जातिगत सर्वे जारी कर नीतीश ने तय किया लोकसभा चुनाव का एजेंडा, BJP ने भी बनाया काउंटर प्लान

नीतीश सरकार ने जाति सर्वे के आंकड़े को जारी करके लोकसभा चुनाव 2024 का चुनावी मुद्दा तय कर दिया है. वहीं बीजेपी भी नीतीश कुमार- लालू यादव और कांग्रेस की रणनीति को अच्छी तरह से समझ रही है, इसलिए उसने भी जाति सर्वे की काट के लिए अपनी रणनीति तैयार कर ली है..

बिहार की नीतीश सरकार ने जाति सर्वे के आंकड़े को जारी करके 2024 का चुनावी मुद्दा तय कर दिया है. राहुल गांधी समेत दूसरे दलों ने इस मुद्दे को लपक कर देश भर में जातीय जनगणना कराने की वकालत शुरू कर दी है. विपक्ष को लगता है कि इस चुनावी मुद्दे की बदौलत 2024 में होने वाले लोकसभा ‘चुनाव में बीजेपी को मात दिया जा सकता है.

BJP भी नीतीश कुमार- लालू यादव और कांग्रेस की रणनीति को अच्छी तरह से समझ रही है इसलिए उसने भी सर्वे की काट के लिए अपनी रणनीति तैयार कर ली है. सूत्रों की मानें तो, जाति जनगणना का मुद्दा गरमाने पर बीजेपी अपने दो बड़े ट्रंप कार्ड का इस्तेमाल कर सकती है.

बीजेपी रोहिणी आयोग की रिपोर्ट को सामने रखकर देश की ओबीसी जातियों में भी अब तक सबसे पिछड़ी रह जाने वाली जातियों को यह संदेश देने की कोशिश करेगी कि देश के संविधान ने ओबीसी के सभी जातियों का जीवन स्तर सुधारने के लिए उन्हें जो 27 फीसदी का आरक्षण दिया था. उसका सबसे ज्यादा फायदा यादव जैसी जातियों ने ही उठाया है और इन दबंग जातियों ने सही मायनों में आरक्षण का लाभ उनतक नहीं पहुंचने दिया और अब समय आ गया है कि कोटे के अंदर उन पिछड़ी जातियों को अलग से कोटा दिया जाए, जिन्हे अभी तक आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाया है.

बीजपी ने चला दांव

मोटे तौर पर यह माना जाता है कि देश के ओबीसी वर्ग में 2633 के लगभग जातियां आती हैं तो और इनमें से दबंग यादव जाति ने ओबीसी आरक्षण का सबसे ज्यादा फायदा उठाया है, जिसके नेता अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव माने जाते हैं. यह भी माना जाता है कि यादवों के साथ-साथ कुर्मी, मौर्य, जाट, गुर्जर और लोध सहित सिर्फ 10 जातियों ने ओबीसी आरक्षण से 25 प्रतिशत लाभ उठाया है.

आंकड़ों को और अधिक विस्तार दिया जाए तो यादवों के साथ-साथ कुर्मी, मौर्य, कोइरी, जाट ( कुछ राज्य में), गुर्जर ( कुछ राज्य में) और लोध सहित सिर्फ 25 प्रतिशत जातियों ने नौकरियों और शिक्षा में 97 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण का लाभ उठाया है, जबकि ओबीसी वर्ग में आने वाली शेष 75 प्रतिशत जातियों की को सिर्फ 3 प्रतिशत लाभ ही मिल पाया है.

यहां तक कि 983 ओबीसी जातियों ऐसी भी हैं, जिन्हें अब तक ओबीसी आरक्षण का कोई लाभ नहीं मिल पाया है… नोनियां, कहार, बढ़ई, कम्हार, चौरसिया, धानुक, राजभर, कश्यप, बिंद केवट और निषाद जैसी एक हजार के लगभग ऐसी जातियां हैं, जिन तक इन दबंगों ने आरक्षण का लाभ पहुंच ही नहीं दिया और बीजेपी ओबीसी वर्ग की उन्ही जातियों के पास पहुंच कर उन्हे 27 फीसदी आरक्षण के कोटे में अलग से आरक्षण का कोटा देने का दांव खेल सकती ÷

रोहिनी आयोग रिपोर्ट को बनाया हथियार

जानकारी के मुताबिक रोहिणी आयोग ने ओबीसी की जातियों को 4 वर्गों में विभाजित करने का सुझाव दिया है. इन वर्गों में आरक्षण का पूरा लाभ, अधूरा लाभ, बिल्कुल लाभ नहीं ले पाने वाली और एक दम अक्षम जातियों का 4 वर्ग तैयार हो सकता है, जिनके लिए 27 फीसदी आरक्षण के कोटे के अंदर अलग से कोटे की व्यवस्था की जा सकती है. ऐसे वंचित 4 वर्गों में विभाजन होते ही उन कमजोर जातियों का फायदा होगा. बीजेपी को लगता है कि अब तक आरक्षण के लाभ से वंचित जातियां बीजेपी के साथ आ सकती है..

बीजेपी के पास दूसरा सबसे बड़ा ट्रंप कार्ड यूसीसी अर्थात समान नागरिक सहिंता का कानून है, जिसे सामने रखकर पार्टी देश के वोटरों खासकर हिंदुओं को यह बताएगी कि उन्हें जातियों में बांटने की कोशिश कर रही है. इस कानून के लागू होने की संभावना के साथ ही देश में बड़े पैमाने पर हिंदू- मुस्लिम ध्रुवीकरण भी शुरू हो जाएगा, जिसका सीधा लाभ बीजेपी को चुनावों में मिल सकता है.

उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता

गृह मंत्री अमित शाह ने इस संबंध में बुधवार को उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी के साथ बैठक भी की. इस बैठक में उत्तराखंड सीएम द्वारा समान नागरिक संहिता पर विचार कर सिफारिश देने के लिए बनाई गई यूसीसी समिति की अध्यक्ष रंजना देसाई समेत अन्य सदस्य भी मौजूद रहे. समान नागरिक संहिता को लागू करने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन सकता है, राज्य में इसके लिए ड्राफ्ट पहले ही तैयार कर लिया गया है.

अब राज्य में समान नागरिक संहिता लागू करने की तैयारी भी तेज कर दी गई है. ऐसा माना जा रहा है कि अक्टूबर के अंतिम सप्ताह या नवंबर के पहले सप्ताह में समिति सरकार को अपनी रिपोर्ट दे सकती है और इसके बाद सरकार “ विधानसभा सत्र बुलाकर इसे लागू करने की दिशा में आगे बढ़ सकती है. बीजेपी शासित गुजरात जैसे कई अन्य राज्य भी इस एजेंडे को लेकर अपने-अपने राज्य में आगे बढ़ सकते हैं, जिसका सहारा लेकर बीजेपी जाति आधारित राजनीति के समीकरण को तोड़ते हुए हिंदुओं के वोट बैंक को अपने साथ बनाए रखने में कामयाब हो सकती है.

दरअसल लोकसभा चुनाव तक बीजेपी इस मुद्दे को ठंडा नहीं पड़ने देना चाहती है. यही वजह है कि उत्तराखंड की यूसीसी रिपोर्ट आते ही पूरे देश में एक चर्चा शुरू होगी, जिसे बीजेपी लोकसभा के चुनावी लिहाज से अपने हक में देख रही है.

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