उत्तर प्रदेश की सियासत ज्यों-ज्यों 2022 की चुनावी देहरी की ओर बढ़ रही है, त्यों-त्यों शब्दों-बयानों और विवादों के रेले इधर-उधर से बाहर आने लगे हैं. ताजे मामले में छाए हैं ‘अब्बा जान’ सीएम योगी ने सपा के अगुआ अखिलेश यादव को कुछ कहते हुए ‘उनके अब्बाजान’ कह दिया. इस शब्द में न जाने ऐसा क्या था कि पूर्व सीएम रहे टीपू भैया को बुरा लग गया.
वह कह रहे हैं कि सीएम उनके पिता के बारे में ऐसा नहीं बोल सकते, अगर ऐसा बोलते हैं तो अपने पिता के लिए भी सुनने को तैयार रहें. आमतौर पर यूपी के लड़के आपस में लड़ते हुए ऐसा तब कहते हैं, जब लड़ाई एकदम पटका-पटका पर आ गई हो और उनमें से कोई एक खानदान वाली बात कर देता है.
कुछ ऐसे ही तेवर में अखिलेश भी कह रहे हैं, पिताजी पर मत जाइए. तो क्या यूपी के पूर्व सीएम रहे अखिलेश यादव ‘अब्बाजान’ शब्द को गाली समझ बैठे हैं?
इस पर बात करने से पहले यह भी जान लेते हैं कि सीएम योगी ने क्या कहा था. असल में हुआ क्या कि शुक्रवार को जब टोक्यो में नीरज चोपड़ा भाला फेंक रहे थे, तब यूपी में सीएम और पूर्व सीएम एक-दूसरे पर शब्द बाण चला रहे थे. अखिलेश यादव ने खुद को भारतीय जनता पार्टी के नेताओं से बड़ा हिंदू बताया था.
सीएम योगी ने उन पर तंज कसते हुए कह दिया कि उनके अब्बाजान (मुलायम सिंह यादव) कहते थे कि वहां (अयोध्या में) परिंदे को भी पर नहीं मारने देंगे लेकिन अब वहां राम मंदिर का निर्माण शुरू हो गया है.
अब्बाजान कहे जाने पर हंगामा क्यों बरपा है? अच्छा शब्द है. पिता के स्थान पर अब्बा कहा जाता है और उत्तर प्रदेश में तकरीबन 21 फीसदी की तादाद वाली मुस्लिम जनसंख्या अपने वालिद के लिए अब्बा शब्द का ही प्रयोग करती है.
फिर तो यह वह आबादी है, जिस पर सपा और अखिलेश अपना क्लेम करते रहे हैं. उसी आबादी के इस खूबसूरत शब्द को सुनकर अखिलेश को क्यों बुरा लग रहा है.
यही सवाल यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने भी पूछा है. उन्होंने कहा है कि अब्बा शब्द उर्दू का अच्छा और मीठा शब्द है. अखिलेश को इससे नफरत क्यों है, वह अपने पिता को डैडी बोल सकते हैं जो अंग्रेजी शब्द है. पिताजी तो कहते नहीं है तो उर्दू के अब्बाजान से क्यों इतनी दिक्कत है?