बिहार के लिए क्यों जरूरी हैं नीतीश कुमार? जानें 51 फीसदी वोट का हिसाब

बिहार में चल रहे सियासी ड्रामे के अंत के साथ एक बात तो साफ हो गई कि बिहार में सरकारें आएंगी, सरकारें जाएंगी, लेकिन नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री ही रहेंगे. आखिर बिहार की ऐसी क्या मजबूरी है कि बिहार के लिए नीतीश कुमार हर बार जरूरी हो जाते हैं. आखिर नीतीश कुमार की ये कैसी सेटिंग है कि गठबंधन किसी से भी हो जाए सीएम वही बनते हैं?

नीतीश कुमार ने रविवार को 9वीं बार 13 करोड़ से ज्यादा की आबादी वाले राज्य बिहार के नए मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली. इस तरह पिछले कई दिनों से चल रहे बिहार के द ग्रेट पॉलिटिकल ड्रामे का अंत हो गया. इस तरह एक बार फिर साबित हो गया कि नीतीश कुमार बिहार की राजनीति के वो स्टार हैं जो हर गठबंधन के लिए जरूरी हैं. बिहार में गठबंधन कोई भी हो, सरकार किसी भी पार्टी की बने, बहुमत भले ही किसी भी पार्टी का ज्यादा हो लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही बनते हैं.

बिहार की सत्ता के सिंहासन पर ताजपोशी नीतीश कुमार की ही होती है. नीतीश कुमार 9वीं बार मुख्यमंत्री बने तो ये संयोग ही है 28 जनवरी यानी रविवार के दिन नीतीश कुमार को मिलाकर 9 मंत्रियों ने शपथ ली, लेकिन बिहार में पिछले कई दिनों से चल रहे इस पॉलिटिकल ड्रामा से जो सबसे ज्यादा आहत हैं वो हैं लालू प्रसाद यादव के बेटे और बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव. तेजस्वी यादव ने कह दिया है कि खेल तो अभी शुरू हुआ है.

बिहार के इस सियासी खेल से बेपरवाह नीतीश कुमार एक बार फिर किंग बन गए हैं. नीतीश कुमार के पास सिर्फ 45 विधायक हैं. इसके बावजूद वो मुख्यमंत्री बने हैं. आरजेडी गठबंधन में भी कम सीटों के बावजूद नीतीश मुख्यमंत्री रहे. पिछले 18 सालों से बिहार में नीतीश कुमार किंगमेकर नहीं बल्कि किंग बनते आ रहे हैं. इस दौरान सिर्फ 9 महीने के लिए जीतन राम मांझी बिहार के सीएम बने थे.

विपक्ष को एक मंच पर लाने में सफल हुए थे नीतीश

वैसे भी नीतीश कुमार की ही शख्सियत थी कि विपक्ष को एक मंच पर लाने में सफल हुए थे. पर अचानक ऐसा क्या हो गया कि नीतीश कुमार के लिए एनडीए में जाना उनके लिए मजबूरी हो गया. आज इस्तीफा देने से पहले नीतीश कुमार ने ये बता भी दिया कि आखिर आरजेडी के साथ रहते हुए वो कितना तकलीफ में थे. नीतीश कुमार ने कहा, हम बीच में तो कुछ नहीं बोल रहे थे. आप याद करिए ना कि बीच में बहुत कुछ कहना चाह रहे थे लेकिन कुछ नहीं बोल रहे थे. कोई कुछ नहीं कर रहा था.

इस तकलीफ के चलते नीतीश कुमार ने आरजेडी का साथ छोड़ दिया और एक बार फिर एनडीए में शामिल हो गए. इसे न सिर्फ नीतीश कुमार की जीत बताया जा रहा है बल्कि ये बीजेपी के लिए भी वो मास्टरस्ट्रोक है जिससे बिहार में एनडीए सरकार से बीजेपी ने 51 फीसदी वोट का अंकगणित पुख्ता कर लिया है.

51 फीसदी वोट का हिसाब क्या है?

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कुर्मी जाति से हैं, तो उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी कोइरी जाति से आते हैं. ये दोनों जातियां बिहार में अति पिछड़ा वर्ग यानी EBC में आती हैं. जिनकी आबादी सबसे ज्यादा 36 फीसदी है. जबकि दूसरे उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा भूमिहार जाति से हैं, जो सवर्ण वर्ग की जाति है और बिहार मे सवर्णों की आबादी 15 फीसदी है. इस तरह से 2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए ने बिहार में 36+ 15 यानी 51 फीसद वोट का पुख्ता जुगाड़ कर लिया है.

इतनी दूरी के बाद अगर बाद में दिल जुड़ते भी हैं तो एनडीए को हराने का जज्बा नहीं पैदा होने वाला है. शायद यही सब देखकर नीतीश कुमार ने इंडिया गठबंधन का संयोजक भी बनने से इनकार कर दिया. और अब 9वें मुख्यमंत्री के तौर पर नई पारी की शुरुआत की है. और बिहार की जनता भी जानती भी है आखिर नीतीश कुमार की अहमियत क्या है.

बिहार के लिए नीतीश क्यों जरूरी?

  • बिहार के जंगलराज के बीच सुशासन बाबू की छवि बनाई
  • अपराध, फिरौती, राज्य की बदनामी की छवि बदलने में सफल
  • एक वक्त बिहार की ग्रोथ रेट पूरे देश में सबसे ज्यादा हो गई थी।
  • विरोधियों के मुकाबले ईमानदार छवि बरकरार रखने में सफल रहे
  • हलफनामे बताते हैं कि आज भी नीतीश के पास संपत्ति के नाम पर ज्यादा कुछ नहीं

नीतीश ने क्यों मारी पलटी?

  • तेजस्वी को CM बनाने का दबाव था
  • लालू प्रसाद की दखल बढ़ रही थी
  • महागठबंधन में मतभेद उभर रहे थे
  • JDU के अंदर अविश्वास का माहौल था
  • INDIA गठबंधन का प्रयोग फेल होता दिखा
  • INDIA गठबंधन के दलों ने तवज्जो नहीं दी
  • BJP की हैट्रिक की सूरत में मुश्किलें बढ़तीं

नीतीश कुमार लोहिया और जेपी के अनुयायी रहे हैं. इसलिए उनके लिए गैर कांग्रेस वाद और गैर बीजेपी वाद ही उनकी राजनीति की असली पहचान रही है, पर उन्होंने बड़ी कुशलता से अपने को दोनों पार्टियों से अलग भी रखा और मौके पर उनका सहयोग भी लिया, लेकिन आरजेडी इसे पलटी मार राजनीति कह रही है.

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