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आखिर क्यों मिला प्रभु राम को 14 और पांडवों को 12 वर्ष का वनवास ? जानिए इसके पीछे की कहानी

आपने रामायण और महाभारत की कथाएं सुनी और देखी होंगी. रामायण महाभारत रामचरितमानस जैसे धार्मिक ग्रंथों को पढ़कर ही नहीं बल्कि इन कथाओं पर आधारित धारावाहिकों को भी हम भलीभांति जानते हैं. लेकिन आज हम आपको इस रिपोर्ट में बताएंगे की भगवान राम को 14 वर्ष और महाभारत में पांडवों को 12 वर्ष का वनवास क्यों मिला चलिए जानते हैं.

दरअसल राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी. जिसमें दूसरी पत्नी का नाम कैकई था. जब राजा दशरथ के पुत्र भगवान राम का राज्याभिषेक होने वाला था तब मंथरा के बहकावे में आकार रानी कैकई ने राजा दशरथ से अपने वचन मांगे. हालांकि राजा दशरथ भी वचनबद्ध थे. मंथरा के बहकावे में आकर रानी कैकई ने राजा दशरथ से भगवान राम के लिए 14 वर्ष का वनवास मांगा और भरत को अयोध्या का राजा बनाने के लिए कहा. तब राजा दशरथ को वचनबद्ध होने के कारण दोनों वचन को माननी पड़ी. अब आपके मन में यह सवाल चल रहा होगा कि आखिर कैकई ने 14 वर्ष के लिए वनवास क्यों मांगा क्यों नहीं 10 साल 12 साल मांगा तो चलिए इसको भी जानते हैं.

क्यों मिला राम को 14 वर्ष का वनवास?
अयोध्या के प्रसिद्ध कथा वाचक पवन दास शास्त्री बताते हैं कि त्रेता युग में एक व्यवस्था चला करती थी. एक नियम था कि यदि कोई राजा अपनी गद्दी 14 वर्षों तक छोड़ता है तो वह राजा बनने का अधिकार खो देता है. शायद यही वजह है कि रानी कैकई ने भगवान राम के लिए 14 वर्ष का ही वनवास मांगा. अब आपके मन में सवाल चल रहा होगा कि महाभारत में आखिर पांडवों के लिए 12 वर्ष का वनवास क्यों मिला. दरअसल महाभारत में भी एक ऐसा प्रसंग देखने को मिलता है जो मन में कई सारे सवाल पैदा करते हैं. एक बार बाजी हारने के बाद कौरव ने पांडवों के लिए 12 वर्ष के लिए बनवास और 1 वर्ष के लिए अज्ञातवास मांगा था. यानी कुल मिलाकर 13 साल राजपाट से पांडवों को दूर रहना पड़ा .

12 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास
महाभारत के शकुनी मामा के नेतृत्व में भी कौरव के इस चाल के पीछे भी द्वापर युग की एक अपनी व्यवस्था थी. अपना एक नियम था. पवन दास शास्त्री बताते हैं कि इस नियम के मुताबिक यदि कोई राजवंशी 13 साल के लिए अपना राजपाट छोड़ देता है तो वह शासन का अधिकार खो देता है. शायद यही वजह है कि कौरव पांडव के लिए 12 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास भेजा था.

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