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नूपुर, नवीन और पैगंबर बयान : भड़काऊ बोल पर लगाम से PM मोदी को होगा सबसे ज्यादा फायदा?

नूपुर शर्मा और नवीन कुमार जिंदल के बयानों पर मुस्लिम देशों से तीखी प्रतिक्रिया के बाद सरकार को सफाई देनी पड़ रही है। बीजेपी ने भी डैमेज कंट्रोल के तहत न सिर्फ अपने दोनों नेताओं पर कार्रवाई की बल्कि सभी नेताओं को साफ हिदायत भी दी है कि किसी की भी धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाने वाले बयान न दिए जाएं। नूपुर और नवीन का ये पूरा एपिसोड अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के लिए शर्मिंदगी का सबब बनता दिख रहा है। पूरे विवाद से पीएम नरेंद्र मोदी की छवि पर क्या असर पड़ेगा, बता रही हैं जानी-मानी राजनीतिक विश्लेषक नीरजा चौधरी।

‘अब जब नूपुर शर्मा-नवीन जिंदल विवाद का पहला चैप्टर खत्म होने को है, तमाम रोचक सवाल उभर रहे हैं मसलन कैसे विवाद शुरू हुआ और इसका क्या असर देखने को मिल सकता है।

नूपुर-नवीन एपिसोड बीजेपी के बारे में क्या बताता है?
कांग्रेस में कोई एक मणिशंकर अय्यर कोई ऐसा बयान दे सकते हैं जो पूरी पार्टी को महंगा पड़ जाता है। लेकिन बीजेपी कांग्रेस की तरह नहीं है। यह बहुत ही व्यवस्थित संगठन है। वह सूचनाओं पर मंथन करते हैं, बहस करते हैं और उसी के हिसाब से प्रवक्ता अपनी बात रखते हैं। इसके बाद भी एक राष्ट्रीय प्रवक्ता और बीजेपी के दिल्ली मीडिया सेल के प्रमुख ने विवादित टिप्पणी कैसे कर दी?

शर्मा का कहना है कि उन्होंने आवेश में आकर टिप्पणियां कीं लेकिन सवाल है कि एक राष्ट्रीय प्रवक्ता कैसे इस बात से अनजान हो सकती है कि ऐसी टिप्पणियां रेड लाइन को क्रॉस करने वाली मानी जाती हैं। भारत में 20 करोड़ मुसलमान हैं। ऊपर से ये टिप्पणियां दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी होने का दावा करने वाली और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के नेताओं की तरफ से आई हैं। इसका तो हमेशा बड़ा असर दिखेगा।

पैगम्बर टिप्पणी विवाद: भारत ने अरब देशों के हाथों फजीहत क्यों बर्दाश्त की?

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने शर्मा को चेतावनी दी थी लेकिन उसके बाद भी उन्होंने उचित सावधानी नहीं बरती। इसके अलावा पार्टी का फोकस मोदी सरकार के 8 साल पूरा होने पर है इसलिए इस विवाद पर पार्टी का पहले ध्यान नहीं गया। अगर इन दलीलों को चेहरा बचाने की कवायद भी मान लें तो सवाल बरकरार है कि कैसे इस तरह का विवाद बीजेपी के बहुत ही व्यवस्थित मीडिया इंगेजमेंट तंत्र की नजर में आने से बच गया?

इसके अलावा सवाल यह भी है कि क्या इस एपिसोड से बीजेपी के दूरे प्रवक्ताओं की धारणा भी प्रभावित होगी जो नियमित तौर पर पॉलिटिक्स और पॉलिसी से जुड़े सवालों का जवाब देते रहते हैं।

ये तो स्पष्ट है कि इस मामले में भारत की घरेलू राजनीति पर दुनियाभर की नजर है, जो पहले अमूमन नहीं होता था। भारत के लिए खाड़ी देशों की अहमियत के बारे में बहुत कुछ कहा गया है।

क्या अब ध्रुवीकरण करने वाली बयानबाजियों पर लगाम लगेगा?
खाड़ी एक ऐसा क्षेत्र है जहां नरेंद्र मोदी ने नए संबंधों को गढ़ने के लिए पर्सनल डिप्लोमेसी का कामयाबी से इस्तेमाल किया है। राजनयिक आलोचनाएं बढ़ने के बाद उन्होंने तेजी से कदम उठाते हुए नुकसान को थामने की कोशिश की, कार्रवाई के लिए कहा। इस पर बहस हो सकती है कि क्या नेताओं पर की गई कार्रवाई पर्याप्त है या नहीं। खासकर तब जब शर्मा को सिर्फ जांच जारी रहने तक सस्पेंड किया गया है। लेकिन उन विवादित बयानों से खुद को दूर रखने के भारत सरकार के इरादा पूरी तरह स्पष्ट है, इस पर कोई संदेह नहीं है।

कई का मानना है कि विवाद जल्द ही थम जाएगा लेकिन इस मामले में ऐसा हो, जरूरी नहीं। दरअसल, अब बीजेपी नेता इस ओर आंख मूंद सकते हैं कि पार्टी के सदस्य ध्रुवीकरण वाले मुद्दों पर किस तरह जवाब देते हैं। अगर तीखी बयानबाजियों का टोन नरम हो जाए तो इसमें हैरानी वाली बात नहीं होगी। इसकी वजह ये है कि कुछ खाड़ी देश इस चीज पर बारीकी से नजर रखेंगे कि बीजेपी के तमाम नेता इस मुद्दे पर क्या कह रहे हैं। इन देशों ने कथित तौर पर ‘बढ़ती इस्लामोफोबिया’ की भी आलोचना की है। इसके अलावा अमेरिका के विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकन ने भी ‘भारत में लोगों और पूजास्थलों पर बढ़ते हमलों’ की आलोचना की थी।

मोहन भागवत का बयान इसमें कैसे फिट होता है?
अभी पिछले हफ्ते ही आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने ज्ञानवापी मुद्दे पर भड़काऊ बयानबाजियों से बचने की नसीहत दी। ये संघ प्रमुख का बहुत ही महत्वपूर्ण बयान था। उन्होंने दो टूक कहा था कि हर मस्जिद में ‘शिवलिंग’ क्यों ढूंढना। उन्होंने कहा कि संघ अब किसी मंदिर के लिए आंदोलन नहीं चलाएगा क्योंकि अयोध्या मूवमेंट पूरा हो चुका है।

संघ में हर कोई इससे सहमत नहीं है लेकिन आरएसएस के भीतरखाने हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण के नफा-नुकसान को लेकर बहस जोर पकड़ रही है कि क्या ये रणनीति एक हद से आगे भी फायदेमंद रहेगी। कई का तर्क है कि ये इसके राजनीतिक नुकसान हो सकते हैं। इसके लिए वे राजनीतिक रूप से अहम बंगाल की तरफ इशारा कर रहे हैं जहां मुस्लिम सामूहिक रूप से एंटी-बीजेपी वोटिंग करते हैं।

ध्रुवीकरण वाले बयानों पर लगाम से क्यों मोदी को फायदा हो सकता है?
कुछ लोग इस पूरे एपिसोड को मोदी के लिए झटके के तौर पर देखते हैं। सही भी है, तात्कालिक तौर पर तो ऐसा हो सकता है। लेकिन समय के साथ अगर बीजेपी हिंदू-मुस्लिम बयानों पर लगाम लगाती है तो ये प्रधानमंत्री मोदी के लिए ही फायदेमंद होगा। इसकी वजह ये है कि वह बीजेपी के इकलौते ऐसे नेता हैं जिनमें हिंदुत्व से इतर मुद्दों पर भी वोट खिंचने की क्षमता है।

मोदी की पहले से ही हिंदू हृदय सम्राट और एक सख्त नेता की छवि है लिहाजा इस छवि को और चमकाने की जरूरत नहीं है। लेकिन अगर ध्रुवीकरण वाली भड़काऊ बयानबाजियों पर रोक लगती है तो नरेंद्र मोदी के बाकी मजबूत पक्षों का ज्यादा असर दिखेगा। मसलन इंडिया फर्स्ट, जनकल्याणकारी योजनाओं का कारगर क्रियान्वयन, दलितों और पिछड़ों में पैठ (मोदी खुद ओबीसी हैं) और करीने से बनी त्याग वाली छवि कि मोदी के आसपास परिवार नहीं है, वह निजी और पारिवारिक हितों से ऊपर हैं, ये सब चीजें मोदी और बीजेपी को ध्रुवीकरण वाले बयानों से ज्यादा फायदेमंद साबित हो सकता है।’

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