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चुनावी चक्कलस: बरेली जोन की इन सीटों पर कभी नहीं दौड़ पाई ‘साइकिल’, 2022 में किला फतह के लिए अखिलेश यादव ने बनाई ये रणनीति

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 का आगाज हो चुका है.सभी सियासी दल चुनावी तैयारियों में शिद्दत के साथ जुटे हैं, लेकिन बरेली मंडल की बरेली शहर, शाहजहांपुर शहर, और पीलीभीत की बीसलपुर सीट पर समाजवादी पार्टी (सपा) आज तक जीत हासिल नहीं कर पाई. इन सीटों पर भाजपा का लंबे समय से कब्जा है.हालांकि, पीलीभीत की बीसलपुर सीट पर बसपा का हाथी तीन बार जरूर दौड़ा, लेकिन 2007 के बाद हाथी भी थक कर बैठ गया.मगर,इस बार सपा ने बरेली मंडल की तीनों सीट जीतने को खास रणनीति बनाई है.

बरेली मंडल में लोकसभा की पांच और विधानसभा की 25 सीट हैं. वर्तमान में पांचों लोकसभा सीट पर भाजपा का कब्जा है.जबकि वर्ष-2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 25 में से 23 सीट पर जीत दर्ज की थी, लेकिन जलालाबाद और सहसवान भाजपा हार गई थी.यह दोनों सीट भाजपा एक भी बार नहीं जीत पाई है.इसको लेकर भाजपा ने खास रणनीति बनाई है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दोनों सीट पर जनसभाएं कर चुके हैं तो वहीं अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा कराने की तैयारी है.

इसी तरह से सपा भी बरेली शहर, शाहजहांपुर शहर और बीसलपुर सीट कभी नहीं जीत पाई है.बरेली शहर सीट भाजपा ने कांग्रेस विधायक रामसिंह खन्ना से 1985 में छीनी थी. पूर्व मंत्री दिनेश जौहरी ने लगातार 1985, 1989 और 1991 में चुनाव जीतकर हैट्रिक बनाई.इसके बाद इस सीट से पूर्व मंत्री राजेश अग्रवाल को भाजपा ने टिकट दिया. उन्होंने भाजपा का भरोसा कायम रखा. वे शहर सीट से 1993, 1996, 2002 और 2007 में जीत दर्ज कर विधानसभा में पहुंचे थे.

नए परिसीमन के बाद राजेश अग्रवाल को कैंट से चुनाव लड़ाया गया. वे कैंट से भी दूसरी बार चुने गए हैं. उनके कैंट जाने के बाद भाजपा ने शहर सीट से 2012 के चुनाव में डॉ.अरुण सक्सेना को टिकट दिया.उन्होंने भी भाजपा का भरोसा जीतने के साथ ही जनता का दिल जीत लिया.वह 2012 और 2017 में विधायक चुने गए हैं. इससे 4 अक्टूबर 1992 को गठित होने वाली सपा आज तक शहर में जीत का परचम नहीं फहरा पाई

इसी तरह से शाहजहांपुर शहर सीट पर कैबिनेट मंत्री सुरेश खन्ना ने 1989 में जीत से आगाज किया था. खन्ना लगातार आठवीं बार विधायक हैं. बीसलपुर में 1991 में रामशरण वर्मा ने जीत दर्ज की थी, लेकिन 1996 विधानसभा चुनाव में बसपा के अनीस अहमद उर्फ फूल बाबू ने यह सीट भाजपा से छीन ली. वह लगातार 1996, 2002 और 2007 में विधायक चुने गए.

मगर, 2012 में रामशरण वर्मा ने भाजपा के टिकट पर फिर कमल का फूल खिलाया और यह जीत 2017 में भी कायम है. लेकिन अब सपा ने इन तीनों सीटों पर जीत दर्ज करने के लिए खास रणनीति बनाई है. हर बूथ कमेटी पर पुरुष के साथ महिलाओं को भी जिम्मा दिया गया है. यह एक-एक मतदाता तक अपनी पैठ बनाने में जुटे हैं.इसके साथ ही सपा मुख्यालय से भी इन तीनों सीटों की मॉनटरिंग हो रही है.संगठन भी खास रणनीति बनाने में जुटा हुआ है.

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