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लोजपा में उठे विवाद ने बढ़ाई लालू और मांझी की चिंता, जानें क्या होगा खेल

बिहार में लोजपा का मौजूदा विवाद देश भर में पारिवारिक संरचना वाले क्षेत्रीय दलों के लिए हादसे से पहले वाले चेतावनी की तरह है। Lalu Prasad Yadav और Jeetan Ram Manjhi जैसे नेताओं के लिए बड़ा सबक भी है। देश के स्तर पर कुछ राज्यों के क्षेत्रीय दल इससे मिलते-जुलते हादसे के शिकार हुए हैं। एक फरीक तबाह हो गया। दूसरा आबाद है। तेलगू देषम पार्टी के संस्थापक एनटीआर के निधन के बाद हुए विवाद का संदर्भ लिया जा सकता है। उसमें एनटीआर की धर्मपत्नी लक्ष्मी पार्वती का पार्टी पर दावा अपने आप समाप्त हो गया। दामाद चंद्रबाबू नायडू को टीडीपी के समर्थकों ने अपना लिया। कुछ इसी तरह का हादसा SP के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के परिवार में हुआ। पुत्र अखिलेश और भाई शिवपाल लड़े। मुलायम के समर्थकों ने पहले को वारिस मान लिया। शिवपाल हाशिये पर चले गए।

ऐसे दलों में विरासत के लिए लड़ाई अपरिहार्य
इस समय चिराग पासवान और पशुपति पारस के बीच रामविलास पासवान की विरासत के लिए लड़ाई चल रही है। परिणाम आना बाकी है। अंतत: लक्ष्मी पार्वती और शिवपाल की भूमिका किसके हिस्से में आएगी, यह समय बताएगा। इस प्रकरण में राजद और हिन्दुस्तानी अवामी मोर्चा जैसे दलों के लिए चेतावनी भी है। इस संदेश के साथ कि परिवार बचाता है तो तबाह भी करता है। संयोग से इसका बचाने वाला पहलू राजद देख चुका था। संकट के समय में राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनी। पार्टी, परिवार और सरकार पर आंच नहीं आई। CM नीतीश कुमार परिवारवाद में भरोसा नहीं करते हैं। संकट आया। उन्होंने परिवार के बाहर के Jeetan Ram Manjhi को मुख्यमंत्री बनाया। दोबारा सत्ता वापस लेने में किन दुश्वारियों का सामना करना पड़ा, यह बिहार के राजनीतिक इतिहास का एक अध्याय है।
काम नहीं आया उपाय

यह नहीं कह सकते कि लोजपा के संस्थापक राम विलास पासवान को अपने सांसदों-विधायकों की प्रतिबद्धता का अंदाजा नहीं था। 2005 में वे ढुलमुल प्रतिबद्धता वाले विधायकों के शिकार हुए। बाद के चुनावों में उन्होंने विस्तृत परिवार का चयन किया, जिसमें सगे के अलावा ममेरे फुफेरे, मौसेरे भाई, पुत्रवधु और दामाद तक का निवेश हुआ। सांसदों की मंडली में परिवार के इतने सदस्यों का बंदोबस्त किया, जिसमें विभाजन की नौबत न आए। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में लोजपा के 6-6 सांसद जीते। दोनों समय तीन सदस्य परिवार के रखे गए। ताकि 6 में से विभाजन के लिए अनिवार्य 4 सदस्य एकसाथ न जुट पाएं। हादसा हुआ। परिवार के ही 2 सदस्य बगावत पर उतर आए।


राजद में दिखती है झलक

राजद के सर्वेसर्वा लालू प्रसाद अब भी निर्णायक हैं। राम विलास पासवान की तुलना में उनका परिवार अधिक बड़ा है। प्रभावशाली सामाजिक समूह उनके साथ है। लेकिन,यह नहीं कहा जा सकता है कि परिवार में सबकुछ ठीक ही चल रहा है। अभी सत्ता नहीं मिली है। सत्ता मिलने की संभावना नजर आने के साथ ही तकरार की खबरें भी बाहर आने लगी थीं। 2019 के लोकसभा चुनाव में तेज प्रताप जहानाबाद और सीतामढ़ी में दल के अधिकृत उम्मीदवारों के खिलाफ प्रचार में कूद पड़े थे। विधानसभा चुनाव में फरीक की तरह टिकट में हिस्सा मांगा था। परिवार में सत्ता का एक केंद्र राज्यसभा सदस्य डा. मीसा भारती का है। एक अन्य पुत्री डा. रोहिणी आचार्य की अचानक बढ़ी सक्रियता को भी हिस्सेदारी की आकांक्षा के तौर पर देखा जा रहा है। लोजपा प्रकरण ने लालू प्रसाद को यह अवसर दिया है कि समय रहते वे तकरार के मुद्दे को खत्म या न्यूनतम कर सकें।
छोटा परिवार, सुखी परिवार

हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा भी पारिवारिक पार्टी है। नई है। यह फिलहाल छोटा परिवार, सुखी परिवार का उदाहरण है। पूर्व मुख्यमंत्री के नाते मोर्चा के संस्थापक Jeetan Ram Manjhi फिलहाल सत्ता के लिए अपरिहार्य हैं। उनके पुत्र संतोष मांझी एक दल की मदद से विधान परिषद में गए। दूसरे दल की सरकार में मंत्री हैं। समधिन पहले भी विधायक रह चुकी हैं। एक दामाद और एक पुत्र को नियोजन चाहिए। मोर्चा का वर्तमान ऐसा नहीं है कि परिवार में सत्ता के लिए घातक संघर्ष हो। फिर भी लोजपा से मोर्चा भी कुछ सीख सकता है। बिहार पीपुल्स पार्टी की संरचना भी कमोवेश इसी आधार पर हुई थी। इसके संस्थापक आनंद मोहन की राजनीतिक सक्रियता समाप्त हुई। पार्टी भी गौण हो गई। उनके स्वजन दूसरे दल में राजनीति कर रहे हैं।

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