बिहार का रण: चिराग+राहुल+पप्पू = थर्ड फ्रंट, कहाँ टिकता है यह राजनीतिक फॉर्म्यूला?

बिहार विधानसभा चुनाव 2020 नजदीक आते ही राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है। NDA और महागठबंधन के मुकाबले में थर्ड फ्रंट की भी चर्चा शुरू हो चुकी है। इस चर्चा को जन अधिकार पार्टी (JAP) के अध्यक्ष पप्पू यादव ने हवा दे दी है। JAPअध्यक्ष, चिराग पासवान और कांग्रेस के सहारे थर्ड फ्रंट बनाना चाहते हैं। पप्पू यादव ने मुजफ्परपुर में पत्रकारों से बातचीत में कहा कि वह कांग्रेस अब तक बिहार में अनुकंपा पार्टी है। ऐसे में उन्हें निमंत्रण देता हूं कि वह इस बार बड़ा दिल दिखाएं और दलित चेहरे को आगे कर थर्ड फ्रंट बनाने में बड़े भाई की भूमिका निभाएं। हालांकि जब उनसे पूछा गया कि क्या उन्होंने इस सबंध में कांग्रेस नेताओं से बात की है तो वे गोलमोल जवाब देने लगे।

पप्पू यादव ने पिछले दिनों NDA के मुख्य घटक दल लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) प्रमुख चिराग पासवान से मुलाकात की थी। इस मुलाकात के बाद पप्पू यादव ने चिराग पासवान को उभरता हुआ नेता बताया था। साथ ही उन्हें CM बनाने की बात कही थी। इसके बाद पप्पू यादव ने कांग्रेस को साथ आने का न्योता दिया है, ताकि थर्ड फ्रंट बनाया जा सके।

पप्पू यादव के थर्ड फ्रंट के ऑफर को कांग्रेस ने ठुकरा दिया है। कांग्रेस प्रवक्ता राजेश राठौड़ ने कहा कि बिहार में मौजूदा राजनीतिक हालात में थर्ड फ्रंट की कोई जरूरत ही नहीं है। महागठबंधन मजबूती के साथ आगे बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस में किसी एक नेता के बयान से फैसले नहीं लिए जाते हैं। यहां दिल्ली में आलाकमान सारे हालात पर विचार विमर्श करके फैसला लेते हैं। बिहार में फिलहाल थर्ड फ्रंट जैसी कोई बात नहीं है।

वहीं JDU प्रवक्ता संजय सिंह ने पप्पू यादव के बयान को बकवास बताया है। उन्होंने कहा कि पप्पू यादव कब क्या बोलेंगे यह पता नहीं है। ऐसे लोगों के बयान को गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है। वे कभी खुद को सीएम के तौर पर प्रोजेक्ट कर देते हैं तो कभी किसी दलित को CM बनाना चाहते हैं। बिहार में कोई दूसरा विकल्प ही नहीं है। नीतीश कुमार की अगुवाई में ही अगली सरकार बनेगी, चाहे थर्ड बन जाए, चाहे फोर्थ फ्रंट बन जाए।

अब तक के बयानों से तो यही लग रहा है कि थर्ड फ्रंट बनने के कम ही आसार हैं, लेकिन राजनीति संभावनाओं का खेल है, इसलिए भविष्य की स्थिति परिस्थिति पर बातें होनी जरूरी है। अगर बिहार चुनाव में थर्ड फ्रंट बनता है तो इसका किसको फायदा, किसको नुकसान होगा यह समझने की जरूरत है। बिहार में जाति की राजनीति होती है, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है। जातीय समीकरण को ध्यान में रखकर ही राजनीतिक दल गठबंधन तैयार करते हैं। इस लिहाज से देखें तो थर्ड फ्रंट में अगर LJP, कांग्रेस और जाप शामिल होती है तो भी वोटों का समीकरण सीटें जीताने लायक नहीं दिख रहा है।

बिहार में पासवान समाज के करीब 5% वोट हैं। माना जाता है कि यह वोटर पूरी तरह से उसी के साथ जाता रहा है जिधर रामविलास पासवान होते हैं। पप्पू यादव यादव समाज से आते हैं। इस समाज का ज्यादातर वोट लालू की पार्टी RJD को जाता रहा है। पिछले करीब तीन दशक में कांग्रेस के पास से सारा वोट दूसरी पार्टियों को शिफ्ट हो चुका है। फिर भी माना जाता है कि राज्य के ब्राह्मण, भूमिहार और राजपूत समाज के कुछ वोट कांग्रेस को मिलते हैं।

इस लिहाज से राज्य में 13% यादव, भूमिहार 4.7%, ब्राह्मण 5.7% और राजपूत 5.2% वोट को जोड़ भी दें तो यह सीट जीतने लायक नहीं साबित होती है। क्योंकि पप्पू यादव 13% यादवों में से कितना वोट हासिल कर पाएंगे यह पिछले चुनावों में दिख चुका है। भूमिहार, ब्राह्मण और राजपूत समाज का एक मुश्त वोट BJP को मिलता रहा है। इन जातियों में जो लोग NDA की सरकार से नाराज होते हैं वे महागठबंधन को अपना वोट देते रहे हैं। इस तरह वोटों के अंकगणित के लिहाज से यही दिख रहा है कि अगर थर्ड फ्रंट बनता भी है तो यह केवल वोट कटवा साबित हो सकता है। साथ ही इसका ज्यादा नुकसान महागठबंधन यानी RJD के खेमे को होता दिख रहा है। थर्ड फ्रंट बनने से NDA का खेमा और ज्यादा सेफ होता दिख रहा है। हालांकि यह सब अंक गणित है। भारतीय चुनाव में अंकगणित नहीं जनता का मन चलता है। इसलिए जनता अपने वोट से क्या रिजल्ट देती है यह चुनाव परिणाम आने के बाद ही साफ हो पाएगा।

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