Coronavirus के इलाज में प्लाज्मा थेरेपी के इस्तेमाल के प्रति बढ़ते अति उत्साह को लेकर ICMR ने राज्य सरकार को सावधान किया है। ICMR के अनुसार बिना सोचे-समझे प्लाज्मा थेरेपी से कोरोना का इलाज मरीज के लिए घातक हो सकता है। कोरोना के इलाज में प्लाज्मा थेरेपी कितना कारगर है, इसके सबूत जुटाने के लिए ICMR ने राष्ट्रीय स्तर पर अध्ययन शुरू किया है और उसके नतीजे आने तक इसके अंधाधुंध प्रयोग से बचने की सलाह दी है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल के अनुसार भारत समेत पूरी दुनिया में Coronavirus का कोई इलाज उपलब्ध नहीं है। पूरी दुनिया के वैज्ञानिक इसके इलाज के लिए विभिन्न तरीकों पर ट्रायल कर रहे हैं, जिनमें प्लाज्मा थेरेपी भी एक है। अभी भी यह ट्रायल स्तर पर ही और इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि इसके इलाज से कोरोना का मरीज पूरी तरह ठीक हो जाएगा। यहां तक कि अमेरिका की फेडरल ड्रग एजेंसी भी इसे एक प्रायोगिक थेरेपी के रूप में देख रहा है।
गौरतलब है कि दिल्ली, केरल, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल समेत कई राज्यों ने Corona के इलाज के लिए प्लाज्मा थेरेपी की इस्तेमाल की अनुमति मांगी थी। ICMR ने इसके लिए विस्तृत गाइडलाइंस जारी करते हुए कहा कि प्लाज्मा थेरेपी शुरू करने के पहले उसे ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया से जरूरी इजाजत लेनी पड़ेगी। कुछ बड़े अस्पतालों में कोरोना थेरेपी को कोरोना के इलाज में सफल होने के दावे के बाद राज्यों में इससे इलाज की होड़ लग गई। ICMR ने इसे घातक बताते हुए इससे बचने की सलाह दी है।
कोरोना के इलाज में प्लाज्मा थेरेपी की सीमाएं बताते हुए ICMRर ने कहा है कि इसमें प्लाज्मा में उपलब्ध एंटीबॉडी की मात्रा और उसकी गुणवत्ता सबसे अहम है। यदि पर्याप्त मात्रा में एंटीबॉडी उपलब्ध नहीं हुआ और उसकी गुणवत्ता भी मापदंड के मुताबिक नहीं रही, तो फिर उस प्लाज्मा की इलाज में उपयोगिता संदेहास्पद हो जाती है। यही नहीं, किसी एक व्यक्ति का प्लाज्मा दूसरे व्यक्ति में प्राणघातक एलर्जिक रिएक्शन पैदा कर सकता है, जो फेफड़े को नुकसान भी पहुंचा सकता है।
लव अग्रवाल ने फिलहाल प्लाज्मा थेरेपी को ट्रायल के रूप में ही इस्तेमाल करने की कड़ी हिदायत देते हुए कहा कि ICMR इस पर राष्ट्रीय स्तर पर स्टडी शुरू किया है। स्टडी का उद्देश्य यह पता लगाना है कि प्लाज्मा थेरेपी कोरोना के उपचार में कितना कारगर है। ICMRर के गाइडलाइंस से अलग हटकर कोरोना के इलाज में प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल गैर-कानूनी माना जाएगा।
प्लाज्मा थेरेपी में कोरोना संक्रमण से मुक्त हो चुके व्यक्ति के खून से प्लाज्मा निकालकर उस व्यक्ति को चढ़ाया जाता है, जिसे कोरोना का संक्रमण हुआ है। ऐसा इसलिए किया जाता है कि जो व्यक्ति कोरोना के संक्रमण से मुक्त हो चुका है, उसके शरीर में एंटीबॉडी बन जाती है। जब इसे कोरोना से जूझ रहे मरीज को चढ़ाया जाता है, तो उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।