लगभग एक माह से भाजपा से सीधे मुकाबले को अपना लक्ष्य बना तहत नेता प्रतिपक्ष सह झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष राज्य की खाक छान रहे हैं। उन्होंने बदलाव रैलियों के माध्यम से चुनाव घोषित होने के पहले ही माहौल बनाना शुरू कर दिया है। हालांकि यह अप्रत्याशित नहीं है। राज्य में सत्तासीन भाजपा ने काफी पहले से चुनावी मुहिम चला रखा है। हेमंत सोरेन के समक्ष यह चुनौती है कि वे मुख्य विपक्षी दल का नेता होने के कारण सत्तापक्ष को ललकार सकें। कांग्रेस सरीखी राष्ट्रीय पार्टियां यहां दूर दूर तक मुकाबले मे हैं ही नहीं। कांग्रेस ने काफी पहले ही इसे मानते हुए विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन के नेतृत्व को लिखित तौर पर स्वीकार लिया था।
प्रदेश अध्यक्ष की पसंद-नापसंद अपनी जगह है। जाहिर है हेमंत सोरेन इस बात को लेकर निश्चिंत हैं कि कांग्रेस उन्हें छोडऩे का जोखिम नहीं उठाएगी। बदलाव रैलियों में जुट रही भारी भीड़ से खुद हेमंत सोरेन भी खासे उत्साहित हैं। उनका कहना है कि भाजपा की काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ेगी। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह लोगों का ध्यान मूल मुद्दे से भटकाना चाहते हैं। भाजपा कश्मीर में धारा-370 सरीखे मुद्दे उठाकर झारखंड में राजनीतिक लाभ लेना चाहती है, जो कभी संभव नहीं है।
अपनी सभाओं में हेमंत सोरेन सत्ता में आने पर लुभावनी घोषणाएं भी पेश कर रहे हैं। इसमें बेरोजगारी भत्ता से लेकर बड़े पैमाने पर नौकरियों की बरसात का वादा है तो आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाने का शिगूफा भी। वे झारखंडी अस्मिता का सवाल उठाते हुए उसे अस्तित्व से जोड़ते हैं। लडऩे-मरने के भी वादे करते हैं। एक मायने में विधानसभा चुनाव उनके नेतृत्व की कड़ी परीक्षा भी है।
झामुमो के मुख्यतः चुनावी अजेंडे हैं:-
सरकार बनी तो पांच लाख लोगों को नौकरी, बेरोजगारों को भत्ता।
25 करोड़ तक के सरकारी टेंडर झारखंड के लोगों को।
महिलाओं को रोजगार में 50 प्रतिशत आरक्षण।
पिछड़ी जातियों को 27 प्रतिशत आरक्षण।