अफगानिस्तान पर काबिज हो चुके तालिबान ने कहा है कि वो फंड्स के लिए चीन पर निर्भर है, क्योंकि चीन ही उनके लिए सबसे भरोसेमंद सहयोगी है। कुछ दिन पहले तालिबान में नंबर दो माने जाने वाले मुल्ला अब्दुल गनी बरादर ने बीजिंग का दौरा किया था। इस दौरान चीन के विदेश मंत्री से बातचीत की थी। अब इस दौरे का नतीजा तालिबान के गुरुवार को दिए बयान से साफ हो रहा है। अफगानिस्तान में 3 ट्रिलियन डॉलर (करीब 200 लाख करोड़ रुपए) की खनिज संपदा है, जिस पर दुनिया की फैक्ट्री के तौर पर स्थापित हो चुके चीन की नजर है।
तालिबान चीन को भरोसा दिला चुका है कि वो उईगर मुस्लिमों के कट्टरपंथी तत्वों पर नकेल कसकर रखेगा। अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल चीन के खिलाफ नहीं किया जा सकेगा। हालांकि, तालिबान ने भारत समेत पूरी दुनिया को यह भरोसा दिलाने की कोशिश की है कि अफगानिस्तान की सरजमीं का इस्तेमाल किसी मुल्क के खिलाफ नहीं किया जा सकेगा।
तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने इटली के अखबार ‘ला रिपब्लिका’ को इंटरव्यू दिया। इसमें उन्होंने तालिबान और चीन के करीबी रिश्तों का खुलासा किया। मुजाहिद ने कहा- अफगानिस्तान की इकोनॉमी बेहद खस्ता हालत में है। हमें मुल्क चलाने के लिए फंड्स की जरूरत है। फिलहाल और शुरुआती तौर पर हम चीन की मदद से आर्थिक हालात सुधारने की कोशिश कर रहे हैं।
तालिबान ने 15 अगस्त को काबुल पर फतह के साथ ही पूरे मुल्क पर कब्जा कर लिया था। 31 अगस्त तक सभी विदेशी सैनिक अफगानिस्तान छोड़कर चले गए। इसके बाद अफगानिस्तान के तमाम फॉरेन फंड्स को अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों ने फ्रीज कर दिया। चीन इस मौके का फायदा उठाता दिख रहा है।
एक सवाल के जवाब में मुजाहिद ने कहा- चीन हमारा सबसे भरोसेमंद सहयोगी है। वो हमारे लिए बुनियादी और बेहतरीन अवसर ला रहा है। चीन ने वादा किया है कि वो अफगानिस्तान में इन्वेस्टमेंट करके इसे नए सिरे से तैयार करेगा। सिल्क रूट के जरिए वो दुनिया में प्रभाव बढ़ाना चाहता है। इसके जरिए हम भी दुनिया तक अपनी पहुंच बना सकते हैं। हमारे देश में तांबे की खदाने हैं। चीन इन्हें आधुनिक तरीके से फिर शुरू करेगा। हम दुनिया को तांबा बेच सकेंगे। तालिबान राज में महिलाओं की स्थिति के सवाल पर जबीउल्लाह ने कहा- हम वादा कर चुके हैं। उन्हें तालीम का हक मिलेगा। वो नर्स, पुलिस या मंत्रालयों में काम कर सकेंगी। उन्हें मंत्री नहीं बनाया जाएगा।
जानिए मदद के बदले क्या चाहता है चीन :-
चीन ने जो कहा है, उसके मुताबिक वह तालिबान से दोस्ती चाहता है, ताकि झिंजियांग प्रांत में आतंकी ग्रुप्स की एक्टिविटी को रोक सके। चीन के विदेश मंत्री की बरादर से मीटिंग के दौरान भी उइगर आतंकियों का मसला उठा था। विदेश मंत्री वांग यी ने तो कहा भी था कि तालिबान को ETIM से सभी संबंध तोड़ने होंगे। यह संगठन चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय अखंडता के खिलाफ सीधे-सीधे खतरा है।
दरअसल, तुर्कीस्तान इस्लामिक मूवमेंट (TIM) को ईस्ट तुर्केस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ETIM) भी कहा जाता है। यह पश्चिमी चीन में उइगर इस्लामिक चरमपंथी संगठन है। यह संगठन चीन के झिंजियांग को ईस्ट तुर्केस्तान के तौर पर स्वतंत्र करने की मांग करता है।
2002 से ETIM को UN सिक्योरिटी काउंसिल अल-कायदा सैंक्शंस कमेटी ने आतंकी संगठन के तौर पर लिस्ट में डाला है। हालांकि, अमेरिका ने 2020 में इस संगठन को आतंकी संगठनों की सूची से बाहर निकाल दिया था। इससे दोनों देशों में ट्रेड वॉर ने एक अलग ही मोड़ ले लिया।
अमेरिका, UK और UN ने चीन पर झिंजियांग में लोकल मुस्लिम उइगर आबादी के खिलाफ मानवाधिकार उल्लंघनों के आरोप लगाए हैं। चीन पर इस समुदाय से बंधुआ मजदूरी कराने और कई तरह की पाबंदी लगाने के आरोप हैं। 2000 के दशक से ही ETIM की जड़ें अफगानिस्तान में रही हैं। उसे तालिबान व अल-कायदा का सपोर्ट रहा है।