लालू ने छोड़ा साथ, नीतीश से नहीं बनी बात; अब आनंद मोहन का क्या होगा?

लालू प्रसाद को मनाने के लिए आनंद मोहन सिंह ने बहुत कोशिश की थी और जब बात नहीं बनी तो नाराज होकर राज्यसभा सांसद मनोज झा की कविता को एक मुद्दा बनाने की कोशिश की, ताकि वह लालू परिवार पर दवाब बना पाएं, लेकिन यह बैकफायर कर गया. अब वह नीतीश कुमार से मिलने गये थे और संभावना तलाश रहे हैं.

पूर्व सांसद बाहुबली आनंद मोहन सिंह ने गुरुवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से अचानक मुलाकात करने सीएम आवास पहुंच गए थे. आनंद मोहन सिंह की नीतीश कुमार से मुलाकात की चर्चा सियासी गलियारों में खूब हो रही है. दरअसल आनंद मोहन सिंह को यह भरोसा हो गया है कि आरजेडी उन्हें टिकट नहीं देने जा रही है. वास्तव में आनंद मोहन सिंह की चाहत तीन टिकटों की है. पत्नी, बेटे और तीसरे सिपहसलार की, लेकिन लालू प्रसाद उन्हें एक भी टिकट देने के लिए तैयार नहीं है. लालू प्रसाद को मनाने के लिए आनंद मोहन सिंह ने बहुत कोशिश की थी और जब बात नहीं बनी तो नाराज होकर राज्यसभा सांसद मनोज झा की कविता को एक मुद्दा बनाने की कोशिश की, ताकि वह लालू परिवार पर दवाब बना पाएं, लेकिन यह बैकफायर कर गया.

राबड़ी देवी के मुंहबोले भाई के तौर पर जाने जाने वाले सुनील सिंह को लेकर आनंद मोहन दिल्ली गए थे और 10 दिन पहले लालू प्रसाद से मिलने की कोशिश की थी, लेकिन लालू उनसे नहीं मिले थे. उसके बाद आनंद मोहन सिंह अपनी पत्नी लवली आनंद के साथ लालू आवास जाने की कोशिश की, लेकिन उनकी गाड़ी अंदर नहीं आने दी गई. इससे आनंद मोहन दुखी हो गए. मनोज झा की कविता के बहाने पांच दिनों के बाद अपना गुस्सा निकाला था.

लालू प्रसाद समझते हैं कि आनंद मोहन सिंह की राजनीतिक हैसियत क्या है? पिछले चुनाव में दो विधानसभा केंद्र से टिकट दिया गया था. 2020 में पत्नी हार गई, लेकिन बेटे चेतन आनंद शिवहर से जीत गए. राजनीतिक सूत्रों का कहना है कि लालू प्रसाद एक टिकट को लेकर सोच विचार कर रहे थे, लेकिन अब जो हालात बने हैं. वह किसी भी हालत में आनंद मोहन सिंह को एक भी टिकट नहीं देने जा रहे हैं. मनोज झा के मुद्दे पर लालू प्रसाद ने उनका खुलकर समर्थन किया.

लालू प्रसाद ने कहा था कि आनंद मोहन के पास न तो अक्ल है और न ही शक्ल है. इस बयान से समझा जा सकता है कि उनके अंदर कितना गुस्सा होगा. लालू प्रसाद बहुत ही चुटकीले अंदाज में प्रहार करते हैं. कभी भी इस तरह की भाषा का इस्तेमाल नहीं करते थे. बाद में तेजस्वी यादव ने भी उनके खिलाफ बोले और मनोज झा का पक्ष लिया था.

दूसरी ओर, सुधाकर सिंह ने नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था. मंत्री रहते हुए बयान दे रहे थे. सुधाकर सिंह की हरकत से नीतीश कुमार परेशान थे. सुधाकर सिंह को लेकर नीतीश कुमार ने तेजस्वी को कहा था कि मंत्री पद से नहीं हटाया गया तो मुश्किल हो सकती है. चाहे मंडी का मामला हो या कृषि रोड मैप का मामला हो. सुधाकर सिंह लगातार हमला बोल रहे थे. उन्होंने कृषि विभाग में सीनियर अधिकारी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था और भ्रष्ट करार दिया था.

आनंद मोहन से सुधाकर को साधेंगे नीतीश

नीतीश के अंदर मन ही मन चल रहा था कि सुधाकर सिंह का काउंटर करने के लिए राजपूत समाज के नेता हो. इसलिए नियमावली में परिवर्तन किया गया और आनंद मोहन की जेल से रिहाई हुई. आनंद मोहन को बाहर निकालने में जदयू नेताओं ने जो रूचि दिखायी थी. उसकी वजह यही थी कि सुधाकर सिंह को संतुलित कैसे किया जाए. उसको संतुलित करने के लिए आनंद मोहन को तवज्जो दी गई और नियमावली में संशोधन किया गया. आनंद मोहन जैसे लोगों को बाहर निकाला गया.

आनंद मोहन नीतीश कुमार से मिलने गए थे तो यह टटोलने गए थे कि जदयू में कोई जगह है या क्या. लेकिन नीतीश कुमार ने कहा कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को जो चुनौती दी गई है. आप उससे बाहर आइए. कुछ दिनों के अंदर पार्टी के अंदर सब ठीक हो जाएगा, लेकिन आनंद मोहन डिस्प्रेट लग रहे हैं. लालू प्रसाद का यह रैवया उनके खिलाफ जाता दिख रहा है और समय रहते नहीं चेते तो परिवार के दो सदस्यों को टिकट मिलना मुश्किल हो जाएगा.

नीतीश लालू से नहीं दे रहे तवज्जो

  • आरजेडी और जदयू टिकट नहीं देती है, तो किस पार्टी का दरवाजा खटखटाया जाए और तमात रणनीति पर वह काम कर रहे हैं. लालू, तेजस्वी और राबड़ी का दरवाजा आनंद मोहन के लिए बंद हो गया है. 10 दिन के पहले सुनील सिंह के साथ आनंद मोहन गए थे. वहां लालू से मुलाकात नहीं होने के बाद तेजस्वी यादव से सुनील सिंह ने पटना में बात की थी, तो उन्होंने कहा था कि वह सीनियर नेता हैं. वह उनके पिता मुलाकात करें.
  • अब जब आरजेडी से टिकट मिलना मुश्किल है. इसी को टटोलने नीतीश कुमार से मिलने गए गए थे. नीतीश कुमार ने भी दस मिनट का समय देकर साफ कर दिया था कि आनंद कुमार के लिए जदयू के दरवाजे खुले नहीं हैं. आनंद मोहन जब जेल से बाहर निकले थे और सभा की थी, उसमें लोगों की भीड़ नहीं थी. इससे साफ है कि वह अब कद्दावर नेता नहीं रह गये हैं. इसी वजह है कि नीतीश कुमार और लालू यादव उन्हें तवज्जो नहीं देना चाहते हैं.
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