पंचांग के अनुसार 24 अक्टूबर 2020 को आश्विनी मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि है। इस दिन अष्टमी और नवमी का व्रत रखा जाएगा। पंचांग के अनुसार अष्टमी की तिथि प्रात: 6 बजकर 58 मिनट पर समाप्त होगी इसके बाद नवमी की तिथि आरंभ होगी। इसीलिए इस दिन दुर्गा महा अष्टमी और दुर्गा महा नवमी पूजा की जाएगी। अष्टमी का दिन Maa Mahagauri को समर्पित है।
माता महागौरी की पूजा का Navratri के दिनों में करना अधिक श्रेयष्कर माना गया है। नवरात्रि में माता की पूजा करने से पाप से मुक्ति मिलती है। मन में विचारों की शुद्धता आती है। हर प्रकार की नकारात्मकता दूर होती है। माता अपने भक्तों की बल और बुद्धि में भी वृद्धि करती हैं।
Maa Mahagauri ने भगवान शिव को पति के रुप में पाने के लिए कई वर्षों तक कठोर तपस्या की थी। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने Maa Mahagauri को स्वीकार कर लिया। कठोर तपस्या के कारण माता महागौरी का शरीर काला हो गया और उस पर धूल मिट्टी की परतें जम गईं। तब भगवान शिव ने उन्हें गंगाजल से नहलाया। भगवान शिव के स्नान कराने से माता का शरीर स्वर्ण के समान दमकने लगा। तभी से माता का नाम महागौरी पड़ गया।
माता महागौरी को अत्यंत सौम्य देवी के रूप में जाना जाता है। ये मां दुर्गा की आठवी शक्ति हैं। माता की 4 भुजाएं हैं। ये वृषभ की सवारी करती हैं। इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है. ऊपर वाले बाएं हाथ में डमरू और नीचे के बाएं हाथ में वर-मुद्रा है।
पूजन सामग्री–
गंगा जल, शुद्ध जल, कच्चा दूध, दही, पंचामृत, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण,पान के पत्ते, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, धूप, कपूर, लौंग, अगरबत्ती से माता की पूजा की जाती है।
मंत्र-
1- श्वेते वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचि:.
महागौरी शुभं दद्यान्त्र महादेव प्रमोददो.
2- या देवी सर्वभूतेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:.
3- ओम महागौरिये: नम:
पूजा विधि-
नवरात्रि के आठवें दिन Maa Mahagauri को नारियल का भोग लगाना चाहिए। रात की रानी के फूल Maa Mahagauri को अधिक पसंद है। इसलिए इस दिन फूल से पूजा करनी चाहिए। माता को चौकी पर स्थापित करने से पहले गंगाजल से स्थान को पवित्र करें। चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका यानी 16 देवियां, सप्त घृत मातृका यानी सात सिंदूर की बिंदी लगाकर स्थापना करें। माता की सप्तशती मंत्रों से पूजा करें।