यूपी में विपक्ष कि लड़ाई किस से -आपस में या भाजपा से !

यूपी में पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में बड़े दलों ने आपस में मिलकर चट्टान बनकर भाजपा की लहर रोकने की भरपूर कोशिश की थी, पर कामयबी नहीं मिली। इस बार तो विपक्षी खेमों में इतनी दरार है कि इस तकरार के कारण विपक्ष भाजपा के बजाय आपस मे ही लड़ कर अपनी ऊर्जा गवा सकता है।

ये अनुमान कमजोर पड़ता जा रहा है कि यूपी के आगामी विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ा विपक्षी दल सपा भाजपा को सीधी टक्कर देगा। क्योंकि जो सपा छोटे दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की बात कर रही है उस सपा को ही छोटे दल ही कमजोर करने के संकेत देने लगे हैं। जिसके तहत पार्टी का आधार एम वाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण बिखरने का खतरा तो है ही साथ ही अखिलेश यादव दलित-पिछड़ों को अपने पक्ष में करने की जो रणनीति तैयार कर रहे हैं उसे फेल करते हुए भागीदारी संकल्प मोर्चा का गठबंधन पिछड़ों और मुसलमानों के वोट बैंक में सेंध लगा सकता है।

फिलहाल तो अखिलेश यादव अपने गठबंधन में अपने चाचा शिवपाल यादव के प्रगतिशील समाजवादी पार्टी को भी शामिल नहीं कर पा रहे हैं। सपा अध्यक्ष ने प्रसपा को एक या दो सीटें देने की बात की थीं। शायद इतनी कम सीटों को लेकर शिवपाल इससे नाराज होकर कह रहे हैं कि अखिलेश से उनकी वर्षों से बात नहीं हुई। प्रसपा 403 सीटों से चुनाव लड़ेगी।

दूसरी तरफ सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर का कहना है कि उनकी अगवाई वाले गठबंधन भागीदारी संकल्प मोर्चे में शामिल करने के लिए शिवपाल यादव से बात हो रही है। उधर एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवेसी इस मोर्चे में शामिल होकर यूपी में सौ सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर ही चुके हैं। भीम आर्मी के चंद्रशेखर अजाद रावण भी इस मोर्चे का हिस्सा बनकर यादव सहित पिछड़ी जातियों, दलितों और मुस्लिम समाज का मजबूत कोलाज तैयार करने मे मददगार साबित हो सकते हैं।

इसके अतिरिक्त गैर भाजपाई दलों में सपा, बसपा और कांग्रेस के बीच धर्मनिरपेक्ष/मुस्लिम वोटबैंक को लेकर तनातनी बढ़ रही है।

पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव सहित फिलहाल तो यूपी के सभी बड़े दल यही कह रहे हैं कि वो आगामी विधानसभा चुनाव में किसी बड़े दल के साथ गठबंधन नहीं करेंगे। हर बड़ा दल किसी भी बड़े दल के साथ न होने की बात कर रहा है लेकिन सियासत, मोहब्बत और जंग में वक्त की नजाकत बड़े-बड़े फैसले भी बदल देती है। फिलहाल भाजपा और सपा पिछड़ी जातियों में प्रभाव रखने वाले कुछ छोटे दलों के लिए कुछ सीटें छोड़ेगे।

भाजपा अपने पुराने सहयोगी दलों के साथ सामंजस्य बनाए रखने के लिए मुलाकातों का दौर जारी रखे हैं। बताया जाता है कि प्रसपा अध्यक्ष शिवपाल यादव से भी भाजपा संपर्क बनाए है। दूसरी तरफ सपा छोटे संगठनों को साथ लेने की रेस में पिछड़ती दिख रही है।

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