Ramvilas Paswan death LJP Bihar Politics

रामविलास पासवान को मौसम वैज्ञानिक क्यों कहा जाता था?

बिहार की राजनीति के दिग्गज नेता Ramvilas Paswan को राजनीति का मौसम वैज्ञानिक भी कहा जाता था। ये उपाधि उन्हें पूर्व मुख्य मंत्री और राजद अध्यक्ष Lalu Prasad Yadav ने दी थी। एक नहीं छह- वी पी सिंह, एचडी देवगौड़ा, आई के गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और अब नरेंद्र मोदी- प्रधान मंत्री की कैबिनेट में काम करने वाले रामविलास पासवान ने करीब बारह वर्षों तक बिहार और पूरे देश में गुजरात दंगों और उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री और अब PM नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ जमकर प्रचार किया था। बाद में उन्हीं की सरकार में मंत्री भी बने।

बिहार से लालू-राबड़ी को राज्य की सता से बाहर करने में भी उनकी अहम भूमिका रही है।
लेकिन पहले जानते हैं कि आख़िर उन्हें राजनीति के मौसम वैज्ञानिक की उपाधि कैसे मिली? जब Nitish Kumar ने लालू यादव के ख़िलाफ़ विद्रोह कर साल 1994 में समता पार्टी बनायी तो Ramvilas Paswan लालू यादव के क़ब्ज़े में चली गयी जनता दल में ही रहे और अगले साल 1995 में विधान सभा चुनावों में जब भारी बहुमत से Lalu Yadav की जीत हुई तो लोगों को समझ आ गया कि पासवान अपने उस फैसले पर सही थे। उसके बाद जब लालू यादव ने चारा घोटाले में नाम आने पर 1997 में अपनी नई पार्टी (राजद) बना ली उसके बाद भी पासवान शरद यादव के साथ जनता दल में ही बने रहे और 1998 का लोक सभा चुनाव जीतने में कामयाब रहे।

हालांकि, तब तक उन्हें आभास हो गया था कि अब उन्हें लालू या NDA में से किसी एक को चुनना होगा। फिर जनता दल और समता पार्टी का विलय होकर जनता दल यूनाइटेड बनी और 1999 के लोक सभा चुनाव में Lalu Prasad Yadav को इस नए गठबंधन के सामने हार स्वीकार करनी पड़ी। उस समय के लोक सभा सीटों में राष्ट्रीय जनता दल को मात्र सात सीटें मिली लेकिन अगले ही साल विधानसभा चुनाव में जनता दल यूनाइटेड में विभाजन हो गया और लालू यादव कांग्रेस पार्टी की मदद से सरकार बनाने में क़ामयाब हो गए। पासवान ने भी अपनी नई पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी बना ली। केंद्र में जो NDA की सरकार बनी थी उसमें Ramvilas Paswan संचार मंत्री थे लेकिन कुछ कारणों से यह मंत्रालय उनसे 2 वर्षों में छीन लिया गया और उन्हें कोयला मंत्रालय दे दिया गया जिससे वो काफ़ी नाराज़ थे। तभी उन्होंने गुजरात दंगों को आधार बनाकर अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार से इस्तीफ़ा दे दिया।

हालांकि, पासवान NDA में बने रहे और 2004 के लोकसभा चुनाव के ऐन मौक़े पर जब पड़ोस में रह रहीं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी उनके घर पैदल चलकर गईं तो उन्होंने फिर से UPA का हाथ थाम लिया। पासवान ने एक बार फिर बिहार में Lalu Prasad Yadav और कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और पिछले लोकसभा चुनावों का परिणाम पलट डाला। इस बार Nitish Kumar अपने परंपरागत बाढ़ सीट से भी हार गए। केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार बनी तो Lalu Prasad Yadav के कारण उन्हें रेल मंत्रालय नहीं मिल पाया। इससे खफा पासवान ने लालू यादव से 2005 के विधानसभा चुनावों में 2-2 हाथ करने की ठान ली।

2005 के फरवरी में उनकी पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी अकेले बिहार विधान सभा चुनाव लड़ी। यह पहली बार हुआ था कि जो लोग केंद्र में सहयोगी थे, वो राज्य में एक-दूसरे के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ रहे थे। उनकी पार्टी को 29 सीटें आईं। इसी कारण त्रिशंकु विधानसभा का परिणाम आया। राबड़ी देवी मुख्यमंत्री नहीं रहीं। राज्य में राष्ट्रपति शासन लग गया। कुछ ही महीनों के बाद Lalu Prasad Yadav के दबाव में जब विधानसभा को भंग करने का केंद्रीय कैबिनेट में फ़ैसला लिया गया, तब Ramvilas Paswan उससे दूर रहे। हालाँकि, 2005 के अक्टूबर- नवंबर में हुए दूसरे विधानसभा चुनाव में उन्हें मात्र 10 सीटों से ही संतोष करना पड़ा।

राज्य में Nitish Kumar की सरकार बनी। इसमें लोक जनशक्ति पार्टी की एकला चलो रे की नीति की महत्वपूर्ण भूमिका रही। हालाँकि, सत्ता में आने के साथ ही Nitish Kumar ने दलितों में पासवान जाति के वर्चस्व के ख़िलाफ़ महादलित नाम का पासा फेंक दिया और उनके लिए विकास के कार्यक्रम जब शुरू किए तो Ramvilas Paswan इससे काफ़ी नाराज़ हुए। पासवान एक बार फिर Lalu Prasad Yadav के साथ तालमेल करने पर मजबूर हो गए। हालाँकि, इसका लाभ उन्हें राजनीतिक रूप से ख़ासकर चुनाव में नहीं मिला. 2009 का लोकसभा चुनाव वो हार गए। 2010 के विधानसभा चुनाव में लोजपा को मात्र तीन सीटें मिलीं।

इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले जब लालू यादव उन्हें सीटों के तालमेल पर अपमानित करने लगे और Nitish Kumar अपने बलबूते अधिक से अधिक सीट जीतने के विश्वास में डूबे रहे, तब Ramvilas Paswan ने एक क्षण में BJP के साथ जाने का फ़ैसला कर लिया। उन्होंने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री स्वीकार करने में कोई देर नहीं लगायी। तब उनका तर्क यही था कि 12 साल हो गए, इस दौरान काफ़ी कुछ बदल चुका है और फिर से पासवान केंद्रीय मंत्री बन गए, नरेंद्र मोदी की सरकार का हिस्सा हो गए।

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