सात साल बीत जाने के बाद भी निर्भया के दोषी अब तक जिंदा है। निर्भया के दोषियों की हर बार फांसी की तारीख बदले जाने को लेकर कई सवाल उठ रहे है। इस मामले पर राजनीति भी तेज हो गई है। फांसी में देरी की वजह से केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की है, और कहा है कि मृत्युदंड के मामलों में दोषी को दी गई सजा पर अमल को लेकर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन सिर्फ अपराधी के हितों की बात करती है। केंद्र सरकार की ओर से दाखिल की गई अर्जी में साल 2014 की सुप्रीम कोर्ट की उस गाइडलाइन को भी चुनौती दी गई है जिसमें दोषियों को राहत देने और और अपराधी के अधिकारों की बात कही गई है। साथ ही अपनी अर्जी मं केंद्र सरकार ने ये भी कहा है कि अगर राष्ट्रपति किसी दोषी की दया याचिका खारिज कर देते हैं, तो उसे सात दिन के अंदर फांसी दे दी जानी चाहिए।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से ये मांग भी की है कि कोर्ट के साथ ही राज्य सरकार और जेल अधिकारी को भी डेथ वारंट जारी करने का अधिकार दिया जाए। आपको बता दें मौजूदा कानून के मुताबिक डेथ वारंट जारी करने का अधिकार सिर्फ मजिस्ट्रेट को है। केंद्र सरकार ने अपनी अर्जी में ये मांग भी रखी है कि पुनर्विचार याचिका खारिज होने के बाद क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल करने के लिए भी सुप्रीम कोर्ट एक निश्चित समय तय करे, क्यूरेटिव पिटीशन खारिज होने के बाद बिना देर किए सात दिन के अंदर फांसी दे दी जानी चाहिए।