महालया से ही दुर्गा पूजा की शुरुआत हो जाती है। बंगाल के लोगों के लिए Mahalaya का विशेष महत्व है। Mahalaya के साथ ही जहां एक तरफ श्राद्ध खत्म हो जाते हैं, वहीं मान्यताओं के अनुसार इसी दिन Maa Durga कैलाश पर्व से धरती पर आगमन करती हैं और अगले 10 दिनों तक यहीं रहती हैं। Mahalaya के दिन ही मूर्तिकार Maa Durga की आंखें तैयार करते हैं। महालया के बाद ही मां दुर्गा की मूर्तियों को अंतिम रूप दिया जाता है और वह पंडालों की शोभा बढ़ाती हैं।
कब है महालया?
पितृ पक्ष की आखिरी श्राद्ध तिथि को Mahalaya पर्व मनाया जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि यानी अमावस्या को महालया अमावस्या कहा जाता है। पितृ पक्ष में Mahalaya अमावस्या सबसे मुख्य दिन होता है। Mahalaya पर्व हर साल सितंबर या अक्टूबर के महीने में मनाया जाता है। लेकिन, इस साल दुर्गा पूजा कुछ अलग होगी। आमतौर पर Mahalaya के दूसरे दिन यानी पितर तर्पण के बाद से ही देवी पाठ की शुरुआत हो जाती है।
लेकिन इस साल Mahalaya के 1 महिने के बाद यानी 17 अक्टूबर से दुर्गापूजा की शुरुआत हो रही है। वहीं, विजयादशमी 26 अक्टूबर को मनायी जाएगी। हर वर्ष Mahalaya, सर्व पितृ अमावस्या के दिन ही होता है। हिन्दू शास्त्रों में दुर्गापूजा आश्विन माह के शुक्ल पक्ष में होती है लेकिन इस बार दो अश्विन माह हैं । एक शुद्ध तो दूसरा पुरुषोत्तम यानी अधिक मास। 18 सितंबर से 16 अक्टूबर तक अधिक मास है। वहीं, 17 अक्टूबर से 31 अक्टूबर तक शुद्ध आश्विन माह होगा। इस दौरान ही 17 अक्टूबर से 26 अक्टूबर तक Maa Durga की पूजा की जाएगी।
क्या है महालया का इतिहास?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अत्याचारी राक्षस महिषासुर के संहार के लिए Maa Durga का सृजन किया। महिषासुर को वरदान मिला हुआ था कि कोई देवता या मनुष्य उसका वध नहीं कर पाएगा। ऐसा वरदान पाकर महिषासुर राक्षसों का राजा बन गया और उसने देवताओं पर आक्रमण कर दिया। देवता युद्ध हार गए और देवलोकर पर महिषासुर का राज हो गया। महिषासुर से रक्षा करने के लिए सभी देवताओं ने भगवान विष्णु के साथ आदि शक्ति की आराधना की। इस दौरान सभी देवताओं के शरीर से एक दिव्य रोशनी निकली जिसने देवी दुर्गा का रूप धारण कर लिया। शस्त्रों से सुसज्जित मां दुर्गा ने महिषासुर से नौ दिनों तक भीषण युद्ध करने के बाद 10वें दिन उसका वध कर दिया। दरसअल, Mahalaya मां दुर्गा के धरती पर आगमन का द्योतक है। Maa Durga को शक्ति की देवी माना जाता है।
कैसे मनाया जाता है महालया ?
वैसे तो Mahalaya बंगालियों का प्रमुख त्योहार है, लेकिन इसे देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है। बंगाल के लोगों के लिए Mahalaya पर्व का विशेष महत्व है। Maa Durga में आस्था रखने वाले लोग साल भर इस दिन का इंतजार करते हैं। महालया से ही दुर्गा पूजा की शुरुआत मानी जाती है। यह नवरात्रि और दुर्गा पूजा की के शुरुआत का प्रतीक है। मान्यता है कि महिषासुर नाम के राक्षस के सर्वनाश के लिए महालया के दिन मां दुर्गा का आह्वान किया गया था। कहा जाता है कि Mahalaya अमावस्या की सुबह सबसे पहले पितरों को विदाई दी जाती है। फिर शाम को Maa Durga कैलाश पर्वत से पृथ्वी लोक आती हैं और पूरे 9 दिनों तक यहां रहकर धरतीवासियों पर अपनी कृपा का अमृत बरसाती हैं।
महालया के दिन ही मूर्तिकार Maa Durga की आंखों को तैयार करते हैं। दरअसल, Maa Durga की मूर्ति बनाने वाले कारिगर यूं तो मूर्ति बनाने का काम Mahalaya से कई दिन पहले से ही शुरू कर देते हैं। महालया के दिन तक सभी मूर्तियों को लगभग तैयार कर छोड़ दिया जाता है। Mahalaya के दिन मूर्तिकार मां दुर्गा की आंखें बनाते हैं और उनमें रंग भरने का काम करते हैं। इस काम से पहले वह विशेष पूजा भी करते हैं। Mahalaya के बाद ही Maa Durga की मूर्तियों को अंतिम रूप दे दिया जाता है और वह पंडालों की शोभा बढ़ाती हैं।
महालया पितृ पक्ष का आखिरी दिन भी है। इसे सर्व पितृ अमावस्या भी कहा जाता है। इस दिन सभी पितरों को याद कर उन्हें तर्पण दिया जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से पितरों की आत्मा तृप्त होती है और वह खुशी-खुशी विदा होते हैं। वहीं जिन पितरों के मरने की तिथि याद न हो या पता न हो तो सर्व पितृ अमावस्या के दिन उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है।