इजरायल-ईरान में छिड़ी जंग तो जलेगी पूरी दुनिया! दो खेमे में बंट गए सारे देश, जानें कौन- किधर से लड़ने को तैयार

Israel- Iran War: हमास के नेता इस्माइल हानिया की ईरान में हुई हत्या के बाद से दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर है. इसके कारण कभी भी दोनों ताकतों के बीच जंग छिड़ सकती है. अगर ऐसा होता है, तो कौन किसकी ओर से लड़ेगा? इसको लेकर खेमेबंदी बहुत तेज हो गई है.

अगर इजरायल और ईरान के बीच जंग छिड़ गई तो, इसका पूरी दुनिया पर असर होना तय है. इसे लेकर पहले से ही पूरी दुनिया 2 खेमों में बंट गई है. पिछले महीने अमेरिकी कांग्रेस में दिए गए भाषण में इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने मध्य पूर्व में एक नए क्षेत्रीय गठबंधन की कल्पना की, जिसे ‘अब्राहम गठबंधन’ कहा गया. यह प्रस्तावित गठबंधन अब्राहम समझौते का विस्तार है. जिसका उद्देश्य ईरान के असर के खिलाफ इजरायल के साथ राजनयिक संबंध रखने वाले देशों को एकजुट करना है. विशेष रूप से ईरान के समर्थक बलों के नेटवर्क को सामूहिक रूप से ‘प्रतिरोध की धुरी’ के रूप में जाना जाता है.

अब्राहम गठबंधन

सितंबर 2020 में किए गए अब्राहम समझौते ने इजरायल और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), बहरीन, मोरक्को और सूडान सहित कई अरब देशों के बीच संबंधों को सामान्य कर दिया. अब्राहम गठबंधन के लिए नेतन्याहू का नजरिया इन देशों के साथ हुए समझौतों पर आधारित है. वह एक ऐसे गठबंधन की तलाश में हैं जिसमें इजरायल के वर्तमान और भविष्य के राजनयिक साझेदार शामिल हो सकें. इस गठबंधन का उद्देश्य नेतन्याहू द्वारा ‘ईरान के आतंक’ के रूप में बताए गए असर का मुकाबला करना है. नेतन्याहू ने कहा कि क्षेत्रीय स्थिरता और सुरक्षा के लिए इजरायल को अमेरिकी सैन्य सहायता जरूरी है. वहीं अमेरिका ने मध्य पूर्व में अपनी सैन्य उपस्थिति को मजबूत करने का संकल्प लिया है. जिसमें यूएसएस अब्राहम लिंकन के नेतृत्व में एक विमान वाहक हमला करने वाला समूह, अतिरिक्त बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा-सक्षम जहाज और एक नया लड़ाकू स्क्वाड्रन तैनात किया गया है. इजरायल अमेरिका और ब्रिटेन दोनों के साथ मिलकर काम कर रहा है, ईरान की ओर से संभावित जवाबी हमले की तैयारी कर रहा है.

ईरान के प्रॉक्सी नेटवर्क

1979 की इस्लामी क्रांति के बाद से ईरान ने प्रॉक्सी समूहों के एक नेटवर्क के जरिये पूरे मध्य पूर्व में व्यवस्थित रूप से अपना असर बढ़ाया है, जिसे सामूहिक रूप से प्रतिरोध की धुरी के रूप में जाना जाता है. इस नेटवर्क में लेबनान में हिजबुल्लाह, यमन में हूती, इराक में विभिन्न मिलिशिया और सीरिया और गाजा में आतंकवादी समूह शामिल हैं. ये प्रॉक्सी ईरान के रणनीतिक हितों की सेवा करते हैं, जिससे उसे पूरे इलाके में असर डालने और विरोधियों को चुनौती देने की ताकत मिलती है.

लेबनानः हिजबुल्लाह

ईरान के समर्थन से 1980 के दशक की शुरुआत में स्थापित हिजबुल्लाह, मध्य पूर्व में ईरान का पहला महत्वपूर्ण प्रॉक्सी है. इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्म्स (IRGC) से फंडिंग और हथियार लेने वाला हिजबुल्लाह तेहरान की शिया इस्लामवादी विचारधारा को साझा करता है और मुख्य रूप से लेबनान की शिया मुस्लिम आबादी से भर्ती करता है. हिजबुल्लाह के पास कम से कम 130,000 रॉकेट और मिसाइलों का शस्त्रागार है.

गाजाः हमास और फिलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद

फिलिस्तीनी इलाकों में ईरान ने हमास और फिलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद (PIJ) जैसे आतंकवादी समूहों के साथ संबंध विकसित किए हैं. ये समूह इजरायल के साथ लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं, जिन्हें ईरान से वित्तीय और सैन्य सहायता मिल रही है.

सीरिया: असद शासन

सीरिया में बशर अल-असद शासन के साथ ईरान का गठबंधन 2011 में सीरियाई गृहयुद्ध की शुरुआत के बाद से महत्वपूर्ण रहा है. तेहरान ने असद की सेना को मजबूत करने के लिए लगभग 80,000 लड़ाकू कर्मियों सहित पर्याप्त सैन्य सहायता दी है. इसके अलावा ईरान ने सीरियाई सरकार का समर्थन करने के लिए ज़ैनाबियून ब्रिगेड (जिसमें पाकिस्तानी लड़ाके शामिल हैं) और फ़तेमीयून डिवीजन (अफ़गान हज़ारा लड़ाके शामिल हैं) जैसे विभिन्न शिया मिलिशिया को बनाया और समर्थन किया है.

यमनः हूती

ईरान द्वारा समर्थित यमन में हूती मूवमेंट क्षेत्रीय संघर्ष में > एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभरा है. मूल रूप से 1990 के दशक में गठित और 2014 के बाद मजबूत होते हुए हूती को ईरान से सैन्य और वित्तीय सहायता मिली है.

इराक: शिया मिलिशिया

2003 में इराक पर अमेरिकी हमले के बाद ईरान ने विभिन्न शिया मिलिशिया की स्थापना और समर्थन करके अपने प्रभाव का विस्तार किया. उल्लेखनीय समूहों में कताइब हिजबुल्लाह, असैब अहल अल-हक और बद्र संगठन शामिल हैं. इन मिलिशिया ने अक्सर अमेरिकी सेना को निशाना बनाया है और तेहरान के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए हुए हैं.

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