मो शहाबुद्दीन बिहार की राजनीति का एक ऐसा चेहरा जिस चेहरे में ना जाने कितने चेहरे समाए हुए थे. सीवान के छोटे से इलाके से शुरू हुई आतंक और खौफ के साथ राजनीतिक पकड़ ने शहाबुद्दीन को इतना बड़ा बना दिया कि जेल में रहते हुए विधानसभा के चुनाव जीते और देखते-देखते सीवान के सांसद भी बन गए. शहाबुद्दीन की शख्सियत ऐसी की कोई उसे रॉबिन हुड बताता तो कई लोग इसे आतंक और दहशतगर्दी का दूसरा नाम. तिहाड़ जेल में उम्र कैद की सजा काट रहे शहाबुद्दीन को कोरोना होने के बाद कुछ दिन पहले दिल्ली के अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां आज उनका निधन हो गया.
सीवान की धरती पहले राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद की धरती रही है. इस धरती पर शहाबुद्दीन जैसा बाहुबली पैदा होना आसान नहीं था. वह दौर था जब बीजेपी और कम्युनिस्ट पार्टी के साथ संघर्ष का सिलसिला शुरू हुआ. शहाबुद्दीन उन दिनों खून खराबे के लिए प्रचलित हो रहा था. 1986 का साल था जब पहली बार शहाबुद्दीन पर हुसैनगंज थाने में FIR दर्ज की गई. उस समय शहाबुद्दीन की उम्र मात्र 19 साल थी. उसके बाद शहाबुद्दीन ने अपराध के दुनिया में वो पहचान बनाई जिससे सीवान में उसके नाम की दहशत फैल गई. चोरी, डकैती, हत्या, अपहरण, रंगदारी, दंगा जैसे एक दर्जन से ज्यादा मामले दर्ज होते चले गए.
सीवान जिले में कहीं चौक-चौराहे पर अगर ‘साहेब’ शब्द सुनाई पड़े तो समझ लीजिए शहाबुद्दीन की बात हो रही है. वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय बताते हैं कि 90 के दशक में सीवान में कम्युनिस्ट पार्टी का वर्चस्व था और बड़े जमींदारों के जमीन पर कब्जा करने का तेजी से सिलसिला शुरू हुआ था. बड़े जमींदारों की जमीन हड़पी जा रही थी और उधर शहाबुद्दीन के अपराध के किस्से भी सुर्खियों में आने लगे थे. शहाबुद्दीन ने वैसे जमींदारों का साथ देना शुरू किया जिसकी जमीन छीनी जा रही थी. शहाबुद्दीन ने खुलकर जमींदारों का साथ दिया. धीरे-धीरे वह सभी के बीच खुद को संरक्षक के रूप में पेश करने लगा. अब लोग सीवान में शहाबुद्दीन को ‘साहेब’ कहकर बुलाने लगे.
90 के दशक में जेएनयू में छात्र नेता के रूप में झंडा गाड़ने वाले चंद्रशेखर का बोलबाला था. दिल्ली से वापस सीवान लौटकर राजनीति में वह कुछ नया करना चाहते थे. 31 मार्च 1997 का साल था जब चंद्रशेखर सीवान के जेपी चौक पर लोगों को संबोधित कर रहे थे. अचानक अपराधियों ने गोलियों की तड़तड़ाहट से चंद्रशेखर को दिनदहाड़े भून डाला. इस हत्याकांड ने सीवान से दिल्ली तकर सनसनी फैला दी. देशभर में विरोध-प्रदर्शन हुए, लेकिन इसके साथ ही शहाबुद्दीन का खौफ बढ़ता गया.
सीवान में यूं तो रंगदारी, अपहरण, हत्या के कई मामले शहाबुद्दीन पर दर्ज हुए, मगर तेजाब कांड ने देशभर में हड़कंप मचा दिया था. खबरों के मुताबिक शहाबुद्दीन के गुर्गे सीवान के लगभग हर दुकानदार और व्यवसायियों से वसूली करते थे. साल 2004 में ऐसे ही एक दिन उसके गुर्गे सीवान के व्यवसायी चंदा बाबू के यहां रंगदारी मांगने पहुंचे. चंदा बाबू के तीन बेटे थे, दो दुकान संभालते थे, दोनों ने रंगदारी देने से साफ मना कर दिया. बाद में चंदा बाबू के दोनों बेटों सतीश और गिरीश रौशन को प्रतापपुर गांव में ही पेड़ में बांधकर तेजाब से नहला दिया गया. वारदात से सनसनी फैली और इस मामले में शहाबुद्दीन सहित चार लोगों को सीवान कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई. पटना हाईकोर्ट ने भी इस फैसले को बरकरार रखा, जिसे शहाबुद्दीन ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. लेकिन वहां से भी उसे निराशा हाथ लगी. इसके बाद ही शहाबुद्दीन दिल्ली के तिहाड़ जेल में कैद था.
कई सालों तक सीवान में दहशत फैलाने के बाद जब शहाबुद्दीन विधायक और फिर सांसद बने, तो उनके तौर-तरीके में काफी बदलाव आया. शहाबुद्दीन सीवान में खुलेआम जनता दरबार लगाते थे. किसी की जमीन का फैसला करना हो या फिर बकाया राशि की वसूली, जनता दरबार में फैसला सुनाते थे. एक समय ऐसा भी आया जब शहाबुद्दीन ने सीवान में डॉक्टर मरीज देखने की कितनी फीस लेंगे, यह भी तय करने लगे.
शहाबुद्दीन ने जिस तरह से अपनी पकड़ सीवान में बनाई और राजनीति शुरू की, वह तत्कालीन सरकार के लिए काफी फायदेमंद साबित हुई. सीवान सहित अगल-बगल के जिलों में दर्जनों विधानसभा सीट पर शहाबुद्दीन का दबदबा होता था, यही कारण है कि लालू सरकार का राजनीतिक संरक्षण भी खूब मिला. शहाबुद्दीन का वर्चस्व ऐसा हो गया कि जेल में रहते हुए बिना प्रचार के सांसद बने. 1996 से लेकर 2009 तक चार बार लगातार सांसद रहे.
2016 का साल, जब शहाबुद्दीन जेल से बेल मिलने के बाद सैकड़ों गाड़ियों के काफिले के साथ सीवान लौटे. टोल प्लाजा पर किसी की हिम्मत नहीं हुई कि टैक्स के लिए पूछे. बिहार में महागठबंधन की सरकार बन गई थी. लालू प्रसाद यादव का प्रभाव सरकार पर था, उस समय शहाबुद्दीन ने मीडिया को बयान दिया कि नीतीश कुमार परिस्थितियों के मुख्यमंत्री हैं, हमारा नेता लालू प्रसाद यादव है. इस बयान पर खूब हंगामा मचा, फिर नीतीश सरकार में ही शहाबुद्दीन को जेल भेजा गया.