कठोर तप और ब्रह्मचर्य का प्रतीक हैं नवदुर्गा का दूसरा स्वरूप देवी ‘ब्रह्मचारिणी’

नवरात्रि के दूसरे दिन मां ‘ब्रह्मचारिणी’ की पूजा की जाती है, ये दुर्गा मां के नौ स्वरूपों में दूसरा रूप हैं। ‘ब्रह्म’ का अर्थ है ‘तपस्या’ और ‘चारिणी’ का अर्थ है ‘आचरण’ करने वाली अर्थात ‘तप का आचरण करने वाली’ मां ब्रह्मचारिणी। यह देवी शांत होकर तप में लीन हैं। मां के मुख पर कठोर तपस्या के कारण अद्भुत तेज और कांति का ऐसा अनूठा संगम है जो तीनों लोको को उजागर कर रहा है।

देवी की पौराणिक कथा, ‘ब्रह्मचारिणी’ नाम कैसे पड़ा

पार्वतीजी ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कई हजार वर्षों तक ब्रह्मचारी रहकर घोर तपस्या की थी, इसी कठिन तप के कारण उनका नाम तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी पड़ गया। शिवपुराण तथा रामचरितमानस में लिखा है कि मां पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए एक हजार वर्षों तक फलों का सेवन कर तपस्या की थी। इसके पश्चात तीन हजार वर्षों तक सिर्फ पेड़ों की पत्तियां खाकर बेहत कठिन तप किया था। इतनी कठोर तपस्या के बाद इन्हें ब्रह्मचारिणी स्वरूप प्राप्त हुआ।

कैसे करें मां ब्रह्मचारिणी की पूजा

नवरात्रि के दूसरे दिन भक्त अपने मन-मस्तिष्क को ब्रह्मचारिणी के श्री चरणों मे एकाग्रचित करके स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित करते हैं और उनके मंत्रों का जाप कर मनचाही इच्छा पूरी होने का वरदान पाते हैं। देश भर में श्रद्धालुओं ने अपने-अपने घरों में भी मंगलवार को कलश स्थापित कर देवी की दोनों दिन विधि-विधान से पूजा-अर्चना की। मां ब्रह्मचारिणी श्वेत वस्त्र पहनती हैं, उनके दाएं हाथ में जपमाला तथा बाएं हाथ में कमंडल विराजमान है। इनका रूप अत्यन्त मनोहर है और अपने भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी करने वाली हैं।

मां को कौन सा भोग है प्रिय

 मां को चीनी का भोग लगता है और ब्राहमण को भी दान में चीनी ही दी जाती है। मां ब्रह्मचारिणी के चित्र या प्रतिमा को स्थापित करके उसके सामने पुष्प, दीपक, नैवेद्य आदि अर्पण कर स्वच्छ कपड़े पहने आसन पर विराजमान हो और कम से कम 108 बार इस मंत्र का जाप करें, “दधानां करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डल। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।“

मां ब्रह्मचारिणी पूजा से सभी कष्ट होते हैं दूर

देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से कुंडली में विराजमान बुरे ग्रहों की दशा सुधरती है और व्यक्ति के अच्छे दिन आते हैं। यही नहीं इनकी पूजा से भगवान महादेव भी प्रसन्न होकर भक्त को मनचाहा वरदान देते हैं।

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