अयोध्या केस:आस्था नहीं जमीन का मामला, पुख्ता सबूत चाहिए नाकि,पुराणों का जिक्र-CJI

रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर 6 अगस्त से सर्वोच्च अदालत इस मामले की रोजाना सुनवाई कर रही है। सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने रामजन्म स्थान पुनरुद्धार समिति के वकील से कहा कि वह इस मामले में पुख्ता सबूत पेश करें और पुराणों का जिक्र ना करें। क्योंकि ये मामला किसी आस्था का नहीं है बल्कि विवादित जमीन से जुड़ा है। पीएन मिश्रा के बाद हिंदू महासभा के वकील अपना पक्ष रख रहे हैं। उन्होंने अपनी दलील में जिक्र किया कि जमीन का मालिकाना हक सरकार के पास है। जिसपर जस्टिस बोबड़े ने कहा कि जमीन का कंट्रोल सरकार के पास नहीं है। हिंदू महासभा के वकील ने कहा कि वह जिरह के लिए तैयार नहीं हैं।

इस पर चीफ जस्टिस नाराज हुए और पूछा कि आप तैयार क्यों नहीं हैं? वकील ने कहा कि उन्हें पता नहीं था कि आज उनकी बारी आएगी, इसके बाद चीफ जस्टिस ने किसी ओर से अपना पक्ष रखने को कहा। हिंदू महासभा के बाद गोपाल सिंह विशारद की तरफ से वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार अपना पक्ष रख रहे हैं।

गोपाल सिंह विशारद के बेटे ने कहा कि 1950 में मेरे पिताजी ने मामले में याचिका दायर की थी। बीच में टोकते हुए चीफ जस्टिस ने कहा कि आपने अनुवाद ठीक से नहीं किया है, वकील की ओर से जवाब दिया गया कि कुछ सबूत हिंदी में भी दिए गए हैं।

रामजन्म स्थान पुनरुद्धार समिति के वकील पीएन मिश्रा ने आइन-ए-अकबरी की बातों को बताया और कहा कि उन्होंने कहीं भी ये नहीं बताया कि बाबर ने मस्जिद बनाई थी। इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि मस्जिद किसने बनाई ये मायने नहीं रखता है, चाहे वो बाबर हो या अकबर, सवाल ये है कि वहां पर मस्जिद थी या नहीं।

इसके बाद चीफ जस्टिस ने कहा कि आप अपने सभी नोट्स को इकट्ठा करें और उन डॉक्यूमेंट्स को हमें दें जिनका आप जिक्र कर रहे हैं। इसके बाद पीएन मिश्रा ने कहा कि वह परसों अपनी दलील रखना चाहेंगे।

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि उन्हें कुछ पुख्ता सबूत चाहिए। हमें नक्शा दिखाएं या कुछ ऐसा दिखाइए कि जिससे पता लग सके कि आप जिस स्थान का दावा कर रहे हैं वो वही जगह है। चीफ जस्टिस ने कहा कि धर्मग्रंथों का इस वक्त मामले से लेना-देना नहीं है क्योंकि सवाल आस्था का नहीं बल्कि जमीन का है।

सुप्रीम कोर्ट में रामलला के वकील की तरफ से स्कन्द पुराण और अन्य पुराणों का जिक्र किया गया और रामजन्मभूमि के सबूतों को सामने रखा गया. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने वकील से पूछा कि क्या आपको पता है कि ये कब लिखा गया था। जिसपर वकील ने बताया कि ये गुप्त वंश के दौरान लिखा गया था।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने इस दौरान कहा कि अगर आप अपनी जिरह के लिए पौराणिक तथ्यों का जिक्र कर रहे हैं, तो इस बात का भी ध्यान रखें कि मंदिर की मौजूदगी के लिए आपके पास कुछ अन्य सबूत भी हों। जस्टिस भूषण ने भी इस दौरान कहा कि आपको इन पुराणों के समय के बारे में भी बताना होगा क्योंकि आप उस जगह के लिए इनपर ही निर्भर हैं।

इस बीच जस्टिस राजीव धवन ने अदालत को बताया कि अयोध्या के पास पहले घाघर नदी थी, जिसे सरयू की सहायक नदी माना गया। इसको लेकर दो बार रुख बदला गया, ऐसे में अब बार-बार चर्चा नहीं कर सकते हैं।

रामलला विराजमान की तरफ से वकील सीएस. वैद्यनाथन ने चीफ जस्टिस की बेंच के सामने अपने तर्क रखे। इस दौरान उन्होंने कहा कि रामलला नाबालिग हैं, ऐसे में नाबालिग की संपत्ति को ना तो बेचा जा सकता है और ना ही छीना जा सकता है।

वकील ने अदालत के सामने अपनी दलील रखते हुए कहा कि अगर थोड़ी देर को ये मान भी लिया जाए कि वहां कोई मंदिर नहीं, कोई देवता नहीं थे, फिर भी लोगों का विश्वास है कि राम जन्मभूमि पर ही श्रीराम का जन्म हुआ था। ऐसे में वहां पर मूर्ति रखना उस स्थान को पवित्रता प्रदान करता है।

रामलला के वकील ने कहा कि एक मंदिर हमेशा मंदिर ही रहता है, संपत्ति को आप ट्रांसफर नहीं कर सकते हैं। मूर्ति किसी की संपत्ति नहीं है, मूर्ति ही देवता हैं।

इस पर जस्टिस बोबड़े ने कहा कि आपके तर्क तो इस प्रकार हैं कि मूर्ति के स्वामित्व वाली संपत्ति अभेद है। अगर कोई अन्य व्यक्ति जो संपत्ति पर दावा करता है, वह इसे कब्जे में नहीं रख सकता है. ऐसे में संपत्ति ट्रासफंर वाली चीज नहीं है।

रामलला के वकील की तरफ से दावा किया गया था कि मस्जिद को बनाने के लिए मंदिर तोड़ा गया था। उन्होंने ASI रिपोर्ट का हवाला देते हुए वहां मिले शिलालेख में मगरमच्छ, कछुओं के चित्रों का भी जिक्र किया और कहा कि इनका मुस्लिम कल्चर से मतलब नहीं था। इतना ही नहीं उन्होंने दावा किया कि बाबरी मस्जिद विध्वंस के दौरान जो स्लैब वहां से निकलीं उनपर संस्कृत में संदेश लिखा हुआ था।

वकील ने अदालत में इस दौरान पाञ्चजन्य के रिपोर्टर की रिपोर्ट का जिक्र किया, कुछ तस्वीरें अदालत में दिखाई और ASI की रिपोर्ट का भी हवाला दिया गया।

एक तरफ रामलला विराजमान के वकील लगातार रिपोर्ट, पुराणों का जिक्र कर रहे हैं तो वहीं जज भी कई तरह के सवाल पूछ रहे हैं। जैसे कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से पूछा गया था कि इस बात का क्या सबूत है कि बाबर ने ही मंदिर तुड़वाने का आदेश दिया था, या मंदिर तोड़कर ही मस्जिद बनाई गई थी।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पहले मध्यस्थता का रास्ता अपनाने को कहा था, लेकिन मध्यस्थता से कोई हल नहीं निकला। इसी वजह से अब अदालत इस मामले पर रोजाना सुनवाई कर रही है।

इस विवाद की सुनवाई मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ कर रही है। इसमें जस्टिस एस. ए. बोबडे, जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. ए. नजीर भी शामिल हैं।

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