हाइब्रिड वायरस से नया खतरा, आर्कटिक से लेकर अंटार्कटिक महासागर में मौजूद, वैज्ञानिक बोले, ‘ऐसा कभी नहीं देखा’

वैज्ञानिकों ने एक नए वायरस की खोज की है जो काफी तेजी से फैल रहा है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि ऐसा वायरस उन्होंने पहले कभी नहीं देखा. इसका नाम माइरसवायरस (Mirusvirus) बताया जा रहा है. लैटिन में माइरस का मतलब होता है विचित्र या अनोखा. एक रिपोर्ट के मुताबिक इस वायरस ने समुद्र में पाए जाने वाले प्लैंकटॉन्स (Planktons) को भी संक्रमित कर दिया है. यह वायरस आर्कटिक महासागर से लेकर अंटार्कटिक तक, हर जगह मौजूद है.

बताया जा रहा है कि माइरसवायरस वायरस के एक बड़े ग्रुप डुप्लोडीएनएवीरिया (Duplodnaviria)का एक पार्ट है. वायरस के इस ग्रुप में हर्पिस वायरस भी आते है. यह वायरस बड़े पैमाने पर जानवरों और इंसानों में फैलते है और बीमारी का कारण बनते हैं. माइरसवायरस और हर्पिस वायरस एक दूसरे से जेनेटिकली रिलेटेड है, लेकिन माइरसवायरस में जायंट वायरस वैरीडीएनएवीरिया (Varidbaviria)के भी जैनेटिक कैरेक्टर मिलते है.

हाइब्रिड है माइरसवायरस
इस अनोखे माइरसवायरस के बारे में एक स्टडी रिपोर्ट सामने आई है और Nature जर्नल में छपी भी है. बताया जा रहा है कि माइरसवायरस डुप्लोडीएनएवीरिया और वैरीडीएनएवीरिया के बीच का एक हाइब्रिड वायरस है. फेंच नेशनल सेंटर फॉर साइंटिफिक रिसर्च (CNRS) के एक साइंटिस्ट का कहना है कि माइरसवायरस काफी अलग तरह के वायरस है. इससे पहले ऐसा वायरस कभी देखा नहीं गया है. यह दो बड़े वायरस का क्रॉसब्रीड है. इसमें हर्पिस और जायंट वायरस के जेनेटिक ट्रैट मौजूद है.

स्टडी में बताया गया है कि फिलहाल साइंटिस्ट इस वायरस के बारे में ज्यादा नहीं जानते. इस वायरस को डिटेक्ट करने के लिए वैज्ञानिकों ने एक एक्पेडिशन के डेटा को कलेक्ट किया. 2009 से लेकर 2013 तक कई समुद्र के वाटर सैंपल लिए गए. इसमें वायरस, एल्गी और प्लैंकटॉन्स को खोजा गया. इसके बाद एक्सपर्ट्स ने कई माइक्रोब्स के डीएनए को टेस्ट किया.

डबल स्ट्रैंडेड डीएनए वायरस है माइरसवायरस
साइंटिस्ट्स का कहना है कि माइरसवायरस एक इवोल्यूशनरी खोज है. यह एक डबल स्ट्रैंडेड डीएनए वायरस है. यह समुद्र की रोशन वाली इलाकों में मिलता है. इसने प्लैंकटॉन्स को इन्फेक्ट कर दिया है. यह समुद्र की लहरों के सहारे एक से दूसरी जगह तैरते है. इस वायरस के असर से आने वाले दिनों में समुद्र के अंदर पाए जाने वाले कार्बन और पोषक तत्वों को नुकसान पहुंच सकता है. एक्सपर्ट्स का मानना है कि इन अनोखे वायरस की स्टडी से हर्पिस वायरस की उत्पत्ति के बारे में पता लगाया जा सकता है.

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