24 साल का एक लड़का जो कहता था कि मैंने रुकना सीखा ही नहीं है. जिसके तेवर देखकर उसके साथी जुनून से भर जाते थे और दुश्मनों के हौसले पस्त हो जाते थे. वो लड़का जिसके अदम्य साहस की मिसालें हिंदुस्तान के पन्ने में हमेशा के लिए अमर हैं. जिसकी कहानियां लाखों युवाओं को प्रेरणा देती हैं और बताती हैं कि जिंदगी सिर्फ सांसों के आने जीने तक सीमित नहीं है, बल्कि जिंदगी लोगों के एहसासों और उनके सपनों में हमेशा के लिए कैद हो जाने का नाम है.
हम बात कर रहे हैं भारतीय सेना के जांबाज अफसर कैप्टन विक्रम बत्रा की जिनकी वीरता की कहानी हर शख्स की जुबान पर रहती है. भारत-पाकिस्तान के बीच 1999 में हुए कारगिल युद्ध में शहीद इस बहादुर ने आज ही के दिन यानी कि 9 सितंबर 1974 को जन्म लिया था. आइए जानते हैं विक्रम बत्रा के जीवन की कुछ अनसुनी कहानी..
हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में विक्रम बत्रा का जन्म हुआ था. ये तारीखों वाली दुनिया में वो दौर था जब हर घर में टीवी नहीं हुआ करती थी. विक्रम अपने जुड़वा भाई विशाल के साथ पड़ोसी के घर में टीवी देखने जाया करते थे. उस समय दूरदर्शन पर सीरीयल आता था ‘परमवीर’. यानी भारतीय सेना के जांबाजी के किस्सों वाला एक सीरियल. इस सीरियल की कहानियां विक्रम के सीने में कुछ इस तरह से बैठीं की खिलानौं से खेलने की उम्र में ही उन्होंने अपनी जिंदगी का मकसद तय कर लिया. वो मकसद था परमवीर बनना.
विक्रम ने इस सपने को पाने के लिए जी जान लगा दी. बचपन से ही अपने साहस के कारण वो चर्चा में रहते थे. पढ़ाई में भी अव्वल थे. मर्चेंट नेवी में भी सेलेक्शन हो गया था जहां उनकी सैलरी भी ज्यादा था. लेकिन सपना तो सपना होता है. विक्रम ने तय कर लिया था कि सेना में ही जाना है.
जब उनकी मां ने उनसे पूछा कि तुम ऐसा क्यों कर रहे हो, तो उनका जवाब था, ज़िंदगी में पैसा ही सब कुछ नहीं होता. मैं ज़िंदगी में कुछ बड़ा करना चाहता हूं, कुछ आश्चर्यचकित कर देने वाला, जिससे मेरे देश का नाम ऊंचा हो. 1995 में उन्होंने आईएमए की परीक्षा पास की.
उन्हें 6 दिसम्बर 1997 को जम्मू के सोपोर नामक स्थान पर सेना की 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति मिली . उन्होंने 1999 में कमांडो ट्रेनिंग के साथ कई प्रशिक्षण भी लिए . पहली जून 1999 को उनकी टुकड़ी को कारगिल युद्ध में भेजा गया . हम्प व राकी नाब स्थानों को जीतने के बाद विक्रम को कैप्टन बना दिया गया .
कारगिल युद्ध जब शुरू हुआ तो विक्रम उसके कुछ दिन पहले ही घर आए थे. वहां उनके एक दोस्त ने कहा था कि यार तुम सेना में हो तो थोड़ा संभल कर रहा करो. विक्रम ने कहा-चिंता न किया करो या तो तिरंगा लहरा कर आउंगा या उसमें लिपट कर आउंगा. लेकिन आउंगा जरूर.
कारगिल में उनके कमांडिग ऑफिसर कर्नल योगेश जोशी ने उन्हें 5140 चौकी फ़तह करने की ज़िम्मेदारी सौंपी थी. इस चोटी पर तिरंगा लहराने के बाद विक्रम ने अपने अधिकारियों को संदेश भेजा ‘ये दिल माँगे मोर. उनका ये संदेश हर हिंदुस्तानी के बीच मशहूर हो गया था.
यहां तक कि पाकिस्तानी खेमे में भी ये चर्चा होने लगी थी कि आखिर ये शेरशाह कौन है. शेरशाह विक्रम बत्रा ही थे जिनका युद्ध के दौरान कोड नाम शेरशाह था. उनके और पाकिस्तानी सेना के बीच हुए कई तल्ख बयान आज भी लोगों के बीच मशहूर हैं.
ऑपरेशन द्रास में भारतीय जवान पत्थरों का कवर लेकर दुश्मन पर फायर कर रहे थे. तभी उनके एक साथी को गोली लगी और वो उनके सामने ही गिर गया. वो सिपाही खुले में पड़ा हुआ था. विक्रम और रघुनाथ चट्टानों के पीछे बैठे थे. विक्रम ने अपने साथी से कहा कि हम अपने घायल साथी को सुरक्षित स्थान पर लाएंगे.
साथी ने उनसे कहा कि मुझे नहीं लगता कि वो जिंदा बच पाएंगे. ये सुनते ही विक्रम बहुत नाराज़ हो गए और बोले, क्या आप डरते हैं? फिर उन्होंने अपने साथी से कहा आपके तो परिवार और बच्चे हैं. मेरी अभी शादी नहीं हुई है. ये कहकर वो जवान को बचाने चले गए तभी उन्हें गोली लग गई.ॉ
उस समय देश के सेना प्रमुख जनरल वेदप्रकाश मलिक हुआ करते थे. उनके बारे में एक किस्सा मशहूर है कि जब विक्रम के माता-पिता से शोक प्रकट करने वो उनके घर गए तो उन्होंने कहा कि विक्रम इतने प्रतिभाशाली थे कि अगर उनकी शहादत नहीं हुई होती तो वो एक दिन मेरी कुर्सी पर बैठे होते.
एक मीडिया इंटरव्यू में विक्रम की मां ने कहा था कि उनकी दो बेटियां थीं और वो चाहती थीं कि उनके एक बेटा पैदा हो. लेकिन उनके जुड़वां बेटे पैदा हुए.
वह हमेशा भगवान से पूछती थी कि मैंने तो एक ही बेटा चाहा था. मुझे दो क्यों मिल गए? जब विक्रम कारगिल की लड़ाई में शहीद हुए, तब उनकी मां ने कहा कि मेरी समझ में आया कि एक बेटा मेरा देश के लिए था और एक मेरे लिए.