Chemical Weapons in Russia Ukraine War: यूक्रेन पर रासायनिक हथियार विकसित करने का आरोप लगाने के बाद रूस ने इस मुद्दे पर चर्चा के लिए शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद बैठक की बुलाई.
यूक्रेन ने रूस के इस दावे का ये कहते हुए खंडन किया है कि ये रूसी फॉल्स फ्लैग अभियान का हिस्सा है. वहीं अमेरिका ने रूस के इस दावे को यूक्रेन के शहरों पर संभावित रासायनिक हमले को सही ठहराने के लिए बहाने की संज्ञा दी है.
यूक्रेन की सरकार के मुताबिक़, देश में ऐसे लैब मौजूद हैं जहां वैज्ञानिकों ने वैध ढंग से लोगों को कोविड-19 जैसी बीमारियों से बचाने के लिए काम किया है. लेकिन ऐसे समय जब यूक्रेन में युद्ध छिड़ा हुआ है तब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यूक्रेन से कहा है कि वह अपनी लैब में मौजूद किसी तरह के ख़तरनाक पेथोजेन नष्ट करे.
लेकिन सवाल ये उठता है कि रासायनिक हथियार क्या होते हैं और वे जैविक हथियारों से कितने अलग हैं.
रासायनिक हथियार (Chemical Weapons) क्या होते हैं?
रासायनिक हथियारों से आशय ऐसे हथियारों से है जिनमें इंसानी शरीर पर हमला करने वाले विषेलै एवं रासायनिक तत्व शामिल होते हैं.
रासायनिक हथियारों की कई श्रेणियां हैं. कुछ रासायनिक हथियार ऐसे होते हैं जिनमें इंसान का दम घोंटने वाली रासायनिक गैसें जैसे फोज़जीन होती हैं. ये इंसान के फेंफड़े और श्वसन तंत्र पर हमला करते हैं जिससे पीड़ित व्यक्ति की सांस न ले पाने की वजह से मौत हो सकती है.
कुछ रासायनिक हथियारों जैसे मस्टर्ड गैस लोगों की त्वचा जलाकर उन्हें अंधा कर देती है. सबसे ख़तरनाक रासायनिक हथियार नर्व एजेंट्स होते हैं जो पीड़ित व्यक्ति के दिमाग और उसके शरीर के बीच संबंध पर हमला करते हैं.
इन रासायनिक हथियारों की बहुत छोटी-सी मात्रा भी इंसान के लिए घातक साबित हो सकती है. नर्व एजेंट वीएक्स की 0.5 मिलिग्राम से भी कम मात्रा एक व्यस्क को मारने के लिए काफ़ी होती है.
युद्ध के दौरान ये सभी तथाकथित रासायनिक एजेंट्स आर्टिलरी शेल, बमों और मिसाइलों के ज़रिए इस्तेमाल किए जा सकते हैं.
लेकिन केमिकल वीपन्स कन्वेंशन 1997 के तहत इनका प्रयोग प्रतिबंधित है. रूस समेत दुनिया के कई देशों ने इस कन्वेंशन पर अपने हस्ताक्षर किए हैं.
दुनियाभर में इन हथियारों के अवैध इस्तेमाल पर नज़र रखने और इनके प्रसार को रोकने की दिशा में काम करने वाली संस्था ‘ऑर्गनाइज़ेशन फ़ॉर द प्रोहिबिशन ऑफ़ कैमिकल वीपन्स’ का ऑफ़िस नीदरलैंड के हेग शहर में स्थित है.
इससे पहले इन हथियारों का इस्तेमाल प्रथम विश्व युद्ध, अस्सी के दशक में हुए ईरान-इराक़ युद्ध और हाल ही में सीरियाई सरकार द्वारा विद्रोहियों के ख़िलाफ़ किया गया है.
रूस का कहना है कि उसने साल 2017 में अपने शेष रासायनिक हथियारों को नष्ट कर दिया है. लेकिन इसके बाद दो बार ऐसे रासायनिक हमले हो चुके हैं जिनका आरोप रूस पर लगाया गया है.
जब पार की गई लक्ष्मण रेखा
इनमें से पहला मौक़ा साल 2018 में आया जब एक पूर्व केजीबी अधिकारी सर्गेई स्क्रीपल और उनकी बेटी पर नर्व एजेंट नोविचॉक से हमला किया गया. रूस ने इस हमले की ज़िम्मेदार लेने से मना कर दिया. इसके साथ ही रूस ने 20 अलग-अलग तरह से बताया कि इस हमले को कौन अंजाम दे सकता है.
लेकिन जांचकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे कि यह रूस की जीआरयू मिलिट्री इंटेलिजेंस के दो अधिकारियों का काम था, और इसका नतीजा ये हुआ कि इसकी वजह से कई देशों में मौजूद 128 रूसी जासूसों और डिप्लोमेट्स को उनके पदों से हटा दिया गया.
इसके बाद साल 2020 में रूस के प्रमुख विपक्षी नेता एलेक्सी नवेलनी पर भी नोविचोक नर्व एजेंट से हमला किया गया जिससे वह मरते-मरते बचे.
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या रूस यूक्रेन में रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है?
अगर रूस इस युद्ध में ज़हरीली गैस जैसे हथियारों का इस्तेमाल करता है तो इसे लक्ष्मण रेखा पार करने जैसी माना जाएगा, और पश्चिमी देशों से इसके ख़िलाफ़ कदम उठाने की मांग की जाएगी.
इस बात के सबूत नहीं हैं कि रूस ने अपने सहयोगी सीरिया द्वारा विद्रोहियों को हराने में मदद करते हुए इन हथियारों का इस्तेमाल किया. लेकिन रूस ने सीरिया की बशर अल-असद सरकार को भारी सैन्य समर्थन दिया था जिसने कथित रूप से अपने ही नागरिकों पर दर्जनों रासायनिक हमले किए.
और ये एक तथ्य है कि अगर आप एक लंबे युद्ध में शामिल हैं जहां हमलावर, दूसरे पक्ष का मनोबल तोड़ना चाहती है, दुर्भाग्य से, ऐसे में लेकिन रासायनिक हथियार काफ़ी प्रभावशाली साबित होते हैं. सीरिया ने अलेप्पो में यही किया था.
जैविक हथियार (Chemical Weapons) क्या होते हैं?
अगर जैविक हथियारों की बात करें तो वे रासायनिक हथियारों से काफ़ी अलग होते हैं. जैविक हथियारों से आशय इबोला जैसे ख़तरनाक पैथोजन या विषाणु को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने से है.
यहां पर समस्या ये है कि आम लोगों को ख़तरनाक पैथोजेन से बचाने की दिशा में काम करने और उन्हें हथियार के रूप में तैयार करने में काफ़ी बारीक अंतर है.
रूस ने अब तक यूक्रेन सरकार पर लगाए गए हैं, लेकिन इन आरोपों के पक्ष में सबूत नहीं दिए हैं. लेकिन उसने शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाई थी.
सोवियत संघ के दौर में रूस ने एक व्यापक बायोलॉजिकल हथियार कार्यक्रम चलाया था जिसे बायोप्रिपरेट नामक एजेंसी चलाया करती थी. इस एजेंसी में 70 हज़ार लोग काम किया करते थे.
शीत युद्ध ख़त्म होने के बाद जब वैज्ञानिक इस कार्यक्रम को ख़त्म करने के लिए पहुंचे, यहां उन्हें पता चला कि सोवियत संघ ने एंथ्रैक्स, स्माल पॉक्स समेत अन्य बीमारियों के पैथोजेन को व्यापक स्तर पर तैयार किया है. दक्षिणी रूस के एक द्वीप पर जीवित बंदरों पर इन पैथोजेन की टेस्टिंग भी की गई थी.
यही नहीं, इस एजेंसी ने एंथ्रैक्स के स्पोर्स को लंबी दूरी वाली इंटर-कॉन्टिनेंटल मिसाइलों के वॉरहेड में लोड किया हुआ था जिनका निशाना पश्चिमी देशों के शहर थे.
गैर-पारंपरिक हथियार की फेहरस्ति में एक डर्टी बम भी है जो कि एक सामान्य बम होता है लेकिन उसके आसपास रेडियोधर्मी तत्व मौजूद रहते हैं. इसे आरडीडी यानी रेडियोलॉजिकल डिस्पर्सल डिवाइस के नाम से जाना जाता है. यह एक परंपरागत बम हो सकता है जिसमें रेडियोधर्मी आइसोटोप जैसे केसियम 60 और स्ट्रोनटियम 90 हो सकते हैं.
शुरुआत में इस बम के कारण उतनी ही मौतें होंगी जितना किसी सामान्य बम से होगा. लेकिन यह बम लंदन के किसी उपनगर जितनी बड़ी जगह को हफ़्तों तक रहने लायक नहीं छोड़ेगा. तब तक जब तक इलाक़े को पूरी तरह फिर से संक्रमण मुक्त न किया जाए.
डर्टी बम एक मनोवैज्ञानिक हथियार जैसा है जिसे एक समुदाय में दहशत फैलाने और मनोबल तोड़ने के लिए बनाया गया है. अब तक युद्ध में इस बम का ज़्यादा इस्तेमाल नहीं देखा गया है.
इसकी आंशिक वजह ये है कि ये ख़तरनाक है, इसे संभालना मुश्किल है और इससे बम चलाने वाले भी नुक़सान होने का ख़तरा रहता है.