no caste change with religion change

धर्म परिवर्तन से जाति नहीं बदलती है…आरक्षण से जुड़े मामले में मद्रास हाई कोर्ट ने खींच दी लकीर

एक धर्म छोड़कर दूसरा धर्म अपनाने से व्यक्ति की जाति नहीं बदलेगी। नौकरी के लिए आरक्षण से जुड़े एक मामले में गुरुवार को मद्रास हाई कोर्ट ने यह महत्वपूर्ण फैसला दिया। दरअसल, एक दलित शख्स ने धर्म परिवर्तन कर ईसाइयत को अपनाया था। उसने शादी भी दलित समुदाय की ही एक लड़की से की लेकिन उसका धर्म नहीं बदला। बाद में शख्स ने यह दावा करते हुए कि उसकी शादी अंतरजातीय यानी इंटर-कास्ट मेरिज है लिहाजा उसे सरकारी नौकरियों में आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए।

दरअसल, अगर कोई दलित धर्म परितवर्तन करता है तो कानून के मुताबिक उसे आरक्षण के लिहाज से पिछड़े समुदाय (बैकवर्ड कम्युनिटी यानी BC) के तौर पर माना जाता है, न कि अनुसूचित जाति के तौर पर। हाई कोर्ट में याचिका दाखिल करने वाला शख्स आदि-द्रविड़ समुदाय से ताल्लुक रखता था जो अनुसूचित जाति में आती है। बाद में उसे ईसाई धर्म अपना लिया जिससे उसे ‘बैकवर्ड क्लास’ का दर्जा मिला।

शख्स ने 2009 में अरुन्थातियार समुदाय की एक लड़की से शादी की। लड़की भी एससी समुदाय से आती है। इसके बाद शख्स ने इंटर-कास्ट मैरिज सर्टिफिकेट की मांग को लेकर सलेम डिस्ट्रिक्ट कोर्ट का रुख किया। उसने दावा किया कि उसकी शादी बैकवर्ड क्लास और एससी का यूनियन है। बीसी-एससी इंटर-कास्ट मैरिज की सूरत में सरकारी नौकरियों में उसे बैकवर्ड क्लास के मुकाबले आरक्षण का ज्यादा वेटेज मिलता। इसी का फायदा उठाने के लिए उसने कोर्ट का रुख किया था। 2015 में सलेम डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने उसकी याचिका खारिज कर दी।

डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के फैसले को उसने मद्रास हाई कोर्ट में चुनौती दी। जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम ने कहा कि धर्म बदलने से किसी दलित को बैकवर्ड क्लास का मेंबर मान लिया जाता है। अगर उसने किसी अन्य दलित से शादी कर ली तो इस बिना पर वह इंटर-कास्ट मैरिज सर्टिफिकेट का हकदार नहीं हो सकता या सकती।

मद्रास हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जब पति और पत्नी दोनों ही जन्म से एससी समुदाय से ताल्लुक रखते हों तो महज धर्मपरिवर्तन से उनकी जाति नहीं बदल जाती। सिर्फ इस वजह से कि किसी दलित नेधर्म परिवर्तन की है और इस आधार पर उसे ‘बीसी’ का सर्टिफिकेट मिल गया है तो किसी दलित समुदाय के शख्स से उसकी शादी को इंटर-कास्ट नहीं माना जा सकता।

कोर्ट ने कहा कि एससी, एसटी, बैकवर्ड क्लास आदि के तौर पर जातियों का बंटवारा इंटर-कास्ट मैरिज सर्टिफिकेट का आधार नहीं हो सकता। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अगर धर्म-परिवर्तन करने वाला शख्स इंटर-कास्ट सर्टिफिकेट पर दावा करने लगा तो यह आरक्षण के दुरुपयोग का रास्ता साफ करेगा।

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