-21 सर्वे में यह दर 2.3 ही रह गई है.

आबादी के लिहाज से बहुत ही अच्छी स्थित में है भारत
इस वक्त भारत की 65 प्रतिशत से ज्यादा आबादी कामकाजी उम्र यानी 15 से 59 वर्ष के बीच की है. इसमें भी 27-28 प्रतिशत 15 से 29 साल के हैं. कामकाजी आबादी का प्रतिशत बढ़ने से दूसरों पर निर्भर लोगों यानी 14 से कम और 60 से ज्यादा की उम्र की आबादी का प्रतिशत कम हो जाता है. भारत आज उस स्थिति में है, जहां कामकाजी आबादी बहुत ज्यादा और निर्भर आबादी बहुत कम है. आबादी की इस स्थिति को अर्थव्यवस्था की दृष्टि से यह बहुत अच्छा माना जाता है. दरअसल, कई कदमों के माध्यम से भारत की जनसांख्यिकीय विविधता का इस्तेमाल आर्थिक विकास को गति देने में किया जा सकता है. यही नहीं, अपनी युवा आबादी के दम पर भारत दुनियाभर के लिए प्रतिभाओं की फैक्ट्री बना हुआ है. हम शिक्षक से लेकर सीईओ और साफ्टवेयर इंजीनियर तक दे रहे हैं, जिससे देश को बड़े पैमाने पर विदेशी मुद्रा हासिल होती है. साथ ही देश में कुशल कार्यबल की भी प्रचुरता है. हालांकि, यूएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा सदी के अंत तक भारत की कुल आबादी आज के मुकाबले करीब एक तिहाई घट जाएगी. उस वक्त देश में सबसे ज्यादा तादाद उनकी होगी, जो 60 साल से 64 एज ग्रुप के होंगे.

बूढ़े हो रहे हैं कई देश
दूसरी ओर, कनाडा और जापान जैसे विकसित देशों की स्थिति चिंताजनक हो रही है. एक तरफ जीवन प्रत्याशा बढ़ने से लोग ज्यादा उम्र तक जीने में सक्षम हुए हैं, तो दूसरी तरफ जन्म दर कम होने से आबादी बहुत धीरे-धीरे बढ़ रही है. इसकी वजह से वहां की आबादी में बुजुर्गों का प्रतिशत बढ़ गया है. समय के साथ कनाडा को कामकाजी आबादी की कमी का सामना करना पड़ेगा और इसका सीधा प्रभाव आर्थिक विकास दर पर भी पड़ने की आशंका जताई जा रही है. साथ ही बुजुर्ग आबादी की सेहत एवं सुरक्षा पर देश का खर्च भी बढ़ेगा.

30 साल में 47 करोड़ घट जाएगी भारत की जनसंख्या
देश में भले ही जनसंख्या को बोझ समझने वाले जनसंख्या नियंत्रण कानून के लिए हल्ला मचा रहे हैं. इस बीच यूएन वर्ल्ड पॉपुलेशन प्रॉस्पेक्ट्स के मुताबिक बिना किसी नियंत्रण के ही देश की जनसंख्या 30 साल में 47 करोड़ घट जाएगी. इसके साथ ही इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2050 तक भारत की आबादी में बूढ़ों की तादाद बढ़ जाएगी और सदी के अंत तक जनसंख्या भी घट जाएगी. यानी मौजूदा सदी के अंत तक भारत की कुल आबादी आज के मुकाबले करीब एक तिहाई घट जाएगी. इसके साथ ही उस वक्त देश में सबसे ज्यादा तादाद उनकी होगी, जो 60 साल से 64 एज ग्रुप के होंगे. ऐसे में इस वक्त जनसंख्या से छेड़छाड़ करना खतरनाक साबित हो सकता है.

जनसंख्या वृद्धि बस 30 साल की है समस्या
संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के मुताबिक 2054 के आस-पास दुनिया की आबादी चरम पर पहुंच जाएगी. उस वक्त दुनिया की जनसंख्या 8.9 अरब के करीब होगी. हालांकि, कई एक्सर्ट्स का मानना है कि जनसंख्या का चरम 2054 से पहले भी आ सकता है. हालांकि, इस सदी के उत्तरार्ध में दुनिया की आबादी घटनी शुरू हो जाएगी. गौरतलब है कि इस वक्त भारत एक जवान देश है. देश की कुल आबादी में आधे से ज्यादा लोगों की उम्र 40 से कम है. देश में 2020 में 10 से 14 उम्र वर्ग के लोगों की तादाद सबसे ज्यादा थी. वहीं, इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 2050 आते-आते भारत की आबादी बूढ़ी होने लगेगी.

जापान और चीन में आधे से भी कम रह जाएगी आबादी
यूएन की इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि मौजूदा सदी के अंत तक जापान, चीन और भारत जैसे तमाम देशों की आबादी में नाटकीय ढंग से गिरावट देखने को मिलेगी. 2100 तक जापान की आबादी में सबसे ज्यादा करीब 60 प्रतिशत की गिरावट देखने को मिलेगी. वहीं, चीन की आबादी में भी 50% से ज्यादा गिरावट देखी जा सकती है. इसके अलावा भारत में भी 2100 तक देश की आबादी 34 प्रतिशत तक घट जाएगी. यूएन की इस रिपोर्ट के मुताबिक 2020 में भारत की जनसंख्या 138 करोड़ थी, जो 2100 में घटकर 91 करोड़ हो जाएगी. यानी सदी के आखिर तक भारत की आबादी आज के मुकाबले 47 करोड़ तक घट जाएगी.

चीन में गहरा चुका है जनसंख्या में गिरावट का संकट
दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाले देश चीन में जनसंख्या संकट लगातार गहराता जा रहा है. विशेषज्ञों का दावा है कि चीन की हालत वहां की सरकार की ओर से जनसंख्या को लेकर उपलब्ध कराए गए आधिकारिक आंकड़ों से कहीं अधिक बदतर है. चीन की राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो के मुताबिक चीन में जन्म दर 0.752 फीसदी और मृत्यु दर 0.718 फीसदी दर्ज की गई. आंकड़ों के मुताबिक जन्म दर, मृत्यु दर से महज 0.034 फीसदी ज्यादा है. निक्केई एशिया की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2020 में चीन की जनसंख्या विकास दर मात्र 0.145 फीसदी थी.

एक बच्चा नीति को खत्म कर तीन बच्चा नीति लागू कर चुका है चीन
चीन में गिरती जनसंख्या वृद्धि दर से चिंतित होकर चीन सरकार ने साल 2021 में नए जनसंख्या और परिवार नियोजन कानून को मंजूरी दी. इस कानून के तहत चीनी जोड़ों को एक बच्चे की जगह अब तीन बच्चे पैदा करने की अनुमति दी गई. गौरतलब है कि चीन सरकार ने तीसरे बच्चे को अनुमति देने का फैसला 2020 में हुई जनगणना के बाद लागू किया है. दरअसल, 2020 की जनगणना के दौरान यह सामने आया कि चीन की जनसंख्या इतिहास में सबसे धीमी दर से बढ़ रही है.

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