पं. दीनदयाल उपाध्याय की पुण्यतिथि पर विशेष

भारत के इतिहास में ऐसे कई महान नेता आए हैं जिन्होंने देश और समाज को नई राह दिखाई है. इन नेताओं की लिस्ट बहुत लंबी है. ऐसे ही एक नेता थे महान पंडित दीनदयाल उपाध्याय. दीन दयाल उपाध्याय ने देश की राजनीति को इस तरह से एकजुट किया था कि लोग उन्हें एकात्म मानवतावाद के पुरोधा मानते थे. उनकी कुशल संगठन क्षमता के लिए डा. श्यामप्रसाद मुखर्जी ने कहा था कि अगर भारत के पास दो दीनदयाल होते तो भारत का राजनैतिक परिदृश्य ही अलग होता.

Deendayal Upadhyaya biographyकहते हैं गरीबों की मदद करने के लिए जरूरी है कि आपने गरीबी को महसूस किया हो. पं दीनदयाल जी की जिंदगी में हर वह परेशानी थी जिसे एक गरीब झेलता है. लेकिन तमाम मुश्किलों पर पार कर उन्होंने अपने आप को उस जगह खड़ाकिया जहां लोग उन्हें आज भी याद करते हैं. इतिहास के पन्नों में प. दीनदयाल जी का नाम हमेशा स्वर्ण अक्षरों में ही लिखा जाएगा.

पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर, 1916 को ब्रज के मथुरा ज़िले के छोटे से गांव जिसका नाम “नगला चंद्रभान” था, में हुआ था.आजादी से पहले और आजादी के बाद भी उन्होंने अपने लेखन कार्य और सामाजिक कार्यों से जनता की सेवाकी. राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ से जुड़ने के बाद उन्होंने राष्ट्रीय एकता को अपना मिशन बना लिया.

राजनीतिक पार्टी भारतीय जनसंघ के सह-संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय की 11 फरवरी को पुण्यतिथि है. इस दिन को बीजेपी समर्पण दिवस के रूप में मनाएगी. कल अम्बेडकर इंटरनेशनल सेंटर में सुबह 10 बजे लोकसभा सांसद और शाम 5 बजे राज्यसभा सांसद समर्पण दिवस कार्यक्रम में शामिल होंगे.

पीएम मोदी सुबह 11 बजे समर्पण दिवस कार्यक्रम में शामिल होंगे और दीनदयाल उपाध्याय की जीवन उनके बलिदान पर बीजेपी सांसदों को संबोधित करेंगे. पीएम के अलावा बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी सुबह और शाम संबोधित करेंगे.

जाने-माने विचारक, दार्शनिक और राजनीतिक पार्टी भारतीय जनसंघ के सह-संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर 1916 को मथुरा में हुआ था. पंडित दीनदयाल जब अपनी स्नातक स्तर की शिक्षा हासिल कर रहे थे, उसी वक्त वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के संपर्क में आए और वह आरएसएस के प्रचारक बन गए. हालांकि प्रचारक बनने से पहले उन्होंने 1939 और 1942 में संघ की शिक्षा का प्रशिक्षण लिया था और इस प्रशिक्षण के बाद ही उन्हें प्रचारक बनाया गया था.

साल 1951 में भारतीय जनसंघ की नींव रखी गई थी और इस पार्टी को बनाने का पूरा कार्य उन्होंने श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ मिलकर किया था. 11 फरवरी 1968 को पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया.

पं. दीनदयाल जी अक्सर कहा करते थे कि मैले कुचैले अनपढ़ लोग हमारे नारायण हैं हमें उनकी पूजा करनी चाहिए. यह हमारा सामाजिक एवं मानव धर्म है. लेकिन भारत में एकता और सबको मिलाने का काम करने वाले इस महान नेता की लाश एक सुनसान इलाके में मिली.

चालीस साल पहले 11 फरवरी, 1968 को भारतीय जनसंघ को अपने राजनीतिक इतिहास का सबसे गहरा आघात सहना पड़ा था, जब उसके नेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय की हत्या कर दी गई थी.

उस समय लालकृष्ण आडवाणी ने उन्हें जो सलाह दी थी, उस पर यदि दीनदयाल उपाध्याय ने अमल किया होता तो शायद उनकी हत्या न होती. राजनीतिक कार्य करने साथ लगातार लेखन करते रहने को देखते हुए आडवाणी ने उपाध्याय से एक स्टेनो साथ रखने को कहा था, लेकिन उन्हें यह सुझाव रास नहीं आया. उस समय पटना तक के सफर में उनके साथ कोई रहा होता तो शायद उनकी हत्या न होती. दीनदयाल उपाध्याय जी की लाश यात्रा के बीच में ही मुगलसराय रेलवे स्टेशन के यार्ड में मिली थी. आडवाणी उन दिनों जनसंघ के नेता होने के साथ संघ के पत्र आर्गनाइजर के संपादक भी थे, जिसके लिए दीनदयाल उपाध्याय राजनीतिक डायरी लिखते थे.

पं. दीनदयाल उपाध्याय सच्चे अर्थों में युगपुरुष थे. उनका व्यक्तित्व राष्ट्रीय चिंतन, उच्च विचारों व मानवीय मूल्यों से परिपूर्ण था. वह दरिद्र नारायण को अपना आराध्य मानते थे.

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