नीतीश की ‘इलेक्शन स्ट्रेटजी’ तबाह करेंगे नियोजित शिक्षक ! नियुक्ति का इंतजार कर रहे अभ्यर्थियों की प्लानिंग तैयार

बिहार में जाति सर्वेक्षण और उसके आंकड़े कही सिर्फ सियासी शिगूफा बन कर न रह जाएं। हालांकि विवादों-बहसों के बावजूद जाति सर्वेक्षण का काम पूरा करा लेने के लिए नीतीश कुमार की खूब वाहवाही हो रही है। ठीक इसी तरह की वाहवाही नीतीश ने शराबबंदी कानून बना कर बटोरी थी। यह इसलिए उत्पन्न हो रही है कि शराबबंदी कानून बिहार में लागू तो हो गया, लेकिन इसका कोई सार्थक परिणाम सामने नहीं आया। उल्टे सरकारी राजस्व की भारी क्षति सरकार को 2016 से उठानी पड़ रही है। न पीने वाले माने और न शराब की सप्लाई बंद हुई। उल्टे पिछड़े तबके के हजारों लोग बिहार की जेलों में शराब बनाने, बेचने या पीने के जुर्म में जेल में बंद हैं तो दर्जनों को जहरीली शराब के सेवन से अपनी जान गंवानी पड़ी है।

‘शराबबंदी का हस्र न हो जाए जाति सर्वे का’

लोक जनशक्ति पार्टी – राम विलास ( LJP-R) के अध्यक्ष चिराग पासवान आशंका जाहिर करते हैं कि जाति सर्वेक्षण के आंकड़ों का सही ढंग से इस्तेमाल नहीं हुआ तो इसका भी वही हश्र होगा, जो शराबबंदी कानून का हुआ था। उन्होंने तो सर्वेक्षण की सत्यता पर भी सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि ज्यादातर लोग बताते हैं कि उनके घर कोई आया ही नहीं। सीएम को तुरंत सर्वदलीय बैठक बुला कर इस पर सफाई देनी चाहिए। ऐसा नहीं हुआ तो इसका भी हाल शराबबंदी जैसा ही होगा। सच तो यह है कि एक विशेष जाति को लाभ पहुंचाने के लिए यह सर्वेक्षण हुआ है।

सर्वेक्षण के आंकड़े ही नहीं, कई और मुश्किलें

नीतीश कुमार को लगता है कि जाति सर्वेक्षण से उन्होंने बड़ा तीर मार लिया है, लेकिन जमीनी मुश्किलात उनकी राह के रोड़े बने हुए हैं। जाति सर्वेक्षण को लेकर जिस तरह के सवाल उठ रहे हैं, उससे तो यही लगता है कि आंकड़ों पर अधिकतर को भरोसा नहीं । बहरहाल, शराबबंदी कानून, संविदा शिक्षकों की सरकारी दर्जे की मांग, शिक्षक नियुक्ति परीक्षा में बीएड पास अभ्यर्थियों का वंचित रह जाना और सिपाही भर्ती परीक्षा का प्रश्नपत्र लीक होना ऐसी मुश्किलें हैं, जिनसे निजात पाए बिना नीतीश की राह आसान नहीं होगी। महागठबंधन सरकार बनने पर 10 लाख सरकारी नौकरियों के वादे से ललचाए युवकों को अब निराशा होने लगी है। अगर लोकसभा चुनाव तक यही स्थिति बनी रही तो नीतीश कुमार को जाति सर्वेक्षण के आंकड़े जाहिर करने का कोई फायदा शायद ही मिल पाए ।

प्राथमिक शिक्षक नहीं बनेंगे बीएड डिग्रीधारी

बिहार में प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्कूलों में एक लाख 70 हजार शिक्षकों की बहाली के लिए सरकार ने विज्ञापन निकाला। इसी साल अगस्त में तकरीबन छह लाख शिक्षक अभ्यर्थियों की जांच परीक्षा बिहार लोक सेवा आयोग ने ली थी। इनमें प्राथमिक शिक्षक बनने के लिए तीन लाख 76 हजार बीएड डिग्रीधारी अभ्यर्थियों ने आवेदन दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार के मामले में एक निर्णय दिया, जिसमें प्राथमिक शिक्षकों की नियुक्ति में बीएड डिग्री वालों को शामिल न करने का आदेश था। सुप्रीम कोर्ट का आदेश तभी आया था, जब बिहार में शिक्षक नियुक्ति का विज्ञापन निकाला गया। सरकार ने तब कोई फैसला नहीं लिया और प्राथमिक शिक्षकों के लिए बीएड डिग्री वालों की भी परीक्षा ले ली। अब बीएड वालों को छोड़ कर प्राइमरी शिक्षकों की नियुक्ति की प्रक्रिया चल रही है। आई वॉश के लिए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ एसएलपी दायर की है।

सरकारी दर्जा देने से कतराती रही सरकार

राज्य के संविदा शिक्षक वर्षों से सरकारी दर्जे की मांग करते रहे हैं। बिहार सरकार ने 2005 से अब तक पंचायतों और निकायों को संविदा पर शिक्षक नियुक्त करने का अधिकार दे रखा था। राज्य में लगभग तीन लाख 50 हजार संविदा शिक्षकों की बहाली हुई है। ये शिक्षक आज वहीं खड़े हैं, जहां सरकारी शिक्षक बनने के लिए निर्धारित मानदंड पूरा करने वाले अभ्यर्थी खड़े थे। इन शिक्षकों को अब भी उम्मीद है कि उन्हें सरकार समान काम की वजह से सरकारी शिक्षक का दर्जा देगी। हाल के दिनों में कई बार यह अफवाह उड़ी भी कि नीतीश कुमार जल्दी ही संविदा शिक्षकों को सरकारी दर्जा देने की घोषणा करेंगे। अभी तो ऐसी कोई घोषणा नहीं हो पाई, लेकिन सामने लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अनुकूल फैसले की उम्मीद अब भी बची है। बिहार में 21 हजार 391 पदों पर सिपाही की बहाली होनी है। पहली लिखित परीक्षा एक अक्टूबर 2023 को हुई। दो पालियों में होने वाली इस परीक्षा में पहले दिन करीब 6 लाख परीक्षार्थी शामिल हुए। प्रश्नपत्र लीक होने से परीक्षा रद्द हो गई। परीक्षा के लिए कई तरह की परेशानियां झेलने वाले अभ्यर्थियों को अगर चुनाव से पहले बहाल नहीं किया जाता है तो सरकार में शामिल दलों को चुनाव में इसकी महंगी कीमत चुकानी पड़ सकती है।

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