झारखंड राज्य खनिज विकास निगम (जेएसएमडीसी) के बंद पड़े खदानों के विकास और उनके पुनर्स्थापन को लेकर प्रबंधन ने प्राइस वाटर हाउस कूपर (पीडब्ल्यूसी) को सलाहकार बनाया था। इस एजेंसी को जुलाई 2016 से लेकर जुलाई 2019 तक निगम के 11 खदानों का विकास का प्लान देना था, पर नौ करोड़ रुपये का भुगतान होने पर भी न तो सिकनी कोलियरी का विकास हो पाया और न ही बेंती-बाग्दा माइंस का डेवलपमेंट। अब भी निगम के खदान बंद के बंद हैं। निगम के अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक अबू बकर सिद्दीकी ने इसके लिए सहमति दी थी। इसमें भूतत्ववेत्ता प्रवीर कुमार को नोडल पदाधिकारी बनाया गया था। भूतत्ववेत्ता के अधीन लिपिक मनीष कुमार और चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी संतोष कुमार को भी लगाया गया था।
पीडब्ल्यूसी के चयन में भूतत्ववेत्ता प्रवीर कुमार की भूमिका भी काफी अधिक रही थी। उनका कहना है कि पीडब्ल्यूसी ने जेएसएमडीसी की स्थापना, टेंडर अपलोडिंग, वेबसाइट निर्माण, मानव संसाधन प्रबंधन का काम किया। खदानों का विकास हुआ की नहीं, यह उन्हें नहीं मालूम है। उनके अनुसार जेएसएमडीसी के खदान पर्यावरण क्लीयरेंस की वजह से बंद हैं। पर्यावरण क्लीयरेंस दिलाना पीडब्ल्यूसी का काम नहीं था।
जेएसएमडीसी प्रबंधन की तरफ से 31 जुलाई 2016 को पीडब्ल्यूसी को ट्रांजैक्शन एडवाइजर बनाया गया था। इस एजेंसी को तीन वर्षों में बंद खदानों को चालू कराने योग्य बनाने, खदानों के नवीकरण का फाइल तैयार करने की जवाबदेही सौंपी गयी थी। एजेंसी को जेएसएमडीसी की तरफ से 22 लाख रुपये और कर तथा अन्य का भुगतान किया गया। अगस्त 2018 तक पीडब्ल्यूसी के अधिकारियों ने सरकार से सिर्फ पैसे ही लिए, कोई खदान चालू नहीं हो सका। पीडब्ल्यूसी को बंद पड़े खदानों का संचालन कैसे करना है, इसका सलाह भी देना था। माइनिंग डेवलपर एंड ऑपरेटर (एमडीओ) को नियुक्त करने की प्रक्रिया भी पीडब्ल्यूसी को ही करनी थी।
पीडब्ल्यूसी को चेलागी ग्रेनाइट प्रोजेक्ट खूंटी, बेंती बाग्दा लाइम स्टोन माइंस रांची, ज्योति पहाड़ी कायनाइट माइंस पूर्वी सिंहभूम, सेमरा सलतुआ लाइन स्टोन माइंस पलामू, सिरबोया कायनाइट माइंस पूर्वी सिंहभूम, चंदुला सिमलगोड़ा स्टोन माइंस साहेबगंज, सालहन लाइम स्टोन माइंस रांची, महागैन तौलबोला ग्रेफाइट माइंस विश्रामपुर, सुदना ग्राइंडिंग फैक्टरी डालटनगंज, गोवा कोल ब्लाक लातेहार और अगलदगा कोल ब्लॉक लातेहार के विकास का काम दिया गया था।