INDIA से मायावती को दूर करके गलती तो नहीं कर रहे अखिलेश! किसका नफा- किसका नुकसान?

INDIA में बसपा के शामिल होने पर अखिलेश यादव और जयंत चौधरी ने वीटो लगा दिया है, लेकिन कांग्रेस के कई नेता अभी भी मायावती को गठबंधन का हिस्सा बनाने के पक्ष में हैं. आज हम आपको आंकड़ों के जरिए बताएंगे कि अगर मायावती INDIA गठबंधन का हिस्सा नहीं बनती हैं तो इसका किसको नफा और किसको नुकसान होगा.

2024 के रण से पहले INDIA में अंर्तद्वंद है. वजह हैं बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती. समाजवादी पार्टी (सपा) और राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) ने साफ कर दिया है कि अगर बसपा गठबंधन का हिस्सा होगी तो वह अलग राह चुन लेंगे. सपा-आरएलडी के कड़े रुख के बाद कांग्रेस ने भी साफ कर दिया कि वह बसपा को गठबंधन में लाने का प्लान नहीं कर रही है. हालांकि दबी जुबान से यह भी कहा जा रहा है कि हम मायावती के आखिरी रुख का इंतजार करेंगे. फिलहाल यूपी में INDIA का मतलब- कांग्रेस+सपा+RLD ही रहने वाला है.

कहा जा रहा है कि INDIA में बसपा की एंट्री रोकने के लिए अखिलेश ने कड़ा रुख अख्तियार कर लिया है, क्योंकि अगर मायावती गठबंधन में आती हैं तो अखिलेश को लगता है कि उनकी अहमियत कम हो जाएगी. आरएलडी भी जानती है कि अगर बसपा आ गई तो पश्चिमी यूपी की कई सीटों पर वह दावेदारी करेगी, जिसपर पिछले कई महीनों से जयंत चौधरी की पूरी टीम तैयारी कर रही है. लेकिन अगर आंकड़ों पर गौर किया जाए तो लगता है कि बसपा का गठबंधन में न आना INDIA को डैमेज कर सकता है.

वोटों के बिखराव से डर रही है कांग्रेस

गठबंधन में बसपा को शामिल न करने का बयान देकर कांग्रेस ने रार पर विराम तो लगा दिया है, लेकिन यह पूर्ण विराम नहीं है, क्योंकि कई कांग्रेसी नेता अभी भी बसपा के पक्ष में हैं. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह मुस्लिम वोट हैं. अगर बसपा और सपा अलग-अलग लड़ते हैं तो पश्चिमी यूपी और पूर्वी यूपी के कई मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर वोटों का बिखराव हो सकता है, जैसा 2014 में हुआ था. 2014 में सपा और बसपा, दोनों ही मुस्लिम बाहुल्य सीटें हार गई थीं.

2014 और 2022 में हुआ नुकसान

2014 की तरह 2022 के चुनाव में भी बसपा ने कई मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर सपा को डैमेज किया था. जैसे नकुड़ की सीट पर बसपा के साहिल खान को 55 हजार वोट मिले थे और इस सीट पर सपा की हार केवल 315 वोटों से हुई थी. पश्चिमी और पूर्वी यूपी में ऐसे कई उदाहरण हैं. वहीं 2019 में जब बसपा और सपा साथ मिलकर लड़ी तो मुस्लिम बाहुल्य सीटों (जैसे- सहारनपुर, बिजनौर, मुरादाबाद, संभल, रामपुर, अमरोहा, गाजीपुर, आजमगढ़) पर जीत दर्ज की थी.

बिना बसपा क्या मुस्लिम बाहुल्य सीट पर जीत पाएंगे अखिलेश?

2014 और 2022 के चुनाव नतीजें बताते हैं कि अखिलेश, बसपा को गठबंधन में शामिल न करने की जिद पर अड़कर खुद का ही नुकसान करवा सकते हैं. 2014 के चुनाव की ही तरह सपा को रामपुर, मुरादाबाद, संभल जैसी सीटों पर भी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है, जहां 2019 के चुनाव में बड़े मार्जिन से जीत दर्ज की थी. केवल पश्चिम यूपी ही नहीं पूर्वी यूपी की सीटों जैसे- आजमगढ़, जौनपुर, गाजीपुर में भी सपा के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती हैं.

2019 को क्यों नहीं दोहराना चाहते हैं अखिलेश

यूपी की राजनीति के लिए 2019 का चुनाव ऐतिहासिक मौका था, क्योंकि दो धुरविरोधी पार्टियां सपा और बसपा एक मंच पर आ गई थीं. दोनों ने 80 सीटों पर मिलकर चुनाव लड़ा था. इस चुनाव में सपा को न नफा हुआ और न नुकसान… लेकिन बसपा का जबरदस्त फायदा हुआ था. वह 0 से सीधे 10 सीटों पर पहुंच गई थी. 2019 के चुनाव में बसपा को 19.43 फीसदी वोट मिला था, जबकि सपा को 18.11 फीसदी वोट मिला. आरएलटी को 1.69 फीसदी वोट मिला था.

यानी 2014 के तुलना में बीएसपी का वोट प्रतिशत ज्यों का त्यों बना रहा, लेकिन सपा का वोट प्रतिशत 4 फीसदी से अधिक गिर गया था. यही वजह है कि अखिलेश को डर सता रहा है कि अगर मायावती गठबंधन का हिस्सा बनती हैं तो 2019 की तरह वोट प्रतिशत और सीटो में सबसे अधिक फायदा भी बसपा के हिस्से में जा सकता है, जिस वजह से गठबंधन में उनकी अहमियत काफी बढ़ जाएगी और इसका असर 2027 के विधानसभा चुनाव में भी पड़ सकता है.

कांग्रेस के लिए बसपा क्यों है जरूरी?

अखिलेश भले ही अपनी अहमियत कम हो जाने का खतरा भांपकर बसपा के साथ जाने से परहेज कर रहे हैं, लेकिन कांग्रेस का एक बड़ा तबका आज भी बसपा को INDIA में देखना चाहता है. इसके पीछे की वजह मायावती का कई प्रदेशों में जनाधार है. कांग्रेस के नेताओं की माने तो अगर बसपा गठबंधन का हिस्सा बनती है तो सिर्फ यूपी ही नहीं… बल्कि पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों में बीजेपी को कड़ी टक्कर दी जा सकती है.

यानी बसपा का उन राज्यों (यूपी को छोड़कर) में बड़ा जनाधार है, जहां पर कांग्रेस का सीधा मुकाबला बीजेपी के साथ है. साथ ही कांग्रेसी मान रहे हैं कि बसपा के आने से यूपी में मुस्लिम वोटों का बिखराव नहीं होगा और दलितों का बड़ा तबका INDIA में आ जाएगा, लेकिन कांग्रेस के सामने दिक्कत है कि मायावती अभी घास नहीं डाल रही हैं. ऐसे में कांग्रेस के सामने सपा के साथ ही बने रहने के अलावा फिलहाल कोई विकल्प नहीं है.

वेट एंड वॉच की स्थिति में बसपा

सपा के रुख के बाद कांग्रेस ने भले ही बसपा से दूरी बना ली है, लेकिन अभी सभी वेट एंड वॉच की स्थिति में हैं. मायावती का आज का बयान भी इस ओर इशारा कर रहा है. मायावती ने आज कहा कि विपक्ष में जो भी पार्टी शामिल नहीं है, उसके बारे में टीका टिप्पणी करना भी ठीक नहीं है क्योंकि कब किसको किसकी जरुरत पड़ जाए ये किसी को पता नहीं. यानी मायावती को इंतजार चुनाव की नजदीक आती तारीखों और बनते-बिगड़ते समीकरणों का है.

कुल मिलाकर देखा जाए तो बसपा के INDIA का हिस्सा न बनने का नुकसान कांग्रेस और सपा को उतना ही हो सकता है, जितना बसपा को होता दिखाई दे रहा है… और फिलहाल फायदे में बीजेपी ही दिख रही है, जो अलग- अलग एजेंसियों के सर्वे में 80 में 70 से अधिक सीटें जीतती हुई दिखाई दे रही है.

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