बंगाल का दंगल : जय श्रीराम, ममता का गुस्सा, मोदी का जय हिंद, बंगाल का सियासी रंगमंच हो रहा तैयार

पश्चिम बंगाल (West Bengal History) देश का वो राज्य है जहां पर कई महापुरुषों ने जन्म लिया। सन् 1757 में प्‍लासी की लड़ाई ने इतिहास की धारा को मोड़ दिया। अंग्रेजों ने पहले-पहल बंगाल और भारत में अपने पांव जमाए। सन् 1905 में राजनीतिक लाभ के लिए अंग्रेजों ने बंगाल का विभाजन कर दिया लेकिन कांग्रेस के नेतृत्‍व में लोगों के बढ़ते हुए आक्रोश को देखते हुए 1911 में बंगाल को फिर से एक कर दिया गया। फिलहाल बंगाल के इतिहास को चंद लफ्जों में बयान करना मुमकिन नहीं है मगर ये जानना बेहद जरूरी है कि आखिरकार इस बार विधानसभा के चुनाव पर पूरे देश की नजरें क्यों टीकी हुई हैं ?

पश्चिम बंगाल की धरती पर जन्म लेने महापुरषों की एक लंबी फेहरिस्त है। लेकिन कुछ महापुरुषों के बारे में हम आप बहुत कम उम्र में पढ़ते सुनते जरूर आए होंगे। जैसे नेताजी सुभाष चंद्र बोस, जगदीश चंद्र बसु (बोस), श्यामा प्रसाद मुखर्जी, रवींद्र नाथ ठाकुर (टैगोर), खुदीराम बोस, ज्योति बसु, शरत चंद्र चट्टोपाध्याय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर और राजा राममोहन राय। अब देश की सियायत में इन महापुरुषों का भी साथ लिया जाता है। हर पार्टी खुद को इन महापुरुषों के बताए रास्तों पर चलने का दावा करती है, मगर सच्चाई कोषों दूर है।

2021 में बंगाल में विधानसभा चुनाव (2021 Bengal Election ) होने हैं। भारत लोकतांत्रिक देश है तो यहां पर हर साल कहीं न कहीं लोकतंत्र का त्योहार मनाया जाता है। 2021 में ही पांच राज्यों में चुनाव होने हैं मगर नजरें इस क्रांतिधरा (बंगाल) पर ही टीकी हैं। नजरों का टिकना भी जायज है क्योंकि ये वहां पर टिकती है जहां पर कुछ असामान्य होता है। बंगाल चुनाव भी इस बार असामान्य होने जा रहा है। ऐसा किसलिए हो रहा है हम आपको बताएंगे मगर उससे पहले शनिवार के दिन को परखते हैं।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती, पश्चिम बंगाल (West Bengal) की राजनीति के लिए सोने पर सुहागा साबित हो रही है। एक तरफ जहां पीएम नरेंद्र मोदी (PM Modi) यहां की सरजमीं पर पहुंचे, वहीं टीएमसी चीफ ममता बनर्जी ( Mamata Banerjee) ने कार्यकर्ताओं के साथ कोलकाता में पदयात्रा निकाली। दोनों नेता पूरी शिद्दत से नेताजी की विरासत पर दावा करने में जुटे हुए हैं।

उनकी 125वीं जयंती मनाई गई। यहां पर मंच का संचालन कर रहे मंच संचालक ने वहां की CM ममता बनर्जी का नाम पुकारा, वैसे ही अपने चिर परिचत अंदाज में ममता बनर्जी मंच के माइक तक पहुंचीं मगर उनका चेहरा तमतमाया हुआ था। दरअसल, जैसे ही उनके नाम की घोषणा हुई तो लोगों ने जय श्री राम का नारा लगा दिया। वो मंच पर पहुंची और कहा कि ये कोई राजनीतिक मंच नहीं है जहां पर ऐसे नारे लगाए जा रहे हैं। उन्होंने हालांकि कोलकाता में सुभाष बाबू की जयंती मनाने के फैसले पर उन्होंने PM मोदी का आभार भी जताया।

PM ने अपने लंबे चौड़े भाषण में कई बार सुभाष चंद्र बोस का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि वो हर स्थिति और परिस्थिति में नेताजी से प्रेरणा लेते रहे हैं और आज भी लेते हैं। कोई शक की बात नहीं कि जो जज्बा और जिद बोस के अंदर थी वो किसी और में नहीं झलकती। बेशक उनको अंग्रेजी हुकूमत ने जेल में सड़ा दिया हो मगर भूख हड़ताल के बाद अंग्रेजों को उनको छोड़ना पड़ा और बाद में वो वहां से चकमादेकर भाग गए और यूरोप पहुंच गए।

हिंदुस्तान में महापुरुषों के नाम पर राजनीति कोई नई बात नहीं है। हर राज्य में ऐसे उदाहरण देखने को मिल जाते हैं मगर अब इस खेल में बीजेपी अन्य पार्टियों से आगे निकल गई। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नाम को भी बीजेपी ने खूब भुनाया और अब बंगाल चुनाव के वक्त जिस तरह से नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती मनाई जा रही है तो BJP ने उसको भव्य बना दिया। पीएम मोदी का संबोधन भी अगर आप गौर से सुनेंगे तो आपको समझ आएगा कि यह श्रीराम.. ममता का गुस्सा… मोदी का जय हिंद… यह सब बंगाल की सियासी रंगमंच का ही हिस्सा है।

CM ममता बनर्जी का व्यक्तित्व बेहद तेजतर्रार वाला है। दीदी के नाम से मशहूर ममता बनर्जी बेहद तेज-तर्रार और जुझारू राजनीतिज्ञ मानी जाती हैं। जिस तरह ममता PM मोदी को सीधे-सीधे चुनौती देती हैं वैसा मुखर कोई और नेता नहीं हो पाता। 1998 में कांग्रेस से नाता तोड़ कर TMC की स्थापना की और महज 13 वर्षों के भीतर राज्य में दशकों से जमी वाममोर्चा सरकार को उखाड़ कर उन्होंने अपनी पार्टी को सत्ता में पहुंचाया था। साल 2011 के विधानसभा चुनावों में उन्होंने अकेले अपने बूते ही TMC को सत्ता के शिखर तक पहुंचा दिया। अब ममता के सामने चुनौती है कि कहीं 2021 में उनका ये किला ढह न जाए।

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