पश्चिम बंगाल के चुनावी समय में हालांकि TMC और BJP के बीच ही टक्कर नजर आ रही है, लेकिन क्या वास्तव में वाम-कांग्रेस गठबंधन मुख्य लड़ाई से बाहर है? जानकारों का मानना है कि वाम-कांग्रेस गठबंधन को कम आंकना चूक होगी। वामपंथी दावा करते हैं कि वह सीधी टक्कर में हैं।
यदि राज्य में होने जा रहे विधानसभा चुनाव की तुलना पिछले लोकसभा चुनाव के मतों के प्रतिशत से करते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है कि वामदलों के लिए ज्यादा संभावनाएं नहीं हैं। क्योंकि वामदल 10-11% और कांग्रेस 6% से कम मतों पर सिमटकर रह गए थे। दोनों ने लोकसभा चुनाव अलग-अलग लड़ा था। लेकिन यदि 2016 के विधानसभा चुनावों के मत प्रतिशत को देखते हैं तो चार वामपंथी दलों माकपा, भाकपा, RSP तथा फारवर्ड ब्लाक को 26% मत मिले थे। जबकि कांग्रेस को 12% वोट मिले। यानी तब वाम-कांग्रेस गठबंधन के हिस्से 38 फीसदी मत और 76 सीटें आई थीं।
2019 के लोकसभा चुनावों में जहां कांग्रेस और वामदलों के मत प्रतिशत में भारी गिरावट आई, वहीं विधानसभा चुनावों में 10 फीसदी मत पाने वाली भाजपा 40 फीसदी से अधिक पर पहुंच गई। दूसरी तरफ तृणमूल कांग्रेस अपने मत प्रतिशत को बचाने में कामयाब रही जो 44 फीसदी की बजाय 43 फीसदी रहा।
वामदल कांग्रेस के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रहे हैं। इंडियन सेक्युलर फ्रंट का वाम गठबंधन के साथ जाना भी कुछ सीटों पर फायदेमंद हो सकता है। दूसरा यह लोकसभा नहीं विधानसभा चुनाव है जिसमें लोगों के सोचने का नजरिया बदलता है। हालांकि वामपंथी नेता सीताराय येचुरी कहते हैं कि पिछले पांच सालों के दौरान वामपंथी पार्टियां जमीनी स्तर पर कार्य कर रही हैं, इसलिए इस बार उनका वोट किसी और को ट्रांसफर नहीं होगा।
येुचरी यह भी दावा करते हैं कि बंगाल में लड़ाई TMC और BJP में नहीं बल्कि वाम-कांग्रेस गठबंधन की सीधी लड़ाई तृणमूल के साथ है। वे कहते हैं कि तृणमूल से नाराज लोगों ने पिछली बार भाजपा को वोट किया था क्योंकि तब लोकसभा चुनाव थे लेकिन विधानसभा चुनावों में वाम-कांग्रेस को वोट देंगे क्योंकि वह विकल्प पेश कर सकते हैं।