1 फरवरी 1986…. कैसे खुला था राम मंदिर का ताला, जानिए इनसाइड स्टोरी

Ram Mandir Inside Story: 1 फरवरी 1986 को फैजाबाद जिला अदालत का वो फैसला शायद राजीव गांधी को पढ़ या उसके बारे में जान लेना चाहिए था। उस दिन राम मंदिर का ताला खुलवाने के लिए पूर्व पीएम को ही दोष दिया जाता है। लेकिन हकीकत कुछ और ही है। आइए जानते हैं।

होइहि सोइ जो राम रचि राखा । रामचरित मानस के बालकांड की यह चौपाई आज सही साबित हो रही है। कई वर्षों के संघर्षों और बलिदान के बाद भगवान राम अपने घर, अपनी अयोध्या वापस आ गए हैं। राम नगरी की सुंदरता तो जैसे इस समय देखते ही बनती है। अयोध्या से लेकर यूपी और पूरे देश में बस रामा-राम ही हो रहा है। 22 जनवरी 2024 की तारीख देश के इतिहास में दर्ज हो गयी वो भी सुनहरे अक्षरों से। दोपहर में प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के बाद राम और उनकी अलौकिक मूर्ति वहां सदा के लिए विराजमान हो गयी। लेकिन कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकरअय्यर ने अपनी किताब में कुछ ऐसा लिखा है कि हमें इतिहास में दोबारा लौटना होगा।

ज्यादा पीछे नहीं बस 38 साल पहले। मतलब साल 1986 जब वहां विवादित बाबरी मस्जिद थी और वहां के दरवाजे खोले गए थे। तत्कालीन राजीव गांधी सरकार के काल में यह हुआ था। अय्यर की किताब में इस बात का जिक्र है। बकौल मणिशंकर अय्यर राम मंदिर (बाबरी मस्जिद को तब हिंदू मंदिर ही कहते थे) का ताला खुलवाने के लिए राजीव गांधी जिम्मेदार नहीं थे बल्कि कांग्रेस पार्टी जिम्मेदार थी। अय्यर के इस बात के बाद हम आपको उस तारीख की बात बताएंगे। राम मंदिर का ताला खुलने के पीछे की इनसाइड स्टोरी बताएंगे।

वो तारीख और राम मंदिर का ताला

इसे फिर से समझने के लिए हमें दोबारा फ्लैसबैक में जाना होगा। घटना आज से 38 साल पहले 31 जनवरी 1986 की है। तब केंद्र में इंदिरा गांधी के पुत्र राजीव गांधी सत्ता संभाल रहे थे। उत्तर प्रदेश में भी उस वक्त कांग्रेस की सरकार थी। वीर बहादुर मुख्यमंत्री थे। यूपी के फैजाबाद के एक वकील उमेश चंद्र ने राम मंदिर का ताला खुलवाने के लिए जिला अदालत में एक याचिका दायर कर रखी थी। याचिका को मंजूर करते हुए जिला अदालत ने मंदिर खोलने का आदेश दे दिया। इसके बाद 1 फरवरी को राम मंदिर के ताले 37 साल बाद से जो बंद पड़े थे खोल दिए गए। ताला खुलते ही बड़ी संख्या में हिंदूतीर्थयात्री, जो जानबूझकर इकट्ठे हुए थे, अंदर आ गए और राजीव को इसके बारे में कुछ नहीं पता था। तब गृह राज्य मंत्री अरुण नेहरू थे। अरुण नेहरू ने उस समय एक बयान देकर सियासी हलकों में भूचाल ला दिया। अरुण नेहरू ने कहा कि ये ताले राजीव गांधी ने खुलवाए थे। इस बयान के आने के बाद एक समुदाय राजीव गांधी को दोष देना लगा जबकि राजीव गांधी को फैजाबाद जिला अदालत के इस फैसले के बारे में कुछ पता ही नहीं था।

अरुण कुमार को पीएमओ के सचिव ने बताया था झूठा

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अरुण नेहरू के इस बयान का खंडन उस समय पीएमओ में सचिव रहे वजाहत हबीबुल्लाह ने किया था। हबीबुल्लाह ने बताया कि राजीव गांधी ने ताला खोलने को नहीं कहा था। क्योंकि राजीव को अजदालत के आदेश की जानकारी ही नहीं थी। यह भी सच है कि अरुण नेहरू ने कभी वजाहत हबीबुल्लाह के इस बयान का खंडन नहीं किया। इसका जिक्र मणिशंकर अय्यर ने अपनी किताब ‘द राजीव आई न्यू एंड व्हाय ही वाज़ इंडियाज मोस्ट मिस अंडरस्टॉड प्राइम मिनिस्टर’ में कही हैं। अय्यर ने लिखा कि बाबरी मस्जिद के दरवाजे खोलने के लिए पार्टी जिम्मेदार थी, न कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और इसमें भाजपा की ओर से पोषित तब के गृह राज्य मंत्री अरुण नेहरू का हाथ था। अय्यर ने अपनी किताब में आगे बताया है कि हां, ताला खोलने में कांग्रेस का हाथ था, लेकिन कांग्रेस के व्यक्ति को पता था कि राजीव गांधी ने कभी भी उन ताले को खोलने की अनुमति दी होगी। अय्यर ने आगे लिखा कि अरुण नेहरू भाजपा में शामिल हो गए और इसलिए वह भाजपा की ओर से प्लांट किए गए थे।

उसके बाद गिर गई राजीव गांधी की सरकार

1986 में ताला खुलवाने के विवाद के बाद 1989 आते-आते कांग्रेस सरकार कई घोटालों जैसे बोफोर्स दलाली के मुद्दे पर घिरती चली गई। वोट शेयर से लेकर सीट तक कम होने लगीं। और आखिर में 1989 में तत्कालीन राजीव गांधी सरकार गिर गई। ताला खुलवाने से नाराज मुसलमान भी छिटक गए। कांग्रेस एमपी, यूपी, राजस्थान और बिहार समेत कई राज्यों में हार गई। इसके बाद राम मंदिर का मुद्दा उछला जिसे भारतीय जनता पार्टी ने लपक लिया। लालकृष्ण आडवाणी ने अयोध्या से सोमनाथ तक राम रथयात्रा निकालकर राम मंदिर के मुद्दे को राष्ट्रवाद से जोड़ दिया। मणिशंकर अय्यर ने लिखा कि मेरा एकमात्र मुद्दा यह है कि चुनाव के बीच में ‘शिलान्यास को छोड़कर इस सब में शामिल नहीं होने वाला एकमात्र व्यक्ति राजीव था। उन्होंने ताला नहीं खोला, उन्होंने भाजपा के साथ बातचीत नहीं की और जब गुंबदों को गिराया जा रहा था तो वे चुप नहीं बैठे। राजीव को दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए, बल्कि कांग्रेस को दोषी ठहराया जाना चाहिए।

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