Baisakhi का पर्व विशुद्धरूप से हमारे अन्नदाताओं का है। वो अन्नदाता जो धरती का सीना चीर कर हमारे लिए अन्न पैदा करते हैं। Baisakhi का पर्व मेहनतकश किसानो को समर्तित है। जब खेतों में रबी की फसल पक कर तैयार हो जाती है और खेतों पर सुनहली चादर बिछ जाती है तब बैसाखी का पर्व आता है। पसीने से सींची गई फसल को जब किसान काटकर घर लाते हैं तो किसान इसका जश्न मानते हैं। नाचते गाते हैं और अन्न की पूजा करते हैं।
Baisakhi का पर्व पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और आसपास के प्रदेशों में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। कई जगहों पर मेलों का आयोजन होता है। विशेष बात ये है कि Baisakhi के दिन ही 1969 में सिखों के दसवें और अंतिम गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी।
Baisakhi के पर्व से ही सिखों के नए साल का आगाज होता है। Baisakhi इसी नए साल का पहला दिन है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी यह दिन बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है इसलिए इसे मेष संक्रांति भी कहा जाता है।
पूरे देश में लॉकडाउन है। ऐसे में इस पर्व पर सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा पालन करते हुए घर के सदस्यों के साथ ही मनाएं। इस दिन सुबह स्नान करने के बाद सूर्य भगवान की पूजा करें और उन्हें जल अर्पित करें। इस दिन अन्न की पूजा करें और देश के अन्नदाताओं के प्रति कृतज्ञता प्रकट करें और भगवान से देश के किसानों के लिए प्रार्थना करें।
Baisakhiके पर्व को देश के कई अन्य राज्यों में भी अलग अलग नामों के साथ मनाने की परंपरा है। पंजाब और हरियाणा में Baisakhi, असम में इस त्योहार को बिहू के नाम मनाया जाता है। वहीं बंगाल में इसे पोइला Baisakhi कहा जाता है। केरल में इसे विशु कहते हैं।